रायपुर। छत्तीसगढ़ किसान सभा ने कल विधान सभा में पारित मंडी संशोधन विधेयक में डीम्ड मंडियों के नाम पर निजी मंडियों के नियमन करने को और समर्थन मूल्य के सवाल पर चुप्पी साध लेने को कॉर्पोरेटपरस्त रूख और सरकार द्वारा राज्य के किसानों के साथ धोखाधड़ी करार दिया है। किसान सभा का कहना है कि मोदी सरकार ने कृषि के क्षेत्र में जो कॉर्पोरेटपरस्त बदलाव किए हैं, उसे निष्प्रभावी करने की कोई झलक छत्तीसगढ़ राज्य के कानून में नहीं दिखती और इसमें राज्य के किसानों के हितों के संरक्षण की कोई बात नहीं है, जबकि पंजाब सरकार ने दृढ़तापूर्वक किसानों के पक्ष में समर्थन मूल्य सुनिश्चित करने का प्रावधान अपने कानून में किया है।

आज यहां जारी एक बयान में छग किसान सभा के राज्य अध्यक्ष संजय पराते और महासचिव ऋषि गुप्ता ने कहा है कि केंद्र के कृषि विरोधी कानूनों में रखे गए उन सभी किसान विरोधी प्रावधानों को निष्प्रभावी करने की जरूरत है, जिसके जरिये किसानों को समर्थन मूल्य से वंचित किया गया है, ठेका खेती के जरिये किसानों की उपज की कॉर्पोरेट लूट का इंतज़ाम किया गया है और विवाद की स्थिति में उन्हें न्यायालय जाने से भी रोका गया है, असीमित मात्रा में खाद्यान्न की जमाखोरी की इजाजत देकर व्यापारियों को बाजार में कृत्रिम संकट पैदा करने और महंगाई बढ़ाने का मौका दिया गया है। लेकिन कांग्रेस सरकार का कानून इनमें से किसी भी किसान और उपभोक्ता विरोधी प्रावधानों को निष्प्रभावी तो नहीं करता, उल्टे निजी मंडियों के नियमन के जरिये केंद्र के कानूनों का ही अनुमोदन करता है।

उन्होंने कहा है कि मुख्यमंत्री को यह स्पष्ट करना चाहिए कि आखिर किसके दबाव में विधेयक से न्यूनतम समर्थन मूल्य सुनिश्चित करने का प्रावधान हटाया गया है और इस प्रावधान के बिना किसानों के हितों की रक्षा किस तरह होगी? उन्होंने कहा है कि यह आईने की तरह साफ है कि प्रदेश में ठेका कृषि की इजाजत देने से पूरी कृषि व्यवस्था ध्वस्त हो जाएगी और सीमांत और लघु किसान पूरी तरह बर्बाद हो जाएंगे।

किसान सभा ने मांग की है कि कांग्रेस सरकार एक सर्वसमावेशी कृषि कानून बनाये, जिसमें हर फसल, सब्जियों और वनोपजों का न्यूनतम समर्थन मूल्य सी-2 लागत का डेढ़ गुना तय किये जाने और इस न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदी किये जाने की बाध्यता हो तथा जिसमें किसी भी व्यापारी, कंपनी और बिचौलिए को गांवों में जाकर सीधे खरीदी की अनुमति न होने के प्रावधान शामिल किए जाए। इन प्रावधानों के बिना किसानों के हितों के संरक्षण की बात करना केवल लफ्फाजी होगी।

पराते ने बताया कि केंद्र सरकार के कृषि विरोधी कानूनों और विभिन्न राज्य सरकारों के कॉर्पोरेटपरस्त रूख के खिलाफ पूरे देश में किसान सभा सहित 400 से ज्यादा किसान संगठनों ने 5 नवम्बर को देशव्यापी चक्का जाम का आह्वान किया है। उन्होंने कहा कि इसे व्यापक बनाने के लिए प्रदेश के अन्य किसान संगठनों के साथ बातचीत की जा रही है।