कोवैट की स्टडीज में सामने आया है कि कोविशिल्ड (Covishield) के दो डोज के बाद एंटीबॉडिज की मात्रा कोवैक्सीन (Covaxin) की तुलना में ज्यादा तैयार होती हैं. हालांकि, कोरोना के लिए दोनों वैक्सीन को प्रभावी भी बताया गया है, इसलिए जिन लोगों ने कोवैक्सीन लगवाया है उनके लिए चिंता की बात नहीं है. इस स्टडी में ये भी कहा गया है कि कोवैक्सीन के मामले में ब्रेक थ्रू इंफेक्शन की संख्या कम पाई गई है. ये अध्ययन देश के 22 शहरों के 515 डॉक्टर्स पर किया गया है. इसमें 95 फीसदी में एंटीबॉडी दो डोज के वैक्सीन के बाद तैयार देखा गया है. ज़ाहिर है दोनों वैक्सीन के बाद शरीर में समुचित एंटीबॉडी तैयार हो रही है जो कोवैट के इस अध्ययन से साबित हो रहा है.
इस अध्ययन (स्टडी ) में शामिल लोगों के खून की जांच और एंटीबॉडी की मात्रा के साथ-साथ खास एंटीबॉडी की मात्रा की जांच की गई जो वायरस के स्पाइक प्रोटीन के खिलाफ कारगर है. स्टडी में देखा गया कि वायरस के स्पाइक प्रोटीन के खिलाफ एंटीबॉडी कोविशिल्ड के केसेज में ज्यादा तैयार हो रहा है. भारत में वैक्सीनेशन के दरमियान और उसके बाद वैक्सीन शरीर में कैसा असर करता है इस पर स्टडीज बहूत कम हुई हैं. यही वजह है कि कोवैट की स्टडी बेहद महत्वपूर्ण मानी जा रही है.
कोवैट की स्टडी का आधार क्या है
टीवी 9 की रिपोर्ट के मुताबिक इस अध्ययन में महिला, पुरुष, कोमोरबिडिटी से ग्रसित लोग समेत 60 साल से ज्यादा उम्र के लोग भी शामिल हैं. गौर करने वाली बात यह है कि इस रिसर्च को जनवरी से लेकर मई महीने के दरमियान किया गया है, जब भारत में कोरोना की दूसरी लहर चरम पर थी. वैसे इस स्टडी को डॉक्टर्स का एक समूह निरीक्षण करेगा और उनके अप्रूवल के बाद ही इसे जर्नल में प्रकाशित होने की अनुमति मिल सकेगी. जर्नल में प्रकाशित होने के बाद ही क्लिनिकल प्रैक्टिस में इस अध्ययन को प्रैक्टिस में लाए जाने का चलन है.
रिसर्च की क्या है खास बातें
कोविशिल्ड के सिंगल डोज से कोवैक्सीन की तुलना में 10 गुना ज्यादा एंटीबॉडी तैयार होती है. इतना ही नहीं कोवैक्सीन के दो डोज लेने के बाद पाया गया कि कोविशिल्ड के दो डोज के बाद कोवैक्सीन की तुलना में 6 गुना ज्यादा एंटीबॉडी तैयार होती है. मतलब साफ है कि कोविशिल्ड के सिंगल डोज में कोवैक्सीन की तुलना में 6 गुना ज्यादा एंटीबॉडी तैयार होती है. जबकि कोवैक्सीन के दूसरे डोज के बाद भी एंटीबॉडी तैयार होने की मात्रा में थोड़ी बढ़ोतरी होती है, लेकिन कोविशिल्ड और कोवैक्सीन का अंतर फिर भी 6 गुना होता है.
इतना ही नहीं कोविशिल्ड के सिंगल डोज के मामले में सोरेपॉजिटिविटी चार गुना बढ़ा हुआ पाया गया. इस रिसर्च में पाया गया कि कोविशिल्ड के 98 फीसदी मामलों में एंटीबॉडी तैयार होती है जो लोग कोरोना के शिकार नहीं हुए थे. वहीं कोवैक्सीन के मामले में 80 फीसदी एंटीबॉडी तैयार होती है.
रिसर्च की महत्वपूर्ण बातें
स्टडी में दो डोज वैक्सीन लेने के दरमियान और उसके 21 से 36 वें दिन तक 6 फीसदी लोग कोविड से संक्रमित पाए गए. रिसर्च में शामिल लोगों में से 3 वैक्सीन के पहले डोज के बाद वहीं 27 स्वास्थ्यकर्मी दूसरे डोज के बाद संक्रमित हुए. रिसर्च के ऑथर और जी डी हॉस्पीटल और डाइबिटीज इंस्टीट्यूट ऑफ कोलकाता के डॉ ए के सिंह के मुताबिक दूसरे डोज के बाद स्वास्थ्यकर्मियों में संक्रमण की वजह हाई वायरल लोड है. दरअसल डॉ ए के सिंह ने बताया कि अप्रैल महीने में कोरोना महामारी चरम पर थी और स्वास्थ्यकर्मी दो डोज के बाद भी एक्सपोज्ड ज्यादा हो रहे थे.
रिसर्च में ब्रेकथ्रू इंफेक्शन के मामले कोविशिल्ड के केसेज में 5.5 फीसदी बताया गया है, वहीं कोवैक्सीन के केसेज में संक्रमण 2.2 फीसदी बताया गया है. रिसर्च में इसका कोवैक्सीन के मामलों में ब्रेकथ्रू की कमी की वजह का उल्लेख नहीं किया है. वैसे एक्सपर्ट मानते हैं कि 515 लोगों में 90 को कोवैक्सीन दिया गया था इसलिए ब्रेकथ्रू केसेज की कमी की वजह ये हो सकती है. वहीं दूसरी वजह कोवैक्सीन के मामले में बेहतर सेलुलर इम्यूनिटी कारण हो सकता है.
वैसे स्टडी में कोवैक्सीन मामले में टी सेल्स इम्यूनिटी का अध्ययन नहीं किया गया है, जिसको लेकर दावा किया गया था कि इसकी वजह से कोवैक्सीन लंबे समय तक इम्यूनिटी जनरेट कर सकता है. भारत बायोटेक और आईसीएमआर ने कोवैक्सीन को लेकर कहा है था कि ये ब्रॉडर इम्यून रिस्पांस जनरेट करता है जो कोरोना वायरस के अलग-अलग जगहों पर अटैक कर उसे न्यूट्रलाइज करता है.
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