पुरूषोत्तम पात्रा, गरियाबंद। प्रदेश भर में आज प्रशासन राष्ट्रीय बालिका दिवस के रूप में मना रही है. जिले के देवभोग विकासखण्ड के दो बेटियों की ह्रदय विदारक दास्तां हम बता रहे हैं, इन बेटियों को मदद कर हम बेटी दिवस को सफल बना सकते हैं.

हाइड्रोसेफेल्स बीमारी से पहले दो संतानों की जान जा चुकी है. तीसरी गर्भ से जन्मी बिटिया भी उसी बीमारी से ग्रसित है, टूट चुकी बेबस मां भी अब ममता के साये में मासूम की मौत का इंतजार कर रही है.

कदलीमुडा में रहने वाली 30 वर्षीय बेबस मां की हृदय विदारक दास्तां जिसने भी सुनी उसकी आंखें भर आईं, पर लाचारी ऐसी की चाह कर भी कोई इसकी मदद नहीं कर पा रहा. निलाबति नागेश की विवाह 2017 में रुक्मण नागेश से हुआ था. 2018 में जब उसे बेटा हुआ तो उसके सिर भारी थे. उम्मीद थी कि इलाज करवा कर ठीक कर लेंगे. 5 दिन बाद मासूम की मौत के साथ ही खुशी गम में बदल गया. दूसरे गर्भ में 2019 में फिर बेटा हुआ. उसी तरह ही सर बड़ा होकर पैदा हुआ था. इस बार इस गरीब दंपति ने  बेटे की जान बचाने विशाखापटनम से लेकर रायपुर तक की दौड़ लगाई. रायपुर में बेटे का ऑपरेशन करने वाले चिकित्सक ने नॉन ग्यारंटी ऑपरेशन किया.

पीड़ित ने बताया कि इलाज में जमीन जेवर बेच कर 7 लाख रुपये खर्च किये लेकिन दूसरी संतान 51 दिन जीवित रहा. ढाई माह पहले तीसरी संतान के रूप में बिटिया जन्म हुई है. बिटिया भी उसी हालातों में जन्म हुई. दो बार के कड़वे अनुभव के बाद दंपति ने अब तीसरी संतान को भगवान भरोसे छोड़ दिया है. निलाबति ने रोते हुए कहा जब तक भगवान की मर्जी होगी मेरे गोद में खेलेगी, उसकी इच्छा अब जब ले जाए. लाइलाज बता रहे इस बीमारी का दो बार इलाज करवा कर परिणाम देख चुकी हूं, इसलिए इलाज अब नहीं करुवाउंगी.

बीएमओ अंजू सोनवानी ने कहा कि मामले की जानकारी मिलने के बाद पीड़ित से मिलने पहुंची थी. मेकाहारा में बच्चे के बेहतर इलाज के लिए रेफर करने की बात कही गई तो परिजनों ने साफ मना कर दिया है.

बच्चे दानी के पास ट्यूब में सिकुड़न से होता है बीमारी

पुराने जांच रिपोर्ट के मुताबिक, निलाबति के सभी संतान कन्जोनिटिल हैड्रोसेफेल्स नामक बीमारी से ग्रसित थे. देवभोग के चिकत्सा अधिकारी डॉ सुनील भारती ने एक्सपर्ट से जानकारी एकत्र कर उनके हवाले बताया कि यह जन्मजात रोग, बच्चे दानी के पास मौजूद फेलोप्योंन ट्यूब में सिकुड़न की वजह से हुई है. तीसरे गर्भ के पहले माता को इसका इलाज करवाना था. बच्चे के एक साल होने पर ऑपरेशन के जरिये सर में भरे पानी को ऑपरेशन के जरिये निकालने से जीवित रहने की गुंजाइश होती है. स्थानीय स्तर पर वे समय से पहले इसका कोई इलाज नहीं है.

यहां मर गई मां की ममता, बीमारी से ग्रसित मासूम बेटियों को छोड़ दूसरी घर बसा ली

हैड्रोसेफेल्स से ग्रसित लाटापारा की कैकई अब 8 साल की हो गई है. जब तीन साल की थी तो इसके पिता लछिन ने घर छोड़ कर दूसरी युवती के साथ भाग कर विवाह रचा लिया. कुछ ही महीने बाद निर्दयी मा उत्जल नागेश ने बीमार कैकई व उसके भाई को बूढ़े दादी 65 वर्षीय बसन्ती नागेश के भरोसे छोड़कर भाग कर दूसरी घर बसा ली. इन 5 सालों में कभी झांकने तक नहीं आई.

वृद्धा पेंशन के भरोसे घर जीवन यापन कर रही बूढ़ी दादी ही मासूमों की परवरिश कर रही है. कैकई के अलावा उसकी 12 वर्षीय बड़ी बहन रस्मिता भी है, जो गूंगी है. 2014 में बाल सरंक्षण आयोग की तत्कालीन अध्यक्ष शताब्दी पांडे यंहा पहुंच कर मासूमों की सुध लिया थी. बड़ी बहन माना स्कूल में पढ़ रही है. कैकई को किसी मसीहा का इंतजार है.