रायपुर। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने वर्ष 2012 के जून में हुए सारकेगुड़ा जनसंहार में प्रत्यक्ष रूप से शामिल सैनिक बलों और पुलिस के जवानों तथा इसके लिए जिम्मेदार उच्च अधिकारियों को बर्खास्त कर उन पर हत्या का मुकदमा चलाने की मांग की है। पार्टी ने यह भी मांग की है कि इस हत्याकांड का नक्सली मुठभेड़ के रूप में फ़र्ज़ीकरण करने के लिए जिम्मेदार केंद्र और राज्य की सरकार छत्तीसगढ़ की जनता विशेषकर बस्तर के आदिवासी समुदाय से माफी मांगे।

माकपा राज्य सचिवमंडल ने कहा है कि इस हत्याकांड की न्यायिक जांच की रिपोर्ट सामने आने के बाद भाजपा और उसकी तत्कालीन राज्य सरकार का आदिवासीविरोधी चेहरा खुलकर सामने आ गया है। यह हत्याकांड आदिवासियों के खिलाफ राज्य प्रायोजित दमन और ‘सलवा जुड़ूम’ अभियान की सोची-समझी साजिश का हिस्सा था।

माकपा राज्य सचिव संजय पराते ने पीड़ित आदिवासी परिवारों को 50-50 लाख रुपये मुआवजा देने की मांग करते हुए टिप्पणी की है कि 2012 की घटना की 7 साल बाद रिपोर्ट आना और दोषियों के लिए अब भी सजा का इंतज़ार करना प्राकृतिक संसाधनों की लूट के खिलाफ संघर्ष कर रहे आदिवासी समुदायों के लिए ‘न्याय पाने के लिए अंतहीन इंतजार करना’ है। इस स्थिति को स्वीकार नहीं किया जा सकता।

माकपा नेता ने कहा कि राज्य में सत्ताबदल के बाद भी प्रशासन के आदिवासीविरोधी रवैये में कोई बदलाव नहीं आया है, क्योंकि कांग्रेस सरकार भी भाजपा की कॉरपोरेटपरस्त नीतियों को ही आगे बढ़ा रही है। उन्होंने कहा है कि यदि कांग्रेस आदिवासियों की समस्याओं के प्रति वास्तव में संवेदनशील हैं, तो वनाधिकार कानून, पेसा एक्ट और 5वीं अनुसूची के प्रावधानों को सही तरीके से लागू करें, ताकि उनके साथ सदियों से जारी ‘ऐतिहासिक अन्याय’ को दूर किया जा सके।