सत्या राजपूत रायपुर। निजी स्कूलों में गरीब बच्चों के प्रवेश के लिए शुरू की गई शिक्षा का अधिकार (RTE) दम तोड़ती नजर आ रही है. 2010 के सर्वे की मांग से बच्चों का बेहतर पढ़ाई का सपना टूट रहा है. पैरेंट्स एसोसिएशन ने सर्वे सूची या जनगणना की अनिवार्यता को समाप्त कर गरीबी रेखा कार्ड को प्राथमिकता देने की मांग की है.

छत्तीसगढ़ पैरेंट्स एसोसियेशन के प्रदेश अध्यक्ष क्रिस्टोफर पॉल ने स्कूल शिक्षा मंत्री और प्रमुख सचिव को पत्र लिखकर शिक्षा के अधिकार को लेकर शासन स्तर पर कई निर्णय लिए जाने पर नाराजगी जताते हुए कहा कि यह नीतिसंगत और न्यायसंगत नहीं है. तहसीलदार जारी आय प्रमाण पत्र को भी प्राथमिकता दी जाए. वहीं सरकारी स्कूल में प्रवेश और आरटीई से प्रवेश उम्र के अंतर और उन्होंने एक स्कूल, एक व्यवस्था, एक जैसे शिक्षा के अलगअलग फीस लिए जाने पर सवाल किया है.

पॉल ने बताया कि शिक्षा का अधिकार के अंतर्गत प्रवेश के लिए 19 सितंबर 2016को उच्च न्यायालय बिलासपुर के अन्तरिम आदेश में दूरी तय किया गया है, जिसमें प्रथम प्राथमिकता में एक से तीन किलोमीटर फिर द्वितीय प्राथमिकता में 3 से 6 किलोमीटर फिर उससे आगे तक कहा गया है कि किसी भी बच्चे को किसी भी स्कूल में प्रवेश दिया जाना है, और कोई भी सीट रिक्त नहीं होना चाहिए. लेकिन शासकीय उत्कृष्ट अंग्रेजी माध्यमों के स्कूलों में प्रवेश के लिए प्राथमिक स्तर की कक्षाओं में एक किलोमीटर की दूरी निधारित की गई है.

शिक्षा का अधिकार के अंतर्गत 25 प्रतिशत प्रवेशित बच्चों के लिए शासन स्तर पर प्राईवेट स्कूलों के लिए नर्सरी से लेकर कक्षा बारहवी तक की फीस लगभग 7,790 रुपए से लेकर 16 हजार रुपए तक निर्धारित है, जिससे शासन द्वारा प्राईवेट स्कूलों को दिया जाता है, लेकिन बाकी 75 प्रतिशत बच्चों को स्कूल द्वारा मांगी जा रही डिमांडेड फीस/ऊंची फीस देने के लिए छोड़ दिया गया है, जबकि दोनों ही वर्ग के बच्चों को प्राईवेट स्कूलों में एक जैसी शिक्षा और सुविधा दिया जा रहा है. शासन स्तर पर जो फीस तय किए गए है, वह शासन के अनुसार युक्तियुक्त है और सरकार के अनुसार इससे ज्यादा फीस नहीं लिया जाना चाहिए, तो फिर बाकी 75 प्रतिशत बच्चों से ज्यादा फीस वसूला जा रहा है.

शिक्षा का अधिकार कानून के अंतर्गत प्राईवेट स्कूलों में कक्षा पहली में प्रवेश दिलाने हेतु उम्र 5 वर्ष से 6 वर्ष 6 माह निर्धारित किया गया है लेकिन वंही सरकारी स्कूलों में कक्षा पहली में प्रवेश पाने के लिए उम्र 6 वर्ष निर्धारित किया गया है. पैरेंट्स एसोसिएशन ने सरकार से मांग की है कि स्कूल में प्रवेश और फीस निर्धारण को लेकर जनहित में नितिगत निर्णय लिया जाना उचित होगा, क्योंकि जो वर्तमान में प्रवेश और फीस को लेकर सरकार की नीति है वह विरोधाभास है. प्राइवेट स्कूलों और सरकारी स्कूलों के लिए अलग अलग नियम बनाया गया है, जो न तो नीतिसंगत है, और न ही न्यायसंगत.