दिल्ली हाई कोर्ट(Delhi High Court) ने केंद्र सरकार(Central Government) से यह सवाल उठाया है कि महिलाओं को भारतीय सेना की प्रमुख अकादमियों, जैसे कि इंडियन मिलिट्री एकेडमी (IMA), इंडियन नेवल एकेडमी (INA) और एयर फोर्स एकेडमी (AFA) में CDS के माध्यम से भर्ती क्यों नहीं किया जाता. यह प्रश्न कोर्ट में एक जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान सामने आया.
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एक वकील कुश कालरा द्वारा हाई कोर्ट में याचिका दायर की गई है. दिल्ली हाई कोर्ट की चीफ जस्टिस देवेंद्र कुमार उपाध्याय की अध्यक्षता वाली बेंच ने इस याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार और अन्य संबंधित पक्षों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है.
कोर्ट में दाखिल याचिका में क्या कहा गया?
दिल्ली हाई कोर्ट में दायर एक याचिका में कहा गया है कि UPSC ने 28 मई 2025 को CDS परीक्षा दो का विज्ञापन जारी किया, जिसमें महिलाओं को केवल ऑफिसर्स ट्रेनिंग अकैडमी (OTA), चेन्नई के लिए आवेदन करने की अनुमति दी गई है. इसके अलावा, अन्य तीन अकादमियों में केवल पुरुषों को ही आवेदन करने की अनुमति है.
दिल्ली हाई कोर्ट में याचिकाकर्ता ने यह तर्क प्रस्तुत किया कि UPSC के विज्ञापन में एक ओर महिला उम्मीदवारों को आवेदन करने के लिए प्रोत्साहित किया गया है, जबकि दूसरी ओर उन्हें सेना की प्रमुख अकादमियों से बाहर रखा गया है. यह स्थिति स्पष्ट रूप से भेदभाव का उदाहरण है.
सुप्रीम कोर्ट के पुराने फैसले का दिया हवाला
याचिकाकर्ता का तर्क है कि यह नीति संविधान के अनुच्छेद 14, 16 और 19 का उल्लंघन करती है, साथ ही यह सुप्रीम कोर्ट के पूर्व के आदेशों के भी खिलाफ है. हाईकोर्ट में प्रस्तुत याचिका में 2020 के सुप्रीम कोर्ट के एक महत्वपूर्ण निर्णय का उल्लेख किया गया है, जिसमें यह स्पष्ट किया गया था कि महिलाओं को सेना में स्थायी कमीशन और कमांड की जिम्मेदारी दी जानी चाहिए, जैसे कि पुरुषों को प्रदान की जाती है.
साल 2021 में सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के बाद महिलाओं को NDA परीक्षा में शामिल होने की अनुमति दी गई. याचिका में यह तर्क दिया गया था कि महिलाओं को IMA, INA और AFA में प्रवेश से वंचित करने से उनके करियर के अवसर सीमित हो जाते हैं, जिससे वे केवल शॉर्ट सर्विस कमीशन तक ही सीमित रह जाती हैं.
नवंबर में दिल्ली हाई कोर्ट करेगा सुनवाई
यह स्थिति न केवल अन्याय है, बल्कि संविधान द्वारा सुनिश्चित किए गए समानता के अधिकारों का भी उल्लंघन करती है. याचिकाकर्ता का तर्क है कि CDS परीक्षा के माध्यम से महिलाओं को तीन प्रमुख एकेडमियों से बाहर रखना न केवल मनमानी और भेदभावपूर्ण है, बल्कि यह सशस्त्र बलों में उनके दीर्घकालिक करियर और नेतृत्व भूमिकाओं के विकास में भी बाधा उत्पन्न करता है.
यह नीतिगत भेदभाव सेना में महिलाओं की पूरी भागीदारी को बाधित करता है. वर्तमान में, दिल्ली हाई कोर्ट इस मामले पर नवंबर में सुनवाई करेगा. यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि केंद्र सरकार इस नोटिस का क्या उत्तर देती है.
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