पटना। बिहार विधानसभा चुनाव से पहले एआईएमआईएम (AIMIM) प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने ऐसा बयान दे दिया है, जिसने सियासी हलचल तेज कर दी है। ओवैसी ने कहा कि बिहार में हर जाति का नेता है, लेकिन 19 फीसदी मुस्लिम समुदाय का कोई नेतृत्व नहीं है। उन्होंने खुद को मुसलमानों का नेता बताते हुए दावा किया कि अब यह जिम्मेदारी उन्हीं की है। ओवैसी के इस बयान के बाद बिहार की राजनीति में गरमी आ गई है और सभी दल अपने-अपने मुस्लिम नेताओं को सामने लाकर पलटवार कर रहे हैं।
मुस्लिम नेताओं की कमी नहीं
ओवैसी के बयान पर सबसे पहले बीजेपी ने कड़ा रुख दिखाया। बीजेपी नेताओं ने अब्दुल कलाम, शाहनवाज हुसैन और मुख्तार अब्बास नकवी जैसे दिग्गजों का नाम गिनाते हुए कहा कि मुसलमानों की राजनीति सिर्फ ओवैसी तक सीमित नहीं है। पार्टी ने आरोप लगाया कि ओवैसी केवल चुनाव आते ही धार्मिक भावनाओं को भड़काने की कोशिश करते हैं।
चुनाव में ही क्यों होती है चिंता?
जेडीयू नेताओं ने भी ओवैसी पर निशाना साधते हुए कहा कि अगर वह सच में मुसलमानों के हितैषी होते तो चुनाव के बाहर भी उनकी समस्याओं पर आवाज उठाते। जेडीयू ने तंज कसा कि ओवैसी का मुस्लिम प्रेम सिर्फ वोट बैंक तक ही सीमित है।
आरजेडी और कांग्रेस भी मैदान में
ओवैसी के बयान से सबसे ज्यादा दबाव महागठबंधन की पार्टियों आरजेडी और कांग्रेस पर पड़ा है। दोनों ही दल मुस्लिम वोट बैंक पर मजबूत पकड़ बनाए रखना चाहते हैं। आरजेडी ने अपने मुस्लिम चेहरों को सक्रिय कर बयानबाजी शुरू की है, जबकि कांग्रेस ने भी अपने नेताओं को सामने लाकर ओवैसी को चुनौती देने की कोशिश की है।
चुनावी समीकरण में बड़ा बदलाव?
विशेषज्ञों का मानना है कि ओवैसी का यह बयान मुस्लिम वोटों के ध्रुवीकरण का कारण बन सकता है। बिहार में करीब 19 फीसदी मुस्लिम मतदाता हैं, जो कई सीटों पर जीत-हार का फैसला कर सकते हैं। ऐसे में ओवैसी का दावा सीधे तौर पर महागठबंधन को नुकसान पहुंचा सकता है, वहीं बीजेपी और जेडीयू इसे अपने पक्ष में भुनाने की कोशिश करेंगे।
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