जयपुर। राता महावीरजी के नाम से विख्यात प्राचीन तीर्थ हथुंडी का जैन तीर्थों में महत्वपूर्ण स्थान है. भगवान महावीर के इस मंदिर का निर्माण विक्रम संवत 360 में वीरदेव श्रेष्ठी द्वारा भगवान पार्श्वनाथ के 30वें पट्टधर आचार्य सिद्धसुरि द्वारा होना बताया गया है. इसके तहत महावीर स्वामी का ये मंदिर 1700 वर्ष पुराना है. विक्रम संवत 778 में आचार्य कंकूसूरि के उपदेश से हस्तिकुंडी में 27 मंदिरों का निर्माण कराया गया था.
प्रकृति की गोद में बना मंदिर
मंदिर में विराजमान मूलनायक भगवान महावीर की मूर्ति ईंट-चूना-रेत से बनी हुई है. बताया जाता है कि इस मूर्ति का मुंह गजसिंह और पीठ शेर की है. मूर्ति का रंग भी लाल रंग का प्रतीत होता है इसलिए इसे राता महावीरजी भी कहते हैं. प्रकृति की गोद में बाली तहसील के बीजापुर गांव के समीप स्थित इस मंदिर की मूर्ति अलौकिक है. Read More – भूलकर भी पर्स में न रखें ये चीजें, वरना हमेशा बनी रहेगी आर्थिक तंगी …
मंदिर का इतिहास
राता महावीरजी या हाथुंडी तीर्थ 313 ईस्वी (370 ईसा पूर्व) में बनाया गया था और पहले पार्श्वनाथ को समर्पित था 1278 (1335 वी.एस.) में श्री महावीर भगवान की मूर्ति की स्थापना के बाद इस मंदिर में भगवान महावीर स्वामी इसके प्राथमिक देवता हैं. यह मूर्ति ईंटों, रेत और कैल्शियम से बनी है, जिसका रंग लाल (राटा) है और इसलिए इसे राता महावीरजी भी कहा जाता है. महावीर स्वामी की 135 सेमी ऊंची यह मूर्ति पद्मासन मुद्रा में है. इस मंदिर में चौथी शताब्दी की मूर्ति आज भी मौजूद है. Read More – Priyanka Chahar Choudhary ने देसी लुक के बाद लगाया ट्रेडिशनल का तड़का, वीडियो देख फैंस के छूटे पसीने …
देश के कोने-कोने से आते हैं लोग
इस मंदिर को देखने और यहां के शिल्प को निहारने के साथ धार्मिक आस्था प्रकट करने के लिए प्रदेश ही नहीं देश के कोने-कोन से लोग आते हैं. यह मंदिर जैन समाज के साथ ही यहां स्थानीय आदिवासी लोगों के लिए भी आस्था का केन्द्र है. आदिवासी समाज के लोग भी यहां पूजा-अर्चना करते हैं.
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