सुप्रीम कोर्ट ने मराठा आरक्षण पर महाराष्ट्र सरकार को बड़ा झटका दिया है. अदालत ने महाराष्ट्र में मराठों के लिए 10 फ़ीसदी आरक्षण देने के राज्य सरकार के निर्णय को निरस्त कर दिया है.
साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि इंदिरा साहनी मामले पर फिर से विचार करने की जरूरत नहीं है. जस्टिस अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने कहा कि मराठा समुदाय को 10 फीसदी आरक्षण देने से आरक्षण की अधिकतम सीमा (50 फ़ीसदी) को पार करती है, लिहाजा यह असंवैधानिक है. पांच सदस्यीय संवैधानिक पीठ में न्यायमूर्ति अशोक भूषण के अलावा न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव, न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर, न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति एस रवीन्द्र भट भी शामिल हैं. दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने 26 मार्च को मराठा आरक्षण को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि मराठा समुदाय के लोगों को शैक्षणिक व सामाजिक रूप से पिछड़ा नहीं करार दिया जा सकता. ऐसे में उन्हें आरक्षण के दायर में लाना सही नहीं है. इससे पहले बंबई हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र के शिक्षण संस्थानों और सरकारी नौकरियों में मराठा समुदाय को आरक्षण देने के राज्य सरकार के फैसले को बरकरार रखा था.
क्या है आरक्षण का गणित
विभिन्न समुदायों व आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को दिए गए आरक्षण को मिलाकर महाराष्ट्र में करीब 75 फीसदी आरक्षण हो गया है. 2001 के राज्य आरक्षण अधिनियम के बाद, महाराष्ट्र में कुल आरक्षण 52% था. 12-13% मराठा कोटा के साथ राज्य में कुल आरक्षण 64-65% हो गया था. केंद्र द्वारा 2019 में घोषित आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) के लिए 10% कोटा भी राज्य में प्रभावी है.
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