मार्कण्डेय पाण्डेय, लखनऊ: प्रत्येक साल ज्येष्ठ माह के मंगलवार को लखनऊ और आसपास के जिलों में भंडारों की धूम मची रहती है। कोई गली और रास्ता नहीं होता जहां बड़े-बड़े पांडाल और तंबू न लगे हों और पूड़ी-सब्जी, हलवा, शरबत, पन्ना खाने-पीने वालों की भीड़ न लगी हो। सबसे शानदार बात यह है कि कई जगहों पर इन भंडारों का संचालन करते या मदद करते मुस्लिम समाज के लोग भी आपको मिलेंगे। वैसे भी लखनऊ शहर नवाबों का कहा जाता रहा है और यहां वास्तव में गंगा-जमुनी तहजीब का का प्यार आपको देखने को मिलेगा। तभी तो एक हिंदू-मुस्लिम विवाद में जब मुसलमानों ने वाजिद अली शाह को चिट्ठी भेजी और लिखा कि हिंदुओं ने मस्जिद गिरा दी है। नवाब का जबाव आया कि-
हम इश्क के बंदे हैं, मजहब से नहीं वाकिफ।
गर काबा हुआ तो क्या, बुतखाना हुआ तो क्या।।
खैर, हम उसी नवाब वाजिद अली शाह की बात करते हैं। नाका हनुमान गढ़ी के महंत रामदास बताते हैं कि अवध के नवाब वाजिद अली शाह असाध्य रोग से पीडि़त थे। उनकी बेगम ने लखनऊ के अलीगंज स्थित प्राचीन हनुमान मंदिर में मनौती मानी कि यदि नवाब स्वस्थ हो गए तो भंडरा करुंगी। उसी दिन से चमत्कारिक रुप से नवाब की सेहत में सुधार होने लगा था। धीरे-धीरे नवाब पूरी तरह स्वस्थ हो गए। इसके बाद उनकी बेगम ने मंदिर में चांदी का सितारा और काफी बड़ा केसरिया ध्वज भेंंट किया। यह वक्त ज्येष्ठ मास का मंगलवार रहा होगा। उसी समय से ज्येष्ठ मास के मंगलवार को भंडार की शुरूआत हो गई। अब यह लखनऊ के अलावा आसपास के जिलों और प्रदेश के कई स्थानों पर मनाया जाने लगा है।

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इस बार पड़े चार मंगल

ज्येष्ठ मास में इस बार चार मंगल पड़े हैं। पहला मंगल 28 मई को था, दूसरा 4 जून को, तीसरा बड़ा मंगल 11 जून को और चौथा बड़ा मंगल आज 18 जून को पूरे शहर में धूमधाम से मनाया जा रहा है। इसमें अमीर-गरीब सभी सहर्ष हिस्सा लेते हैं। कई जगहों पर मुस्लिम समाज के लोग भी भंडारा में शामिल रहते हैं। लखनऊ के मंगल के भंडारे में उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य, उपमुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक समेत कई मंत्री, विधायक और सांसद भी शामिल रहते हैं। अब तो लोग मंगलवार के अलावा शनिवार को भी जगह-जगह भंडारा करने लगे हैं। यहां तक कि इस बार पशु-पक्षियों के लिए भी भंडारा लगाया गया है।

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बड़े मंगल दूसरी कहानी
लगभग 400 सालों पहले लखनऊ में भंडारा का आयोजन शुरू हुआ लगभग इस बात को लेकर सभी सहमत है। एक मान्यता यह भी है कि लखनऊ में महामारी के प्रकोप से बचने के लिए लोगों ने हनुमान जी की पूजा शुरू कर दी। जब मन्नत पूरी हुई तब भंडारा शुरू हुआ। हालांकि एक मान्यता यह भी है कि जब बादशाह कैसरबाग का निर्माण करा रहा था तभी कोई केसर का व्यापारी आया। उसकी केसर बिक नहीं रही थी तब उसने अलीगंज के हनुमान मंदिर में प्रार्थना किया और बादशाह ने सारी केसर खरीद ली। केसर बाग में केसर लगवा दिया। इसके बाद व्यापारी ने हनुमान जी का भंडार शुरू किया। लेकिन लोक मान्यता में नवाब की कहानी को सच्चाई के अधिक करीब लोग मानते आ रहे हैं।

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