पुरुषोत्तम पात्र,गरियाबंद. गरियाबंद के किडनी प्रभावित गांव सुपेबेडा में नेपरोलॉजिस्ट के साथ एमएससी के चार छात्रों को देवभोग में शिविर लगाकर भेजा गया था. डायलिसिस के लायक किडनी मरीजों का चिन्हाकन करने, ताकि देवभोग सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में लगे डायलिसिस मशीन का उपयोग हो सके. बार-बार हो रहे प्रयोग से झल्लाए ग्रामीण शिविर नहीं पहुंचे, तो मना बुझा कर किसी तरह 4 मरीजों को लाया गया. स्वास्थ्य दल को गांव भेजकर 35 लोगों के ब्लड सेम्पल भी लिए गए. गुस्साए ग्रामीणों ने कहा कि 20 महीनों के जांच में न तो बीमारी के कारण को पता लगाया जा सका न ही बेहतर सुविधा दी गई. सुपेबेड़ा को केवल प्रयोग शाला बना दिया गया.

चुनाव खत्म होते ही राज्य सरकार आज एक बार फिर सुपेबेड़ा के किडनी रोगियों की सुध लेने की आड़ में राजधानी से नेपरोलॉजिस्ट प्रफुल्ल दावले के साथ प्रयोग करने एमएससी डायलिसिस टेक्नोलॉजी के 4 छात्रों को भेजा था. टीम में एमएससी द्वितीय वर्ष के घनाराम सिन्हा, विजय बंजारे, प्रथम वर्ष के जेबीन साजी, पुष्पराज प्रधान शामिल थे. बार-बार प्रयोग से ऊब चुके मरीज शिवर में नहीं आये तो, टीम भेज कर किसी तरह चार लोगों को लाकर इलाज के आड़ में प्रयोग की खाना पूर्ति किया गया. दो दिन पहले सीएचसी स्तर पर यह शिविर तय था, जिसकी जानकारी सुपेबेड़ा के ग्रामीणों को दे दी गई थी. तय 11 बजे पर डॉक्टरों की टीम तो पहुंची पर सुपेबेड़ा के जिन मरीजों के लिए शिविर रखा गया था, उनमें से एक भी नहीं पहुंचे.

35 सस्पेक्टेड लोगों का ब्लड सेम्पल

बीएमओ सुनील भारती को ग्रामीणों का रूख समझ नहीं आ रहा था. मरीजों को लाने सरकारी वाहन भेजा गया. स्वास्थ्यकर्मियों के भरसक प्रयास के बाद किडनी पीड़ित लालबन्धु छेत्रपाल 50 वर्ष, सुबीता रावत 60 वर्ष, तरूण कलार 30 वर्ष, लैबानो सतनामी 45 वर्ष आने को तैयार हुए. बीएमओ भारती ने बताया कि देवभोग में डायलिसिस मशीन की स्थापना हो गई है. डॉक्टरों की टीम चेकअप कर जिनको आवश्यकता है ,उनका डायलिसिस भी करती, 4 मरीजो की जांच एक्सपर्ट ने किया है. मरीजो के नहीं आने के कारण, बाकी 35 सस्पेक्टेड लोगों का ब्लड सेम्पल गांव में जाकर लिया गया है.

ग्रामीण बोले कितने बार सेम्पल देते रहें

पीड़ित लालबन्धु ने बताया कि इससे पहले भी 5 से 6 मर्तबे ब्लड सेम्पल लिया गया. गांव में 95 लोगों में पोजेटिव पाया गया है जिसका रिकार्ड अस्पताल में भी है. स्थानीय स्तर पर कुछ भी सम्भव नहीं है. सरकारी प्रयास भी बड़ा दुखदाई है, इसलिए पीड़ितों की रूचि खत्म हो चुकी है. शिविर में नहीं आने की मुख्य वजह शासन की खाना पूर्ति रवैया है.

डायलिसिस मशीन है पर चालू नहीं

विभिन्न स्तरों के जांच की ओपचारिकता पिछले दो साल से की जा रही है. ग्रामीण जब सरकारी अधूरे प्रयासों से ऊब गए तब जाकर सीएचसी में डायलिसिस मशीन आ गया, लेकिन अभी वह चालू नही हो सका. मरीजो पर केवल प्रयोग हुए. परिणाम नहीं आया. सुपेबेड़ा में उपजे किडनी की रोग होने की वजह अब तक सरकार नहीं ढूढ़ सकी है. प्रयोग के नाम पर पीएचई, इंदिरागांधी विश्विवीद्यालय के अलावा, जबलपुर, हैदराबाद, दिल्ली में मौजूद विभिन्न संस्थान के शोधकर्ता आ कर लौट चुके है. मसले पर शोध के नाम पर पानी मिट्टी के अलावा ढाई सौ से ज्यादा ग्रामीणों के ब्लड सेम्पल 5 बार आए ज्यादा लिया जा चुका है. यही वजह है की इस बार के प्रयोग के लिए ग्रामीणों ने रूचि नहीं दिखाई.