रायपुर. वन विभाग के आंतरिक पत्रचार में ये बात सामने आई है कि एलीफेंट रिजर्व लेमरू प्रोजेक्ट और परसा कोल ब्लॉक आवंटन मामले में नियमों को दरकिनार किया गया है. दोनों ही प्रोजेक्ट हाथियों और इंसानों के संघर्ष से जुड़े हुए हैं. माना जा रहा है कि इस पत्राचार के बाद विभाग के एक पूर्व अधिकारी और एक वरिष्ठ अधिकारी मुश्किल में फंस सकते हैं.
दरअसल, वन विभाग के आंतरिक पत्राचार में इस बात का शिकायत की गई है कि 2018 में तात्कालीन प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यप्राणी) डॉ. आरके सिंह ने परसा कोल ब्लॉक आवंटन करने के मामले में गलत प्रक्रिया अपनाई. केंद्र के पर्यावरण मंत्रालय के पर्यावरणीय प्रभाव आकलन समिति ने राज्य की वाइल्ड लाइफ एडवायजरी कमेटी से परसा माइनिंग से हाथियों पर पड़ने वाले असर पर अध्ययन कर रिपोर्ट मांगी. लेकिन स्टेट वाइल्ड लाइफ एडवाजरी कमेटी की बैठक में इस बात को रखा ही नहीं गया. बल्कि आरोप है कि सिंह ने खुद ही इसकी अनुमति केंद्रीय पर्यावरणीय प्रभाव आकलन समिति को भेज दी.
इस मामले में केंद्र को हाथी रिजर्व को अमान्य करने के तात्कालीन वन सचिव कौशलेंद्र सिंह के 2009 आदेश का हवाला दिया गया. दरअसल, सीआईआई ने लेमरु प्रोजेक्ट पर रोक लगाने की मांग की थी. सीआईआई का मानना था कि लेमरु प्रोजेक्ट के चलते 7 कोल ब्लॉक का आवंटन नहीं हो पाएगा. जबकि इससे पहले 2005 में ही छग विधानसभा में लेमरू रिजर्व के लिए प्रस्ताव पारित कर दिया था. लेमरु प्रोजेक्ट उसी हसदेव अरंद क्षेत्र में बनना था जहां अडानी कंपनी राजस्थान बिजली बोर्ड के लिए आवंटित परसा कोल ब्लॉक में खनन का काम कर रही है. ये इलाका देश के सबसे घने जंगलों में से एक है.
आंतरिक पत्राचार में मांग की गई है लेमरु प्रोजेक्ट को अमान्य करने के आदेश और परसा माइनिंग पर दी गई वन विभाग अनुशंसा पर स्टेट वाइल्ड लाइफ एडवायजरी कमेटी की आगामी बैठक में समीक्षा की जाए. कौशलेंद्र सिंह और आरके सिंह पर भारत सरकार की गाइडलाइन को न मानने का आरोप लगाया गया है. इस मामले में सामाजिक कार्यकर्ता आलोक शुक्ला ने दोनों अधिकारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने की मांग की है.