संदीप शर्मा, विदिशा। आज धनतेरस का त्यौहार पूरे देशभर में काफी धूमधाम से मनाया जा रहा है। दीपावली के 2 दिन पहले पढ़ने वाले इस त्यौहार में धन के देवता कुबेर देव की पूजा-अर्चना की जाती है। कहा जाता है कि जिस घर में मां लक्ष्मी के साथ कुबेर भगवान की पूजा की जाती है, वहां कभी धन की कमी नहीं होती। मान्यता है कि कुबेर देव भगवान शिव के भक्त थे। भगवान शिवजी के आशीर्वाद से ही उन्हें धनपति की पदवि प्राप्त हुई थी। आज हम आपको एशिया की सबसे बड़ी कुबेर देव की प्रमिता के बारे में बताने जा रहे हैं।
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मध्यप्रदेश के विदिशा के जिला संग्रहालय में भगवान कुबेर की प्राचीन प्रतिमा स्थापित है। आज के दिन लोग पहुंचकर विधि-विधान से भगवान कुबेर की पूजा-अर्चना करते हैं। लोग बताते हैं कि यह प्रतिमा बैस नदी में मिली थी। लोग इस प्रतिमा पर कपड़ा धोने का काम करते थे। करीब तीन दशक पहले इस प्रतिमा को जिला संग्रहालय में स्थापित किया गया।
बताया जाता है कि देश में सिर्फ 4 जगहों पर भगवान कुबेर की प्रतिमा मौजूद है, जिनमें राजस्थान के भरतपुर, उत्तरप्रदेश के मथुरा, मध्यप्रदेश के विदिशा और दक्षिण भारत में एक जगह पर भगवान कुबेर की बड़े आकार के प्रतिमा के रूप में मौजूद है। विदिशा में मौजूद भगवान कुबेर की यह प्रतिमा एशिया की सबसे बड़ी प्रतिमा मानी गई है।
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