अनिल सक्सेना, रायसेन। मप्र के त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में घूंघट प्रथा हावी है। इसी कड़ी में लिपस्टिक अंडर माय बुर्का की तर्ज पर महिला सरपंच प्रत्याशी के पति और परिजन चुनावी बैनर-पोस्टर में बिना फोटो लगाए चुनाव प्रचार कर रहे हैं। इसकी एक बानगी जिले के सिलवानी विकास खंड के ग्राम पंचायत सिंगपुरी के चुनाव प्रचार में देखने को मिली।

यहां एक युवा नेता सरपंच पद के लिए चुनाव लड़ना चाहते थे। लेकिन सीट महिला के लिए रिजर्व हो गई। ऐसे में उन्होंने अपनी पत्नी को मैदान में उतार दिया, लेकिन पोस्टर में केवल उसका नाम लिख कर ही प्रचार किया जा रहा हैं। महिला प्रत्याशी की तस्वीर बैनर-पोस्टर में कहीं नजर नहीं आ रही हैं। महिला प्रत्याशी के पति महेंद्र यादव का कहना है कि हम पारिवारिक परंपरा अनुसार चुनाव लड़ रहे हैं। हमारे यहां आज भी घूंघट प्रथा है। ऐसे में बड़े-बुजुर्गों को चेहरा कैसे दिखाएं? वैसे भी सरपंच प्रतिनिधि के रूप में पत्नी के साथ मिलकर आगे भी काम मुझे ही करना है, इसलिए पोस्टर में मैंने अपना फोटो लगाया है और हमारे परिवार के लोग ही चुनाव प्रचार कर रहे हैं।

महेंद्र यादव सरपंच पद प्रत्याशी रानी यादव के पति है। वहीं ग्राम पंचायत सिंगपुरी से प्रत्याशी रानी यादव चुनाव प्रचार में अपना चेहरा छिपाने की बात को सही ठहरा रही हैं। उनका कहना है कि क्षेत्र एवं गांव में पति सक्रिय राजनीति में हैं। उनके परिवार के सदस्य, ससुर, पति, जेठ, देवर और अन्य परिजन प्रचार कर रहे हैं। हमारे परिवार में पर्दा करने की प्रथा हैं इसलिए मैं प्रचार पर नहीं जा रही हूं।

प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह चौहान महिलाओं को 50 प्रतिशत आरक्षण देकर उन्हें बराबरी का दर्जा दिलाने का प्रयास कर रहे हैं। वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी रूढ़िवादी परम्पराएं सरकार की ऐसी मंशा पर हावी है। गांव में सरपंच पद की प्रत्याशी रानी यादव का चेहरा वोटर देख नहीं पाएंगे। उनका फोटो प्रचार सामग्री से गायब है। परिजन उसके प्रचार की जिम्मेदारी उठाये हुए हैं। प्रत्याशी को घर से निकलने भी नहीं दिया जा रहा हैं। अब ऐसे में बड़ा सवाल यही है कि क्या वास्तव में लोग महिला आरक्षण का मतलब समझ पाएंगे या फिर उन्हें रबर स्टैम्प की तरह पांच साल उपयोग किया जाएगा।

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