जितेंद्र सिन्हा, राजिम. नगर के स्वयंभू फणिकेश्वरनाथ महादेव मंदिर में सावन लगते ही शिव भक्तों का सैलाब तड़के सुबह से देर शाम तक उमड़ रहा है. फनीकेश्वरनाथ महादेव मंदिर राजिम की पंचकोशी परिक्रमा क्षेत्र में शामिल है. इस परिक्रमा के बाद श्रद्धालु चम्पारण्य में चम्पेश्वर, कोपरा में कोपेश्वर, बम्हनी में बम्हेश्वर, पटेवा में पटेश्वरनाथ महादेव व फिंगेश्वर में फणिकेश्वरनाथ महादेव जाकर दर्शन लाभ लेते हैं.

माना जाता है कि इन महादेव मंदिर में दर्शन करने से देशभर में फैले 12 ज्योतिर्लिंगों के दर्शन का लाभ मिल जाता है.मर्यादा पुरषोत्तम भगवान श्रीराम जब अपने 14 वर्ष के वनवास काल के दौरान इस धार्मिक नगरी से गुजरे थे,जिसका उल्लेख हिंदू धर्मग्रंथों में भी मिलता है. मंदिर परिसर में आज भी प्रतीकात्मक चरण पादुका भी मंदिर में स्थापित है. पूरे प्रदेश में विशेष धार्मिक महत्व रखने वाला यह शिव मंदिर रायपुर से 73 किलोमीटर एवं राजिम से 25 किलोमीटर दूर महानदी के दक्षिण तट से तकरीबन 12 किलोमीटर दूर स्थित है.

सावन में कांवरिए यहां जल अभिषेक व दर्शन के लिए रोजाना और खासकर सावन सोमवार को बड़ी संख्या में पहुंचते हैं. इसके अलावा आसपास के लोग सावन में खासतौर पर दर्शन व पूजन के लिए सुबह शाम जुटते हैं. पंचकोशी धाम होने के कारण नगर के देवालयों में इन दिनों विशेष पूजा अर्चना की जा रही है. यह शिव मंदिर राजिम की पंचकोशी परिक्रमा क्षेत्र में सम्मिलित है.

फिंगेश्वर के फणिकेश्वरनाथ महादेव मंदिर परिसर में प्रति वर्ष सावन मास के उपरांत होने वाले पंचकोशी धाम यात्रा के दौरान श्रद्धालु यहां आने पर देर रात तक भजन कीर्तन करते हैं. सावन में अलसुबह मंदिर में दर्शन शुरू हो जाते हैं और रात को भी काफी देर तक दर्शन होते हैं. फणिकेश्वरनाथ नामक शिवलिंग प्रमुख मंदिर के गर्भ गृह में प्रतिस्थापित है. यह मंदिर पूर्वाभिमुखी है. इसका मंडप सोलह स्तंभों पर आधारित है. मंदिर के द्वार चैखट में नदी मां स्थित है. ऐसा प्रतीत होता है कि दोनो मंदिरों को जोड़ने वाले मंडप का निर्माण मुख्य मंदिर के निर्माण के बाद हुआ है.

मंदिर के बाह्य भित्ति जंघा भाग में दो पंक्तियों में खजुराहो की मंदिरों के तर्ज पर राम कथा व कृष्ण लीलाओं की मैथुनरत जोड़ों के दृश्य उकेरे गए हैं. मंदिर परिसर में रखी मां वैष्णवी व महिषाशुर की मर्दनी प्रतिमाएं खंडित स्थापित है. प्राचीन मान्यता व किदवंती है कि सालों पहले छै मसी रात में स्वयं भगवान विश्वकर्मा द्वारा निर्मित मंदिर अल सुबह होने के चलते मंदिर के ऊपर लगने वाले गुम्बज (कलस) आज भी नीचे तह पर स्थापित है.

सावन मास के हरेली अमावश्या से लेकर पोला पर्व तक मंदिर परिसर में प्रतिदिन फिंगेश्वरा राज घराने के राजा निलेन्द्र बहादुर सिंह के नेतृत्व में सवा लाख बेल पत्र के साथ राजपुरोहितों द्वारा विधिवत मंत्रोच्चारण कर अभिषेक पूजा अर्चना की जाती है.