दंतेवाड़ा। जिले के मदाड़ी बालक आश्रम की हालत बद से बदतर है. यहां तक कि आश्रम में आदिवासी बच्चों को खाने के लिए खाना तक नहीं है और वे गांववालों से मांग-मांगकर खाना खाने को मजबूर हैं.
कुआंकोंडा विकासखंड में संचालित मदाड़ी बालक आश्रम में पढ़ रहे छोटे-छोटे बच्चों को सिर्फ नमक और चावल खाने के लिए दिया जा रहा है.
लल्लूराम डॉट कॉम की टीम ने जब आश्रम की हालत का जायजा लिया, तो हैरान रह गई. यहां आश्रम और बच्चों की हालत दयनीय थी. बच्चे जिस माहौल में वहां रह रहे हैं, वो रोंगटे खड़े करने वाला है. इन तस्वीरों को देखकर आप भी समझ जाएंगे कि शिक्षा विभाग और शासन के दावों में कितना दम है.
फटे बिस्तर और टूटे पलंग पर सोने को मजबूर नौनिहाल
मदाड़ी बालक आश्रम में बच्चों की दर्ज संख्या 50 है. ये अतिरिक्त कक्ष में लगाया जा रहा है. बच्चों के सोने वाले कमरे में 17 बिस्तर हैं. एक बिस्तर पर 3 बच्चे सोते हैं. बिस्तर की हालत भी दयनीय है. फटे बिस्तर, फटी मच्छरदानी, टूटे पलंग पर नौनिहाल सोने को मजबूर हैं.
कई बच्चे दुर्गा पूजा में घर चले गए हैं, लेकिन जगरगुंडा जैसे पहुंचविहीन गांवों के बच्चे अब भी आश्रम में हैं.
खाने को खाना नहीं
यहां के छात्र आयतु, मुकेश, राहुल और रवि ने बताया कि उन लोगों के लिए राशन नहीं है. वे पपीता और कुंदरू गांव से मांग कर लाए हैं. वहीं खाना भी खुद ही बनाना पड़ रहा है. आश्रम के पास रहने वाले ग्रामीण नंदकुमार ने बताया कि आश्रम अधीक्षक किरन्दुल से आते हैं, जो कभी कभार ही आश्रम में आते हैं.
आश्रम में राशन के नाम पर महज चावल और नमक दिखाई दिया. बाकी बर्तन खाली पड़े दिखे. अलमारी में जरूर कुछ सड़े प्याज और लाल मिर्ची दिखी.
आश्रम की हालत की जानकारी देने के लिए लल्लूराम डॉट कॉम की टीम किरंदुल स्थित आश्रम अधीक्षक के घर पहुंची. यहां आश्रम अधीक्षक की किराने की दुकान संचलित होती है. घंटों इंतजार करने के बाद आश्रम अधीक्षक ज्ञान सिंह कतलाम से मुलाकात हुई, तो गलती स्वीकारने के बजाए वे पत्रकारों को ही नसीहत देने लगे और सवाल का जवाब दिए बिना ही रवाना हो गए.
शिक्षा विभाग कुआकोंडा के मण्डल संयोजक रूपकुमार झाड़ी के सामने हमने मामले को रखा. इसके बाद रूपकुमार आश्रम पहुंचे और छात्रों से बातचीत की. बातचीत में छात्रों ने आश्रम में चल रही अव्यवस्था का खुलासा किया. जिसपर उन्होंने मामले को देखने का आश्वासन दिया.