हरिश्चंद्र शर्मा, ओंकारेश्वर। तीर्थनगरी ओंकारेश्वर में नर्मदा पंचकोशी यात्रा की इस वर्ष 50 वीं वर्षगांठ है। यात्रा का उद्देश्य धार्मिक पुण्य अर्जित करना और पापों का नाश करना है। श्रद्धालु पांच दिनों में लगभग 75 किलोमीटर (कहीं-कहीं 118 किलोमीटर भी) की दूरी तय करते हैं। यह दूरी नर्मदा नदी के किनारे की होती है। यात्रा के दौरान श्रद्धालु विभिन्न शिव मंदिरों में पूजा करते और भजन-कीर्तन तथा संध्या आरती में भाग लेते हैं।

यात्रियों के लिए सेवा और भंडारे का आयोजन

यह यात्रा कार्तिक मास में विशेषतः कार्तिक पूर्णिमा के दिन समाप्त होती है। इस दौरान महिलाएं, पुरुष, बच्चे और बड़ी संख्या में श्रद्धालु मालवा, पूर्व, पश्चिमी निमाड़ एवं भारत के विभिन्न हिस्सों से आते हैं। प्रत्येक चरण में यात्रियों के लिए सेवा और भंडारे का आयोजन होता है। पंचकोशी यात्रा की शुरुआत सन 1975 में उज्जैन के रविंद्र भारतीय चौरे ने पांच लोगों के साथ की थी। यह यात्रा भगवान शिव के प्रसिद्ध मंदिरों और पवित्र नदियों के तटों पर श्रद्धालुओं द्वारा पैदल की जाती है।

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आध्यात्मिक मुक्ति के लिए एक महत्वपूर्ण परंपरा

यात्रा के दौरान श्रद्धालु सत्तू, हल्का आहार और फलाहार को लेते है जिससे सहनशीलता बनी रहती है। पंचकोशी यात्रा धार्मिक श्रद्धा, तपस्या और आध्यात्मिक मुक्ति के लिए एक महत्वपूर्ण परंपरा है। पांच दशकों से प्रचलित यात्रा हर वर्ष हजारों श्रद्धालुओं को जोड़ती है। इस वर्ष बरसात के बाद भी यात्रा का महत्व और श्रद्धालुओं का उत्साह कम नहीं हुआ है। देवउठनी एकादशी से सभी शुभ काम शुरू हो जाते है। मां नर्मदा की परिक्रमा भी शुरू हो चुकी है।

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