सुप्रिया पाण्डेय, रायपुर। नक्सल पीड़ित 500 से ज्यादा परिवार ने शासन की योजनाओं का लाभ न मिलने का आरोप लगाया है. कहा कि हम शासन की योजनाओं से आकर्षित होकर समर्पण किया था. आश्वासन के बाद समाज की मुख्य धारा से जुड़े थे. उस दौरान बोला गया था कि परिवार के लोगों को शासन की पुनर्वास योजना का लाभ मिलेगा. लेकिन हम लोगों को योजनाओं का लाभ नहीं मिल रहा है. वहीं कुछ ग्रामीण सरकार के लिए मुखबिरी करते थे. और उसे नक्सलियों द्वारा पहचान लिया गया, अब उन्हें नौकरी से नहीं निकालने की मांग की है.

अपनी मांग को लेकर सभी राजधानी रायपुर पहुंचे हुए हैं. गृहमंत्री से मिलने के लिए समय मांगा था. लेकिन उनसे मुलाकात नहीं हो पाई. अब सभी प्रेस क्लब के पास मोतीबाग गार्डन के बाहर बैठे हुए हैं. आत्मसमर्पित नक्सलियों का कहना है कि वे पुनर्वास योजना के लाभ की मांग कर रहे हैं. पुनर्वास योजना का लाभ लेने के लिए उन्होंने खुद को आत्मसमर्पित किया था. लेकिन उनके सरेंडर करने के बाद भी योजना का लाभ नहीं मिल पा रहा है.

मांग को लेकर कांकेर, कोण्डागांव, नारायणपुर, बीजापुर, दंतेवाड़ा, सुकमा से करीब 500 से ज्यादा नक्सल पीड़ित पहुंचे हैं. प्रेस क्लब के बाहर मोतीबाग में तीन तरह के लोग बैठे हुए हैं जो गृहमंत्री से मुलाकात करने आए थे.

1. ऐसे परिवार जिनमें कुछ लोग नक्सलियों की गतिविधियों को पुलिस तक पहुंचाते थे.
2. नक्सली जिन्होंने शासन की योजना से आकर्षित होकर आत्मसमर्पण किया हो.
3. ऐसे कुछ परिवार के लोग जो अब भी पुलिस की मुखबिरी करते हैं लेकिन इन्हें नक्सलियों द्वारा पहचान लिया गया है. ये चाहते हैं कि इन्हें नौकरी से ना निकाला जाए.

आरोप है कि उन्हें अनुकंपा नियुक्ति नहीं मिल रही है. जिन परिवार के लोग नक्सल हिंसा में मारे गए वे चाहते है कि उन्हे पूनर्वास नीति के तहत व्यवस्था दी जाए. मुखबिरी करने वाले लोग चाहते है कि इन्हें नौकरी से ना निकाला जाए.
कुछ नक्सली ऐसे भी है, जिन्हें समर्पण करने के बाद भी कोई लाभ नहीं मिला.

इनका आरोप है कि योजना का लाभ लेने के लिए कुछ लोगों ने हाई कोर्ट में याचिका लगाई थी. लेकिन सिर्फ खानापूर्ति की गई राशनकार्ड बनाए गए, लेकिन बच्चों को छात्रवृत्ति भी नहीं मिली है. मुखबिर अगर मार दिए जाते हैं तो भारत सरकार के द्वारा 3 लाख रूपए की आर्थिक सहायता दी जाती है और छत्तीसगढ़ सरकार के द्वारा 2 लाख रूपए की मदद की जाती है. दोनों राशि मिलाकर 5 लाख रूपए दी जानी थी वो भी नहीं दिया गया.
यदि किसी मुखबिर की मृत्यु होती है तो उनके परिवार में किसी एक सदस्य को पात्रता के अनुसार नौकरी दी जाती है लेकिन उन्हे प्यून बना दिया गया.