संदीप शर्मा, विदिशा। मध्य प्रदेश के कालादेव में अनोखा दशहरा मनाया जाता है। यहां दशानन रावण को जलाया नहीं जाता, बल्कि पूजा जाता है। जिले की लटेरी तहसील में स्थित ग्राम कालादेव गांव में हर दशहरे पर एक ऐसी घटना होती है, जिसे चमत्कार ही कहा जा सकता हैं। इस गांव में रावण की एक विशालकाय प्रतिमा स्थित है। इसके सामने एक ध्वज गाड़ दिया जाता है, यह ध्वजा राम और रावण के युद्ध का प्रतीक होती है।
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इस युद्ध के दौरान एक तरफ कालादेव के लोग राम दल के रूप में आगे बढ़ते हुए इस ध्वजा को छूने का प्रयास करते हैं, तो वहीं दूसरी ओर रावण दल के लोग उन पर गोफन से पत्थरों की बरसात करते है, लेकिन आश्चर्य की बात यह कि गोफन से निकले यह पत्थर रामादल के लोगों को नहीं लगते हैं। इससे भी बड़ी बात यह है कि यदि कोई व्यक्ति कालादेव का निवासी न हो और रामादल में शामिल हो जाऐ, तो उसे गोफन से फैंके हुऐ पत्थर लग जाते हैं, लेकिन कालादेव गांव के किसी भी व्यक्ति को यह पत्थर नहीं लगते, बल्कि मैदान से अपनी दिशा बदलकर निकल जाते हैं। मध्य प्रदेश के कालादेव मेंं इस तरह के दशहरे की यह परम्परा कब से चली आ रही है, इसके विषय में कोई नहीं जानता।
कालादेव गांव विदिशा शहर से करीब 100 किमी की दूरी पर है। बैरसिया, महानीम चौराहा, लटेरी और आनंदपुर होते हुए कालादेव पहुंचा जा सकता है। यहां दशहरे पर अनूठा आयोजन होता है। मैदान में रावण की विशालकाय प्रतिमा स्थित है, जिसे गांव के लोगों द्वारा सजाया जाता है। इस आयोजन को देखने के लिये गुना, विदिशा, भोपाल,राजगढ़, ग्वालियर, इंदौर सहित यूपी और राजस्थान के लोग भी पहुंचते हैं।
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