रायपुर। छत्तीसगढ़ में 1 जनवरी का दिन छत्तीसगढ़ियों के लिए विशेष दिन है. आज छत्तीसगढ़ के उन चार माटी पुत्रों का दिन है जिन्होंने महतारी अस्मिता का भाव छत्तीसगढ़ियों में जगाने का काम किया है. अपने व्यवसायिक जीवन में इन्होंने छत्तीसगढ़िया पन को हमेशा जीवित रखा है. पृथक राज्य छत्तीसगढ़ के आंदोलनकारियों में ये नाम भी प्रमुख रहे हैं. आज का दिन विशेष है छत्तीसगढ़ के उन चार विभूतियों का जिन्होंने राजनीतिक, सांस्कृतिक, सामाजिक, धार्मिक क्षेत्रों में अपना अमूल्य योगदान दिया है.
जयंती विशेष में जिन हस्तियों की बात हम कर रहे हैं उनमें हैं- संत कवि पवन दीवान, पत्रकारिता के पुरोधा चंदूलाल चंद्राकर, छत्तीसगढ़िया स्वाभिमान ताराचंद साहू और संत गुरु घासीदास के संदेश को अपनी गायन और नृत्य से दुनिया भर पहुँचाने वाले देवादास बंजारे का. ये सभी विभूति आज हमारे बीच नहीं रहे हैं. आइये जानते इन महान हस्तियों के जीवन के बारे में-

संत कवि पवन दीवान

संत कवि पवन दीवान का जन्म जन्म एक जनवरी 1945 को राजिम के पास ग्राम किरवई में हुआ था. छत्तीसगढ़ी भाषा में भागवत कथा के वाचन के लिए वे प्रसिद्ध रहे. उनके पिता सुखरामधर दीवान शिक्षक थे. भागवतचार्य के साथ पवन दीवान छत्तीसगढ़ी और हिन्दी के सर्वाधिक चर्चित कवि रहे. छत्तीसगढ़ राज्य के लिये कुशलतापूर्वक जन आंदोलन का भी पवन दीवान नेतृत्व किया था. अध्ययनकाल में ही पवन दीवान का कवि हृदय दीन दलितों की पीड़ा से व्यथित होता था, इसीलिए उनमें वैराग्य की भावना बलबती होती गई. अंतत: आपने स्वामी भजनानंद जी महाराज से दीक्षा लेकर स्वामी अमृतानंद बन गये ! दीवान जी फुटबाल और बालीबाल के उत्कृष्ट खिलाड़ी भी थे. राजनीतिक जीवन की शुरुआत उन्होंने जनता पार्टी से की थी, लेकिन बाद में कांग्रेस में शामिल हुए और लंबे समय तक कांग्रेस के साथ रहे फिर भाजपा के साथ आ गए. 23 फरवरी 2014 को राजिम कुंभ मेला के दौरान उन्हें ब्रेन हेमरेज आ गया फिर 2 मार्च को दिल्ली में इलाज के दौरान उनका निधन हो गया.

राजनीतिक सफर-

  • 1977 में जनता पार्टी की टिकट पर राजिम से विधायक चुने गए.
  • अविभाजाति मध्यप्रदेश में जनता पार्टी की सरकार में जेल मंत्री रहे.
  • 1977 में जनता लहर के बीच पवन दीवान को छत्तीसगढ़ के गांधी की उपाधि दी गई थी.
  • 1991 और 1996 में कांग्रेस पार्टी से महासमुंद लोकसभा से दो बार सांसद रहें.
  • डॉ. रमन सरकार में छत्तीसगढ़ गौ सेवा आयोग का अध्यक्ष भी रहें.

उनकी चर्चित कविता का अंश
राख
राखत भर ले राख …
तहं ले आखिरी में राख..
राखबे ते राख…..
अतेक राखे के कोसिस करिन…..
नि राखे सकिन……
तेके दिन ले….
राखबे ते राख…..
नइ राखस ते झन राख….
आखिर में होना च हे राख….
तहूँ होबे राख महूँ हों हूँ राख….
सब हो ही राख…
सुरु से आखिरी तक…..
सब हे राख…..
ऐखरे सेती शंकर भगवान……
चुपर ले हे राख…….

चंदूलाल चंद्राकर

सफल पत्रकार के साथ सफल राजनीतिज्ञ चंदूलाल चंद्राकर का जन्म 1 जनवरी 1921 को दुर्ग जिले के निपानी गाँव में हुआ था.
वे बचपन से ही बेहद प्रतिभा संपन्न रहे. दुर्ग में प्रारंभिक शिक्षा के दौरान ग्रामीणों की समस्याओं का समाधान करने के लिए भी वे सदैव तत्पर रहते थे. राजनीति से पहले चंदूलाल चंद्राकर सक्रिय रूप से पत्रकारिता से जुड़े. दूसरे विश्व युद्ध के समय उन्होंने अभ्यस्त पत्रकारों जैसी पत्रकारिता करने लगे. 1945 से पत्रकार के तौर पर उनकी पहचान होने लगी. उनके समाचार ‘हिंदुस्तान टाइम्स’ सहित देश -विदेश के अन्य अखबारों को में प्रकाशित होने लगे. चंदूलाल चंद्राकर को नौ ओलंपिक खेलों और तीन एशियाई खेलों की रिपोर्टिंग का तेज अनुभव रहा. राष्ट्रीय अखबार दैनिक हिंदुस्तान के संपादक के रूप में भी उन्होंने कार्य किया. छत्तीसगढ़ से राष्ट्रीय समाचार पत्र के संपादक के पद पर पहुंचने वाले वे पहले व्यक्ति थे. युद्धस्थल से भी उन्होंने बिना डरे समाचार भेजें. चंदूलाल चंद्राकर ने विश्व के लगभग सभी देशों की यात्रा एक पत्रकार के रूप में की. 2 फरवरी 1995 को चंदूलाल चंद्राकर ने अंतिम सांस ली.

