अभिषेक सेमर, तखतपुर. जनपद पंचायत तखतपुर के जुनापारा ग्राम पंचायत के सरपंच को मनरेगा में भ्रष्टाचार के चलते अनुविभागीय अधिकारी महेश शर्मा ने बर्खास्त कर दिया है. साथ ही उसे 6 साल के लिए अयोग्य घोषित कर दिया गया. क्वारेंटाइन सेंटर में रह रहे मजदूरों और प्राइवेट हॉस्पिटल में कार्यरत कर्मचारियों के नाम से फर्जी मस्टररोल भरकर मनरेगा कार्य में फर्जीवाड़ा किया गया था. जांच में सरपंच पर मनरेगा में फर्जी मस्टर रोल तैयार कर राशि गबन करने का आरोप सही पाया गया है. जिसके बाद कार्रवाई की गई है.

बता दें कि, मामला बिलासपुर जिले के तखतपुर जनपद के ग्रामपंचायत जुनापारा का है. जहां सरपंच गीता मोतीलाल चतुर्वेदी को मनरेगा कार्य मे अनियमितता के चलते बर्खास्त कर दिया गया है. साथ ही उसे 6 वर्षों के लिए पंचायत चुनावों के लिए अयोग्य घोषित कर दिया गया है. सरपंच पर मनरेगा कार्यों में फर्जी मस्टररोल तैयार करने और राशि आहरण कर गबन करने की शिकायत सही पाए जाने के बाद यह कार्रवाई की गई है.

सरपंच गीता मोतीलाल चतुर्वेदी के विरुद्ध रामेश्वर गोस्वामी ने शिकायत की थी कि जुनापरा सरपंच गीता मोती लाल चतुर्वेदी के द्वारा मिट्टी मुरूम सड़क निर्माण कार्य बालक के घर से कठमुड़ा रैय्यत तक 700 मीटर, बरगन में छोटा तालाब गहरीकरण कार्य में बिना कार्य किए ,कठमुड़ा रैय्यत में बिना कार्य किए तथा क्वारंटाइन सेंटर में रह रहे प्रवासी मजदूर और संजीवनी हॉस्पिटल में कार्य कर रहे कर्मचारियों और अन्य के नाम से फर्जी मस्टररोल तैयार करने और उन्हें भुगतान किए जाने के आरोप लगाए गए थे. जिसमें जनपद पंचायत के द्वारा जांच कराया गया. जांच में आरोप सिद्ध होने पर जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी ने सरपंच के खिलाफ पंचायत राज अधिनियम 1993 की धारा 39 से 40 के तहत कार्रवाई की.

वहीं प्रकरण में दोनों पक्षो के बयान दर्ज किए जाने और गवाहों के प्रतिपरिक्षण के बाद अधिवक्ताओं द्वारा दिए गए तर्कों के आधार और संलग्न दस्तावेजों के आधार पर यह पाया गया कि जिस व्यक्ति का नाम मस्टररोल में भरा गया है, वह फर्जी है.जबकि काम नहीं किया था, उसका नाम मस्टररोल में दर्ज कर उसके खाते में राशि डाली गई. इसी प्रकार शिकायतकर्ता रामेश्वर पुरी गोस्वामी का फर्जी हस्ताक्षर मस्टररोल में पाया गया. हालांकि उसने काम ही नहीं किया था. हेमंत मरावी का नाम मस्टररोल में दर्ज है जो मनरेगा कार्य के दौरान संजीवनी हॉस्पिटल में कार्यरत था. उपरोक्त और अन्य मजदूर जो काम नहीं किए हैं, लेकिन उनके नाम पर 21070 रुपए की राशि आहरण कर भुगतान किया जाना पाया गया.

अनुविभागीय न्यायालय ने माना कि मस्टररोल को सरपंच, सचिव एवं रोजगार सहायक तीनों के द्वारा अपना हस्ताक्षर कर उसे प्रमाणित किया जाता है. उसके बाद ही राशि का आहरण होता है. इसलिए इस आरोप में सरपंच भी उतना ही जवाबदेह पाया गया, जितना सचिव और रोजगार सहायक हैं. जिसके बाद सरंपच पर कार्रवाई की गई.