रायपुर… बी.के.हरिप्रसाद की बिदाई के बाद पी.एल.पुनिया को छत्तीसगढ़ कांग्रेस की कमान सौंपी गई है,जिसके बाद इस नियुक्ति के राजनीतिक मायने तलाशे जा रहें हैं.. राजनीति के जानकारों का कहना है कि अनुसूचित जाति के बड़े वोट बैंक में जोगी की पैठ को देखते हुए पुनिया के रुप में उनकी काट खोजी गई है…पुनिया कांग्रेस में अनुसूचित जाति के बड़े नेता माने जाते हैं और यूपीए शासनकाल में इसीलिये उन्हें अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी गई थी…ऐसे में पुनिया को प्रभारी बनाकर अनुसूचित जाति वर्ग के बड़े वोट बैंक को अपने पक्ष में करने की संभावना तलाशी गई है…पुनिया और अजीत जोगी के बीच एक और समानता है…दोनों ही आईएएस अधिकारी रह चुके हैं और इस कारण दोनों की प्रशासनिक और राजनीतिक क्षमता के बारे में सभी जानते हैं.. इसलिये जोगी से होने वाले संभावित नुकसान से बचने के लिये पुनिया के दांव से बेहतर कुछ नहीं हो सकता था….
इतना ही नहीं पुनिया के सहयोग के लिये जिन दो लोगों को प्रभारी सचिव की जिम्मेदारी दी गई है,वो भी क्रमश पिछड़ा और अनुसूचित जनजाति वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं….प्रभारी सचिव कमलेश्वर पटेल पिछड़ा वर्ग से आते हैं,जबकि दूसरे प्रभारी सचिव अरुण ऊरांव अनुसूचित जनजाति वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं और ये भी आईपीएस के रुप में लंबा प्रशासनिक अनुभव रखते हैं…इस प्रकार प्रदेश प्रभारी और प्रभारी सचिवों की नियुक्ति कर सोशल इंजीनियरिंग का एक कार्ड कांग्रेस ने खेला है,जिसके जरिये बहुसंख्यक आदिवासी,अनुसूचित जाति और पिछड़े वर्ग के वोट बैंक को साधने की कोशिश की गई है…
पीसीसी अध्यक्ष पद की कमान पहले ही पिछड़ा वर्ग का प्रतिनिधित्व करने वाले भूपेश बघेल के हाथ में है…ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि जोगी की पार्टी से होने वाले संभावित नुकसान और सत्ता विरोधी लहर का फायदा उठाने की कोशिश के बीच नये चेहरों को जिम्मेदारी देने की रणनीति कितनी फिट बैठती है…