पंजाब/नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू को बड़ा झटका दिया है. 1988 के रोड रेज मामले में सिद्धू को एक साल जेल की सजा सुनाई गई है. आपको बता दें कि पहले इस मामले में उन पर सिर्फ 1000 रुपए का जुर्माना लगाया गया था. पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई करते हुए देश की सर्वोच्च अदालत ये साफ कर दिया है कि सिद्धू को इस मामले में एक साल जेल में बिताना होगा. वहीं याचिका में कहा गया है कि सिद्धू की सजा कम नहीं की जानी चाहिए.
जानिए सिद्धू के वकील ने क्या कहा ?
सिद्धू का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता एएम सिंघवी ने न्यायमूर्ति एएम खानविलकर की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष कहा कि सजा अदालत का विवेक है और मौत की सजा के मामलों को छोड़कर कोई हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता है, जो दुर्लभ से दुर्लभ और वर्तमान मामले में दिया गया है. उन्होंने आगे कहा कि 2018 के फैसले पर फिर से विचार करने की कोई आवश्यकता नहीं है. सिंघवी ने कहा कि सजा की पर्याप्तता की अपील पर विचार नहीं किया जाना चाहिए. सरकार सजा के खिलाफ अपील में नहीं है और पीड़ित पर्याप्तता को चुनौती नहीं दे सकता. उन्होंने आगे कहा कि उनके मुवक्किल की ओर से सहयोग की कमी का कोई आरोप नहीं लगाया गया है. पीठ जिसमें न्यायमूर्ति संजय किशन कौल भी शामिल थे, उन्होंने कहा कि उनके सामने केवल यह मुद्दा है कि क्या अदालत द्वारा सजा पर सीमित नोटिस जारी किए जाने के बावजूद जिस प्रावधान के तहत सजा दी गई है, उस पर गौर करने की जरूरत है.
पीड़ित परिवार के वकील ने रखा तर्क
पीड़ित परिवार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा ने प्रस्तुत किया कि कार्डियक अरेस्ट के कारण हुई मौत सही नहीं है और पीड़ित को एक झटका मिला है. सिंघवी ने जोरदार ढंग से तर्क दिया कि यह बेहद संदिग्ध है कि मुक्का मारने से लगी चोट से मौत हो सकती है. लूथरा ने तर्क दिया कि 2018 का फैसला रिछपाल सिंह मीणा बनाम घासी (2014) के मामले में पिछले फैसले पर विचार करने में विफल रहा.
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1988 में पार्किंग को लेकर हुए विवाद में हुई थी बुजुर्ग गुरनाम सिंह की मौत
बता दें कि नवजोत सिंह सिद्धू का 27 दिसंबर 1988 को पटियाला में पार्किंग को लेकर विवाद हुआ था, जिसमें एक बुजुर्ग गुरनाम सिंह की मौत हो गई थी. आरोप है कि सिद्धू और 65 वर्षीय गुरनाम सिंह के बीच हाथापाई भी हुई थी. पुलिस ने इस घटना में नवजोत सिंह सिद्धू और उनके दोस्त रुपिंदर सिंह के खिलाफ गैर-इरादतन हत्या का मामला दर्ज किया था. बाद में सुप्रीम कोर्ट ने 1000 रुपए का जुर्माना लगाकर उन्हें बरी कर दिया था. पीड़ित पक्ष ने इसे लेकर पुनर्विचार याचिका दायर की थी. इससे पहले पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने सिद्धू को गैर इरादतन हत्या में 3 साल कैद की सजा सुनाई थी, जबकि सुप्रीम कोर्ट ने गैर इरादन हत्या में बरी कर दिया था, लेकिन चोट पहुंचाने के मामले में एक हजार रुपए का जुर्माना लगाया था.
नवजोत सिंह सिद्धू ने अपने पक्ष में दिए थे ये तर्क
पीड़ित पक्ष की ओर से पुनर्विचार याचिका लगने के बाद नवजोत सिंह सिद्धू ने एफिडेविट दाखिल किया था कि पिछले 3 दशक में उनका राजनीतिक और खेल करियर बेदाग रहा है. राजनेता के तौर पर उन्होंने न सिर्फ अपने विधानसभा क्षेत्र अमृतसर ईस्ट बल्कि सांसद के तौर पर बेजोड़ काम किया है. उन्होंने लोगों के भले के लिए कई काम किए हैं. उनसे कोई हथियार भी बरामद नहीं हुआ और उनकी मरने वाले से कोई दुश्मनी भी नहीं थी. उन्होंने कहा कि पुनर्विचार याचिका खारिज कर दी जाए. उन्हें दी गई 1 हजार जुर्माने की सजा पर्याप्त है. इसके बाद मामला अदालत में पहुंचा. सुनवाई के दौरान लोअर कोर्ट ने नवजोत सिंह सिद्धू को सबूतों का अभाव बताते 1999 में बरी कर दिया था. इसके बाद पीड़ित पक्ष निचली अदालत के फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट पहुंच गया. साल 2006 में हाईकोर्ट ने इस मामले में नवजोत सिंह सिद्धू को 3 साल कैद की सजा और एक लाख रुपए जुर्माने की सजा सुनाई थी.
सिद्धू को एक साल की सजा
इस फैसले को दोनों आरोपियों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने सिद्धू को पीड़ित के साथ मारपीट मामले में दोषी करार देते हुए हजार रुपए का जुर्माना लगाया था. इसी मामले में पीड़ित पक्ष की ओर से सुप्रीम कोर्ट में रिव्यू पिटिशन दाखिल की गई थी. जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने मार्च में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था और अब आज इस पर फैसला आ गया है. सुप्रीम कोर्ट ने सिद्धू को एक साल जेल की सजा सुनाई है. न्यायमूर्ति एएम खानविलकर की अध्यक्षता वाली पीठ ने शीर्ष अदालत के 2018 के फैसले के खिलाफ पीड़ित गुरनाम सिंह के परिवार द्वारा पुनर्विचार याचिका की अनुमति दी थी. शीर्ष अदालत ने अब सिद्धू की सजा को बढ़ाकर एक साल कर दिया. शीर्ष अदालत ने कहा कि हमने सजा के मुद्दे पर एक समीक्षा आवेदन की अनुमति दी है. हम प्रतिवादी को एक साल के कारावास की सजा देते हैं. इस मामले के संबंध में आदेश बाद में अपलोड किया जाएगा.
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