पत्रकारिता और राजनीति में ऐसा रहा सफर
1970 से 1991 तक-   लोकसभा क्षेत्र दुर्ग से 5 बार चुने गए
जून 1980 से जनवरी 1982 तक- केंद्रीय राज्यमंत्री पर्यटन और नागरिक  उड्डयन
1982 में ही अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के महासचिव बने।
जनवरी1985 से जनवरी 1986 तक- केंद्रीय कृषि व ग्रामीण राज्य विकास राज्य मंत्री
1964 से 1970 तक -अध्यक्ष भारत सरकार प्रिंटिंग प्रेस कर्मचारी यूनियन संघ के सदस्य
1975 से 1995-  स्टील कर्मचारी यूनियन के अध्यक्ष के रूप में
1975- उपाध्यक्ष इंटक मध्य प्रदेश
1975 में – भारतीय शिष्टमंडल यूनेस्को,पेरिस,  कार्लमाक्रस की मृत्यु शताब्दी बर्लिन में कांग्रेस पार्टी का प्रतिनिधित्व किया।
1993 से 1995 तक – अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के प्रवक्ता के रूप में
1994 से 1995 में-  छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण मंडल के अध्यक्ष के रूप में
इसके अलावा वे कई बार सूचना और प्रसारण मंत्रालय इस्पात और खनिज मंत्रालय, रक्षा मंत्रालय, वित्त मंत्रालय के सलाहकार समितियों के सदस्य भी रह चुके  थे.

ताराचंद साहू

ताराचंद साहू दुर्ग जिले में भाजपा के आधार स्तंभ रहे. उन्हें राजनीति में कांग्रेस के गढ़ में कमल खिलाने के लिए जाना जाता रहेगा. उनका जन्म 1 जनवरी अविभाजित दुर्ग जिला के कंचादूर में हुआ था. शिक्षा जगत से राजनीति में आने वाले ताराचंद नए राज्य छत्तीसगढ़ में भाजपा के चेहरा बने.  ताराचंद साहू छत्तीसगढ़ राज्य गठन के बाद भारतीय जनता पार्टी के प्रथम प्रदेश अध्यक्ष चुने गए थे. जबकि दुर्ग से वर्ष 1996 से  वर्ष 2004 तक चार बार सांसद और वर्ष 1989 और वर्ष 1993 तक दो बार विधायक निर्वाचित हुए, लेकिन पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल पाए जाने पर दुर्ग से लोकसभा सदस्य ताराचंद साहू को पार्टी से निष्कासित कर दिया गया.

ताराचंद साहू ने वर्ष 2009 में अपनी अलग पार्टी छत्तीसगढ़ स्वाभिमान मंच का गठन किया. ताराचंद साहू ने वर्ष 2009 के 15 वीं लोकसभा के चुनाव में दुर्ग लोकसभा क्षेत्र से निर्दलीय प्रत्याशी के रुप में 2 लाख 62 हजार से अधिक मत प्राप्त किए, जो किसी निर्दलीय प्रत्याशी को प्राप्त मत का सर्वोच्च रिकार्ड है11 नवंबर 2012 को मुंबई के लीलावती अस्पताल में निधन हो गया. वह 65 वर्ष के थे.

देवदास बंजारे

देवदास बंजारे का जन्म 1 जनवरी 1947 को सांकरा (धमतरी) में हुआ था। तब उनका नाम जेठू था। पर उनका जीवन ग्राम उमदा (भिलाई) की गरीबी, विस्थापन और अभावों की माटी में विकसित हुआ और यहां उनका नाम हुआ देवदास। बचपन मे ही नाच में रुचि रखनेवाले देवदास खेलकूद और पढ़ाई में अच्छे थे। यह सब वे बनिहारी (मजदूरी) करके निबाह रहे थे। वे दौड़ में प्रदेश चैंपियन थे। कबड्डी के भी जबर खिलाड़ी थे पर कबड्डी ने ही 1969 में उन्हें घुटनो पर चोट देकर मैदान से बाहर कर दिया! गुरु घासीदास जी के संदेशों को पंथी नृत्य गीत से दुनिया तक पहुँचानेवाले देवदास बंजारे का न 26 अगस्त 2005 का रायपुर से भिलाई के रास्ते सड़क दुर्घटना में निधन हो गया था.