प्रतीक चौहान. रायपुर. अपने स्टॉफ पर बेबाकी से कार्रवाई करने वाली RPF को न जाने अब क्या हो गया है कि वे आरक्षण केंद्र में देर रात तक शराब पीने वाले 3 स्टॉफ के खिलाफ कोई भी कार्रवाई नहीं कर रही है और न उनसे ये पूछताछ हो रही है कि वे आरक्षण केंद्र बंद होने के बाद पार्सल के दो स्टॉफ के साथ क्या कर रहे थे ?
हैरानी की बात ये है कि आरक्षण केंद्र में मौजूद सीसीटीवी फुटेज की विस्तृत जांच की जाए तो उक्त रेल कर्मचारियों के शराब पीने के पुख्ता प्रमाण भी मिल सकते हैं. हालांकि स्टॉफ ने कमर्शियल विभाग के अधिकारियों को खुद ये कबूल कर बताया है कि वे देर रात आरक्षण केंद्र में पार्टी कर रहे थे.
ये पूरा खुलासा तब हुआ जब 6-7 फरवरी की दरम्मीयानी रात में आरक्षण केंद्र में आग लगी. आग लगने के बाद आनन-फानन में कमर्शियल विभाग के उच्च अधिकारी वहां पहुंचे. आरपीएफ के अधिकारी भी वहां मुस्तैद रहे.
अगले दिन सुबह यानी सोमवार को जब सीसीटीवी फुटेज की पड़ताल की गई तो वहां कमर्शियल विभाग के तीन स्टॉफ नजर आएं, पूछताछ में उन्होंने बताया कि वे आरक्षण केंद्र के अंदर पार्टी कर रहे थे. आनन-फानन में कमर्शियल विभाग ने तीनों स्टॉफ को सस्पेंड कर दिया.
चंद घंटों बाद पता चला कि आरक्षण केंद्र से कम्प्यूटर के कुछ सामान भी गायब है. पहले डर के कारण कमर्शियल विभाग के स्टॉफ ने आरपीएफ और अपने उच्च अधिकारियों को ये जानकारी नहीं दी.
थोड़ी देर बाद यानी दोपहर 2 बजे करीब इसकी जानकारी आरपीएफ को दी गई. इसके बाद पुनः सीसीटीवी फुटेज की जांच की गई तो उसमें एक संदिग्ध व्यक्ति नजर आया, जो आरक्षण केंद्र के अंदर छिपा था और आरपीएफ की थ्योरी के अनुसार उक्त आरोपी ने कम्प्यूटर का मॉनिटर समेत अन्य कुछ सामान चोरी करने के बाद उसे रेलवे स्टेशन परिसर स्थित झाड़ियों में छिपा दिया.
बाद में आरपीएफ ने चोर के बताई जगह से चोरी हुआ सामान भी बरामद कर दिया. इधर कमर्शियल विभाग ने भी अपना सस्पेंशन निरस्त कर दिया.
इन सवालों के जबाव अब भी नहीं मिले ?
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लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या आरक्षण केंद्र के अंदर शराब पीने की छूट है ?
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क्या कोई अधिकारी/कर्मचारी/सामान्य आदमी अगर आरक्षण केंद्र के अंदर शराब पीता है और उसके सबूत भी हो तो क्या आरपीएफ/जीआरपी कोई कार्रवाई नहीं करेगी ?
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अपने आरपीएफ स्टॉफ की गलती होने पर केस दर्ज करने वाली आरपीएफ अब क्या रेलवे कर्मचारियों पर नियमों के मुताबिक कार्रवाई करेगी ?
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क्या RPF के उच्च अधिकारियों पर किसी प्रकार का कार्रवाई न करने का दबाव है ?
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या किसी यूनियन का कमर्शियल विभाग के कर्मचारियों को संरक्षण है ?
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या विभागीय कार्रवाई की दुहाई देते हुए इस पूरे मामले को नजरअंदाज कर दिया जाएगा.
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आरपीएफ ये तर्क दे सकती है कि किसी ने इसकी शिकायत नहीं की और न डॉक्टरी मुलायजा हुआ जिसमें ये स्पष्ट हो कि उन्होंने शराब पी थी, लेकिन इसके बाद सवाल ये उठता है कि यदि वे शराब पीने नहीं गए थे तो आरक्षण केंद्र के अंदर वे देर रात क्या कर रहे थे ? और क्या इसकी भी कोई कार्रवाई की गई है ?