सोशल मीडिया पर एक कविता खूब वायरल हो रही है. ये कविता दीपक विश्वकर्मा की है. कवि दीपक विश्वकर्मा अभी बालको के जनसंपर्क विभाग में हैं.

दीपक विश्वकर्मा

ये उनकी लिखी रचना है, जो उनके भोपाल की यादों से जुड़ी है. इस सरल कविता में चंद शब्दों से कवि ने बहुत सारी बातें बखान कर दी है. श्रृंगार रस की ये कविता खूब वायरल हो रही है. युवाओं के द्वारा पसंद भी की जा रही है. गौरतलब है कि दीपक विश्वकर्मा ने 1999 से 2001 तक भोपाल के माखनलाल पत्रकारिता विश्विद्यालय में मास कम्युनिकेशन की पढ़ाई की है.

 

पढ़िए कविता

शानदार यादें
ता उम्र निभाए जाने वाले रिश्ते
दूसरों से भरपूर ईमानदारी
खुद से बेईमानी

गर्ल्स हॉस्टल
बीजेपी ऑफिस
आइसक्रीम पार्लर
लाइब्रेरी
कच्ची उम्र
ढेरों नोकझोंक
रूठना मनाना

नौका बिहार
भारत भवन
मानव संग्रहालय
रेडियो स्टेशन
सात नंबर बस स्टॉप.
दस नंबर मार्केट.
न्यू मार्केट
शाहपुरा झील.
द ममी.
हम साथ साथ हैं.

मनहूस सुबह.
तेरा ठुकराना.
मेरा चोट खाना.
मेरे आंसू
लूटी हुई रियासत…
खुद को उबरने न देने का संकल्प

दोस्तों की समझाइश
अपनों के कमैंट्स
तुझे देखने की कसक
तेरे वापस आ जाने की उम्मीद
अधूरेपन का एहसास
फिर तुझसे विदाई
बेहद खास, अनछुए एहसासों के साथ

तू आज भी है
ज्यों की त्यों
मेरी हर सांस में
तंत्रिकाओं की हर एक तरंग में
असंपादित, अनिर्वचनीय

मेरे भोपाल…

कवि- दीपक विश्वकर्मा