पटना। बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव की सुगबुगाहट शुरू हो चुकी है और इसी के साथ राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सामने कई गंभीर राजनीतिक चुनौतियां खड़ी हो गई हैं। लंबे समय तक सत्ता में रहने के बावजूद अब नीतीश कुमार को अपनी पार्टी जनता दल (यूनाइटेड) की साख बचाने और सत्ता में वापसी सुनिश्चित करने के लिए जमीनी स्तर पर व्यापक रणनीति और मेहनत की जरूरत है।
भारी नुकसान का कारण बन सकती है
नीतीश कुमार की सबसे बड़ी चुनौती उनकी पार्टी के भीतर पनप रही गुटबाजी और असंतोष है। समय-समय पर यह खबरें सामने आती रही हैं कि जेडीयू के अंदर कई नेता गुटों में बंटे हुए हैं, जिससे पार्टी की एकता खतरे में है। यदि इस स्थिति को समय रहते नहीं संभाला गया तो यह आगामी चुनाव में भारी नुकसान का कारण बन सकती है।
मुख्यमंत्री को बड़ा फोकस करना होगा
इसके अलावा राज्य के विकास, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे अहम मुद्दों पर भी मुख्यमंत्री को बड़ा फोकस करना होगा। इन क्षेत्रों में दीर्घकालिक और ठोस कार्यों के जरिए ही जनता का भरोसा दोबारा जीता जा सकता है। विपक्ष लगातार इन बिंदुओं पर सरकार को घेर रहा है, ऐसे में नीतीश और उनके मंत्रियों को अधिक सतर्कता से काम करना होगा।
राजनीतिक विश्वसनीयता पर भी सवाल उठते रहे
हालांकि, इस बार नीतीश कुमार को एनडीए गठबंधन का साथ मिला है, जिसमें भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) प्रमुख सहयोगी है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में नीतीश के बार-बार गठबंधन बदलने के कारण उनकी राजनीतिक विश्वसनीयता पर भी सवाल उठते रहे हैं। पहले महागठबंधन, फिर एनडीए, और फिर वापसी—इन उतार-चढ़ावों का असर जनता की धारणा पर पड़ा है।
चुनावी माहौल बनना शुरू हो चुका है
अब जब चुनावी माहौल बनना शुरू हो चुका है, तो यह देखना अहम होगा कि नीतीश कुमार कैसे अपने पुराने अनुभव, गठबंधन की मजबूती और जमीनी पकड़ के जरिए बिहार की जनता और सहयोगी दलों को एक साथ लेकर आगे बढ़ते हैं। यदि समय रहते अंदरूनी कलह को खत्म कर जनता के लिए ठोस काम किए जाते हैं, तो नीतीश कुमार एक बार फिर सत्ता में वापसी कर सकते हैं। वरना यह चुनाव उनके लिए अब तक की सबसे कठिन परीक्षा साबित हो सकता है।
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