रेणु अग्रवाल, धार। मध्यप्रदेश के धार स्थित भोजशाला को लेकर इंदौर हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। मामले में हिंदू संगठन ने याचिका में परिसर पर कब्जा देने और नमाज बंद कराने की मांग की है। कोर्ट ने ASI, भारत सरकार और भोजशाला कमेटी को नोटिस जारी किया है। याचिका में वीडियोग्राफी, फोटो करवाने और जरूरत पड़ने पर खुदाई करवाने की बात कही है। हिंदू संगठन ने कोर्ट से मांग की है कि भोजशाला कॉम्प्लेक्स एक मंदिर है जिसे राजा भोज ने 1034 में संस्कृत पढ़ाने के लिए बनवाया था और मां सरस्वती की प्रतिमा स्थापित थी।

अधिवक्ता हरिशंकर जैन, विष्णु शंकर जैन और पार्थ ने कहा कि इंदौर हाईकोर्ट में भोजशाला को लेकर जस्टिस रूसी और जस्टिस केशरवानी की बेंच पर पिटीशन दायर की गई है। एक संस्था हिन्दू संघ फॉर जस्टिस के द्वारा मांग की है कि भोजशाला कॉम्प्लेक्स एक मंदिर है जिसे राजा भोज ने 1034 में संस्कृत पढ़ाने के लिये बनवाया था और मां सरस्वती की प्रतिमा स्थापित थी। हिंदू मंदिर के एक हिस्से को आक्रान्ताओं ने मुस्लिम काल में तोड़ दिया और उस पर कब्जा करके उसको कमाल मौलाना मस्जिद कहने लगे, जबकि वह मस्जिद नहीं है। बतौर सबूत किताब, गजेटियर और बुक्स पेश किया गया है।

यह जगह शुरू से हिंदुओं का है। यहां पर मुस्लिमों को नमाज पढ़ने की इजाजत दी गई वह विधि विरुद्ध है। 7 अप्रैल 2003 को जो प्रतिबंध लगाया गया वह अनकॉन्शिसनर है और हिंदुओं के धार्मिक अधिकार का उल्लंघन है। प्रार्थना है कि मुस्लिम को रोका जाए और नमाज पढ़ने की परमिशन को रद्द किया जाए। यहां पर केवल पूजा पाठ ही हो। यहां से जो प्रतिमा हटा गई है उसे स्थापित की जाए और मां सरस्वती की पूजा पाठ की जाए।

पिटीशन के साथ प्रस्तुत दस्तावेज
इतिहास और गजेटियर में उल्लेखित लेख, रिसर्च पेपर, समय-समय पर जो मूर्तियां मिली है उन सबका हवाला दिया गया है। साबित किया गया है कि यहां पर केवल और केवल भोज शाला ही थी कमाल मौलाना नाम की कोई चीज ही नहीं है।

भोजशाला को लेकर विवाद

मध्य प्रदेश के धार में भोजशाला लंबे समय से विवादों में रही है। करीब 800 साल पुरानी इस भोजशाला को लेकर हिंदू-मुस्लिमों के बीच मतभेद हैं। बताया जाता है कि 1305 से 1401 के बीच अलाउद्दीन खिलजी और दिलावर खां गौरी की सेनाओं के साथ माहकदेव और गोगादेव की लड़ाई हुई। 1456 में महमूद खिलजी ने मौलाना कमालुद्दीन के मकबरे और दरगाह का निर्माण कराया। बाद में भोजशाला में राजवंश काल में मुस्लिम समाज को नमाज के लिए अनुमति दी गई, क्योंकि यह इमारत अनुपयोगी पड़ी थी। लंबे समय से यहां मुस्लिम नमाज अदा करते रहे। हिंदुओं का दावा है कि भोजशाला सरस्वती का मंदिर है।

दूसरी ओर मुस्लिम इसे कमाल मौलाना की मस्जिद बताते हैं। सन 1909 में धार रियासत ने भोजशाला को संरक्षित स्मारक घोषित कर दिया, इसके बाद यह पुरातत्व विभाग के अधीन आ गया है। दीवान नाडकर ने भोजशाला में शुक्रवार को नमाज की अनुमति का आदेश जारी किया था। यही आदेश आगे चलकर विवाद का कारण बना। आजादी के बाद ये मुद्दा सियासी रंग में रंग गया। मंदिर में प्रवेश को लेकर हिंदुओं ने आंदोलन किया। इसके बाद से जब वसंत पंचमी और शुक्रवार एक ही दिन होते हैं, तब-तब तनाव बढ़ता है और धार से भोपाल व दिल्ली तक भोजशाला कमाल मौलाना के विवाद की तपिश होती है।

यह इमारत ASI के अधीन
फिलहाल भोजशाला में हर मंगलवार सुबह को हिंदू समाज के लोग पूजा-अर्चना करते हैं। हरेक शुक्रवार को दोपहर एक से तीन बजे तक मुसलमानों को नमाज पढ़ने की अनुमति होती है। वसंत पंचमी पर हिंदू समाज को पूरे दिन पूजा-अर्चना की अनुमति होती है। यह अनुमति भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा दी गई है।

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