रायपुर.  पनामा के मामले में बीजेपी के कद्दावर नेता बृजमोहन अग्रवाल के बयान पर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के मीडिया सलाहकार रुचिर गर्ग ने ट्वीट किया. इस ट्विट में उन्होंने बीजेपी में अंदरुनी तौर पर चल रहे घमासान की ओर इशारा किया है.

रुचिर गर्ग पूर्व पत्रकार हैं और पत्रकारिता में कांग्रेस और बीजेपी-दोनों पार्टियों की अंदरुनी राजनीति-घमासान और संघर्ष की बेहद गोपनीय जानकारियां रहती थीं. इस लिहाज़ से उनके ट्विट को सिर्फ एक राजनेता के ट्वीट के तौर पर देखना चूक होगी.

दरअसल, कांग्रेस ने अभिषाक सिंह के स्विस एकाउंट का मुद्दा उठा दिया. अभिषाक सिंह का स्विस बैंक में एकाउंट पूर्व मुख्यमंत्री डॉक्टर रमन सिंह की कवर्धा के रमन मेडिकल स्टोर के पते से खोला गया था. जिस कंपनी के नाम पर ये एकाउंट खोला गया. वो कंपनी ब्रिटिश वर्जिन आइलैंड में खोली गई थी. कैरिबियन के ब्रिटिश वर्जिन आइलैंड काले धन का स्वर्ग माना जाता है.

बात यहां तक थी तो ठीक था. लेकिन बृजमोहन के बयान ने बीजेपी के अंदर चल रहे राजनीतिक घमासान को सतह पर ला दिया. बृजमोहन ने इसके जवाब में कहा कि सिर्फ गाल बजाने से काम नहीं होगा. विपक्ष में रहते हुए कांग्रेस ये आरोप लगाती रही है. अब सत्ता में आने के बाद 18 महीने से ज़्यादा का वक्त हो चुका है. लेकिन सरकार ने एक के खिलाफ कार्रवाई नहीं की.

राजनीति में बयान के निहितार्थ इतने सीधे नहीं होते. हर बयान के अपने संदर्भ होते है और इन संदर्भों से उसके मायने होते हैं. सहती तौर पर देखने से ये बयान बचाव में दिया गया लग सकता है. कुछ को ये बयान चुनौती के रुप में लग सकती है लेकिन ये उससे भी ज़्यादा है. पिछले कुछ सालों तक रमन और बृजमोहन के आपसी संबंधों के संदर्भ में देखने पर लगता है कि ये बयान चुनौतीपूर्ण कम और उकसावे के मकसद से दिया गया ज़्यादा है.

दरअसल इस प्रदेश में मुख्यमंत्री बनने से पहले बृजमोहन अग्रवाल का कद डॉक्टर रमन सिंह से ज़्यादा बड़ा था लेकिन रमन के 2003 में मुख्यमंत्री बनते ही राननीतिक कद का समीकरण बदल गया. लेकिन दोनों के बीच प्रतिद्वंदिता जारी रही. कहा जाता है 15 साल तक रमन के राज में बीजेपी के अंदर सबसे ज़्यादा शिद्दत के साथ बृजमोहन ने ही चुनौती दी. शुरुआत में नंदकुमार साय, रमेश बैस और फिर बाद में सरोज पांडेय. लेकिन रमन सिंह के सबसे चालाक और खतरनाक नौकरशाह इन्हें बारी-बारी से निपटाते रहे. केवल बृजमोहन ही रमन सिंह के पूरे कार्यकाल में तमाम मुश्किलों को झेलने के बाद भी डटे रहे.

ये खबर आम थी कि रमन सिंह के आखिरी कार्यकाल में भरी बैठक में एक बार बृजमोहन अग्रवाल को गुस्सा उस खतरनाक नौकरशाह के खिलाफ फूटा था. इसके कुछ महीने बाद जलकी में उस नौकरशाह ने बृजमोहन को ऐसा लपेटा कि आलाकमान के दखल के बाद रमन और बृजमोहन का संघर्ष थमा. चर्चा ये भी थी कि रमन सिंह के खिलाफ कांग्रेस की लड़ाई को बृजमोहन ने समय-समय पर हवा दी.

2018 में जब बीजेपी की शर्मनाक हार हुई तब बृजमोहन अग्रवाल सक्रिय हुए अपने खेमे को लामबंद करके दिल्ली जाना शुरु किया. बृजमोहन ने इस हार को एक मौके की तरह देखा जिसमें उनका खेमा पार्टी के केंद्र में आ जाए. लेकिन आलाकमान ने रमन सिंह पर ही भरोसा किया. रमन सिंह के कहने पर बृजमोहन खेमे के तमाम धाकड़ नेताओं की दावेदारी को दरकिनार कर रमन सिंह के विश्वसनीय धरमलाल कौशिक को नेता प्रतिपक्ष बना दिया. इसी तरह जब प्रदेश अध्यक्ष की बारी आई तो भी रमन सिंह के खास विक्रम उसेंडी और फिर विष्णुदेव साय को मौका दिया गया. बृजमोहन खेमा तमाम योग्यता और अनुभव  के बाद भी न नेता प्रतिपक्ष बनवा पाए न ही प्रदेश अध्यक्ष.

इसी संदर्भ में बृजमोहन के बयान को देखना चाहिए. बृजमोहन को ये पता है कि स्विस एकाउंट वो अकेला मामला है जो रमन सिंह को राजनीति के अर्श से फर्श तक पहुंचा सकता है. लिहाज़ा वो भूपेश बघेल को चुनौती दे रहे हैं, उकसा रहे हैं.