बंगलुरु. श्वसन तंत्र के बहुत से गंभीर नुक्सान अक्सर अपरिवर्तनीय होते हैं, ऐसे में बहुत से मामलों में मरीज़ के ठीक हो जाने के बाद भी सांस की समस्या जारी रहती है. विशेषज्ञों के अनुसार फेफड़ों का प्रत्यारोपण बहुत से गंभीर मामलों में जान बचाने का बेहतर विकल्प है. देखा गया है कि कोविड महामारी के दौरान भी स्वस्थ फेफड़ों का महत्त्व व्यापक रूप से समझा गया.
लैंसेट ग्लोबल के आंकड़ों के अनुसार गंभीर श्वसन समस्याओं के मामलों में हमारे देश में बहुत चिंताजनक स्थिति है (32%), और यह संख्या विश्व की जनसँख्या का 17.8 फ़ीसदी है; इसमें इंटरस्टाईटल लंग डिजीज 66 फ़ीसदी, ब्रोंकाइटिस 9.85 फ़ीसदी और पल्मोनरी हाइपरटेंशन 7 फ़ीसदी है. जल्द से जल्द डायग्नोसिस और आधुनिक इलाज व्यक्ति के जल्द ठीक होने का आश्वासन होते हैं. अपने इसी प्रयास को आगे बढ़ाते हुए हाल ही में एनएच बंगलुरु ने एमएमआई नारायणा सुपरस्पेशेलिटी अस्पताल रायपुर में “एडवांस रेस्पिरेटरी फेलियर एंड लंग ट्रांसप्लांट” के नाम से एक क्लिनिक की शुरुवात की. यहाँ अस्पताल के विशेषज्ञ लंग ट्रान्स्प्लान्ट, पल्मोनरी हाइपरटेंशन, लम्बे समय से चली आ रही फेफड़ों की समस्या आदि पर परामर्श देंगे.
क्लिनिक 20 नवम्बर, 2021 को लॉन्च किया गया. इसके साथ ही इस नए क्लिनिक में दी जाने वाली सेवाओं के बारे आम जनता से साझा करने और श्वसन संबंधी समस्याओं पर जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से एक कांफ्रेंस का आयोजन किया गया. कांफ्रेंस में डॉक्टर बाशा जे खान और डॉक्टर दीपेश मस्की ने अपने-अपने अनुभव साझा किये व फेफड़ों के बेहतर स्वास्थ्य के विषय में भी जागरूक किया. डॉक्टर बाशा जे खान एनएच एमएमआई रायपुर में नियमानुसार मरीजों को परामर्श देंगे. अब रायपुर व उसके आस पास के इलाकों के लोगों के पास बेहतर सर्विस और कुशल व अनुभवी विशेषज्ञों का परामर्श दोनों उपलब्ध होंगे.
डॉक्टर बाशा जे खान, सीनियर कंसल्टेंट पल्मोनोलोजी/ इंटेंसिव केयर, मेडिकल डायरेक्टर- लंग ट्रांसप्लांट, नारायणा हेल्थ सिटी सिटी बंगलुरु ने कहा, “हालाँकि हाल के दशकों में इलाज के तरीकों में आधुनिकताएं आईं हैं लेकिन हर तबके तक इनकी पहुँच अभी भी सीमित है. फेफड़ों में होने वाले गंभीर नुक्सान रेस्पीरेटरी फेलियर तक ले जाते हैं. ऐसे में मूल कारणों का इलाज समय से होना बेहद ज़रूरी है. फेफड़ों की बीमारी के आखिरी स्टेज से जूझ रहे बहुत से मरीज़ों के लिए लंग ट्रांसप्लांट एक प्रकार का जीवन बचाने वाला विकल्प है लेकिन जागरूकता की कमी के कारण रोग की गंभीरता बढ़ती जाती है. हमारे अस्पताल के कुशल व अनुभवी सर्जन आधुनिक तरीके से लंग ट्रांसप्लांट करते हैं. इस क्लिनिक के साथ हम उम्मीद करते हैं ऐसे अधिक से अधिक मरीजों की हम मदद कर पायेंगे.
लंग ट्रांसप्लांट का प्रोसीजर जटिल प्रोसीजर में से एक है, इसका डोनर जीवित व मृत दोनों हो सकता है. भारत में सबसे पहला सफल लंग ट्रांसप्लांट 11 जुलाई 2012 में किया गया था. हम बहुत दूर आ चुके हैं लेकिन अभी भी बहुत सी बड़ी बड़ी चुनौतियां हमारे सामने खड़ीं हैं, इनमें मरीज़ का देर से अस्पताल आना, उसका रिहैब में हिस्सा न ले पाना, सर्जरी की कीमत और फॉलो अप आदि शामिल हैं. एक अन्य अध्ययन के मुताबिक 45 वर्ष व उससे अधिक उम्र के लोगों के फेफड़ों की स्थिति सामान्य नहीं है.
डॉक्टर दीपेश मस्के, सीनियर कंसल्टेंट, पल्मोनोलॉजी एंड क्रिटिकल केयर एनएच एमएमआई नारायणा सुपरस्पेशलिटी अस्पताल, रायपुर ने कहा, “थोड़ा सा भी ज़्यादा काम करने पर पर छाती में भारीपन, सांस लेने में तकलीफ, व्यायाम आदि करने की क्षमता में कमी आना आदि फेफड़ों सम्बंधित रोगों के शुरुवाती लक्षण हो सकते हैं. देर करने से केवल गंभीरता बढ़ेगी और स्थिति और ख़राब होने की सम्भावना बनेगी. इसलिए कभी भी ऐसे लक्षणों को नज़रअंदाज़ न करें और सम्बंधित डॉक्टर से परामर्श लें. हमारी ओपीडी रोगियों के किसी स्टेज पर इलाज करने को तत्पर है.”
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