दिल्ली हाईकोर्ट ने सोमवार को एक महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा कि महज़ यह आरोप कि पत्नी ने विवाहिता जीवन के दौरान अपने गहने अपने पास रख लिए या ले गई, अपने आप में पति के खिलाफ ‘क्रूरता’ (Cruelty) का आधार नहीं बन सकता। अदालत ने कहा कि ऐसे आरोप को वैवाहिक विवाद का हिस्सा माना जा सकता है, लेकिन इसे अपराध या दांपत्य क्रूरता के स्तर पर नहीं माना जाएगा।

जस्टिस नीना बंसल कृष्णा की पीठ ने इस आधार पर 66 वर्षीय एक वकील के खिलाफ चल रही कार्यवाही को पूरी तरह रद्द कर दिया। मामला पत्नी की ओर से लगाए गए उन आरोपों से जुड़ा था, जिनमें कहा गया था कि पति ने उसके गहनों पर कब्ज़ा कर लिया था और उसकी मानसिक प्रताड़ना की गई थी। अदालत ने कहा कि गहनों का स्वामित्व या संरक्षण घरेलू विवाद का मुद्दा हो सकता है, जो परिवार न्यायालय में सिविल तौर पर सुलझाया जा सकता है, लेकिन इसे सीधे धारा 498A (दहेज प्रताड़ना) के तहत अपराध नहीं माना जा सकता जब तक कि स्पष्ट और गंभीर क्रूरता के ठोस सबूत न हों।

पुलिस ने भी पति का साथ दिया

अदालत में सुनवाई के दौरान दिल्ली पुलिस ने भी पति की याचिका का समर्थन किया। पुलिस ने कोर्ट को बताया कि महिला ने शिकायत दर्ज कराते समय अपना पहले से हो चुका तलाक छुपाया था, जो रिकॉर्ड में बाद में सामने आया। पुलिस ने इसे “स्पष्ट धोखे” की श्रेणी में बताया और कहा कि मामला जानबूझकर गलत तरीक़े से दर्ज कराया गया था।

वहीं, पत्नी ने अदालत से राहत की गुहार लगाई, यह कहते हुए कि उसे उसके वैवाहिक जीवन में मानसिक प्रताड़ना और अधिकारों के हनन का सामना करना पड़ा। लेकिन कोर्ट ने कहा कि अस्पष्ट और असंगत आरोप दांपत्य क्रूरता सिद्ध करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं।

सुप्रीम कोर्ट का पुराना फैसला आया काम

दिल्ली हाईकोर्ट ने वैवाहिक विवाद से जुड़े एक मामले में महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए कहा है कि सिर्फ यह आरोप कि पत्नी ने शादी के दौरान मिले गहने अपने पास रख लिए या ले गई, अपने आप में पति के खिलाफ दहेज प्रताड़ना (धारा 498A) का आधार नहीं बन सकता। अदालत ने कहा कि क्रूरता की कानूनी परिभाषा में ऐसी परिस्थितियाँ तभी आती हैं, जब पत्नी को मानसिक या शारीरिक पीड़ा देने के ठोस सबूत हों।

जस्टिस नीना बंसल कृष्णा की बेंच ने इस संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट के अरविंद सिंह केस का हवाला दिया। कोर्ट ने कहा, “क्रूरता का मतलब है ऐसा व्यवहार जो पत्नी को शारीरिक चोट या मानसिक कष्ट दे। केवल गहनों का विवाद इस श्रेणी में नहीं आता। मान लीजिए पति ने 40 लाख के गहने उठा भी लिए हों, तब भी यह 498A के तहत क्रूरता नहीं कहलाएगा, जब तक अन्य प्रताड़ना के प्रमाण न हों।” अदालत ने यह भी टिप्पणी की कि धमकी देने और वीडियो बनाने जैसे आरोपों के संबंध में कोई सबूत प्रस्तुत नहीं किया गया, और यह मामले को अनावश्यक रूप से भारी दिखाने की कोशिश प्रतीत होती है।

सुनवाई के दौरान दिल्ली पुलिस ने भी पति की याचिका का समर्थन किया। पुलिस ने कोर्ट को बताया कि महिला ने एफआईआर दर्ज कराते समय अपना पहले से हुआ तलाक छुपाया, जिसे पुलिस ने “स्पष्ट धोखा” बताया। दूसरी ओर, पत्नी ने दलील दी कि उसे मानसिक प्रताड़ना झेलनी पड़ी, लेकिन अदालत ने कहा कि आरोप अस्पष्ट और असंगत हैं। अदालत ने 66 वर्षीय वकील पति के खिलाफ दर्ज कार्यवाही को पूरी तरह रद्द कर दिया।

क्या है पूरा मामला?

मामला अपने आप में असामान्य परिस्थितियों से शुरू हुआ था। याचिकाकर्ता पेशे से वकील हैं और उन्होंने जिस महिला की ओर से तलाक का केस लड़ा, बाद में उसी महिला से उनका व्यक्तिगत संबंध बन गया। दोनों ने वर्ष 2007 में विवाह किया। हालांकि अदालत में सामने आए रिकॉर्ड के अनुसार, महिला का पहला तलाक 2010 में हुआ, यानी 2007 में किया गया विवाह कानूनी रूप से वैध नहीं था। इसके बाद संबंध बिगड़ने लगे। महिला ने आरोप लगाया कि वकील ने उसे धोखे में रखा, जबकि पति ने दावा किया कि वह स्वयं भी वास्तविक तलाक की स्थिति से अनभिज्ञ थे।

संबंध टूटने के बाद पत्नी ने पति के खिलाफ FIR दर्ज कराई, जिसमें गहने रखने, धमकी और प्रताड़ना के आरोप लगाए गए। इसी FIR के आधार पर मामला निचली अदालत में चल रहा था, जिसे अब दिल्ली हाईकोर्ट ने रद्द कर दिया।

महिला द्वारा दर्ज कराई गई FIR में आरोप था कि पति ने उनके जॉइंट बैंक अकाउंट से लाखों रुपये निकाल लिए और घर के लॉकर में रखे लाखों रुपये के गहने भी अपने पास रख लिए। आरोप यह भी था कि उन्हीं गहनों को गिरवी रखकर पति ने नया घर खरीदा। इसके अलावा महिला ने यह भी दावा किया कि पति ने उसके निजी वीडियो लीक करने की धमकी दी।

इन आरोपों के बाद पति ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की और कहा कि चूंकि 2007 में हुआ विवाह कानूनी रूप से वैध नहीं था. क्योंकि पत्नी का पहला तलाक 2010 में हुआ ऐसी स्थिति में धारा 498A (क्रूरता / दहेज प्रताड़ना) लागू ही नहीं होती। वकील ने तर्क दिया कि “अगर विवाह वैध नहीं है, तो वैवाहिक क्रूरता का सवाल ही नहीं उठता।”

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