सतीश चाण्डक, सुकमा। पोलावरम बांध जिसका नाम सुनते ही कोंटावासियों के चेहरो पर चिंता की लकीरे खीचं जाती है। विगत कई वर्षो से आन्ध्र प्रदेश में बन रहे पोलावरम बांध निर्माण कार्य को लेकर इलाके के जनप्रतिनिधि लड़ाई लड़ रहे है। छत्तीसगढ़ सरकार से भी कई बार यहा के लोगो ने मांग रखी लेकिन सरकार ने अपनी स्थिति आज तक स्पष्ट नहीं कर पाई। बताया जाता है कि राज्य सरकार ने बांध को लेकर कोर्ट में याचिका दायर कर रखी है। वही शासन की सर्वे टीम कोंटा पहुंची जिसे देखकर कोंटावासी काफी परेशान हो रहे है। एक बार फिर आज कोंटा में सर्वदलीय संर्घष समिति द्वारा जनसभा का आयोजन किया जा रहा है।

आन्ध्र प्रदेश में बन रहा पोलावरम बांध का निर्माण पिछले कई सालो से चल रहा है। बांध निर्माण से प्रदेश का अंतिम छोर पर बसा कोंटा पुरी तरह प्रभावित होगा। पुरे ब्लाक में दोरला जनजाति के कई गांव है जिस पर बांध का संकट गहराया हुआ है। इस बांध की उचाई कम करने के लिए कोंटा इलाके व सुकमा जिले के कई नेताओं ने सभाओं का आयोजन भी किया। और सरकार के समक्ष कई बार मांगे भी रखी। वही उड़ीसा प्रदेश का भी कई हिस्सा डूबान में आ रहा है।

डूबान में आने के कारण करोड़ो का नुकशान होगा। क्योंकि कोंटा में सरकार द्वारा करोड़ो के विकास कार्य करवाए जा रहे है। इसके अलावा वहा रहने वालो के घर समेत खेत भी है जिससे उन लोगो का काफी नुकशान होगा। यहा तक हाल ही में करोड़ो की लागत से बनने वाली नेशनल हाईवे भी बाढ़ की चपेट में आऐंगा।

वही एक और जहा बांध निर्माण को लेकर जिले के जनप्रतिनिधि परेशान है ठीक दुसरी और सरकार अभी तक अपनी स्थिति स्पष्ट नहीं कर पा रही है। जानकारी के मुताबिक प्रदेश सरकार ने बांध को लेकर कोर्ट में याचिका तब दायर की थी जब केन्द्र में कांग्रेस की सरकार थी। लेकिन जब एनडीए की सरकार आई तो राज्य सरकार चुप्पी साधे बैठी है। प्रदेश सरकार की स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है कि सर्वे कराने में ही कई साल लग गए लेकिन सर्वे टीम अभी पहुंची।

भाजपा जिला अध्यक्ष मनोज देव ने चर्चा करते हुए बताया कि इस योजना में वनवासी हित सर्वप्रथम रखा जाऐंगा। चूंकि यह योजना कई दशको पुरानी है। उसके बावजूद केन्द्र व राज्य की सरकार इस योजना और कोंटावासियों को लेकर गंभीर है। ना कि प्रदेश सरकार बल्कि उड़ीसा, आन्ध्र व तेलगांना की सरकारी अलग-अलग माध्यमों से सर्वे करा रही है। प्रदेश सरकार भी सर्वे करा रही है। जो जिले और कोंटावासियों के हित में होगा वही कार्य करेगी। वही प्रदेश सरकार भी कोंटावासी की चिंता कर रही है।

जिला पंचायत अध्यक्ष हरीश कवासी ने चर्चा करते हुए कहा कि जब केन्द्र में कांग्रेस की सरकार थी उसके बावजूद स्थानीय विधायक कवासी लखमा ने अपना विरोध दर्ज करवाया। क्योंकि क्षेत्र के जनता का हित सर्वोपरि है। पहले ऐस लग रहा था कि प्रदेश सरकार बांध के विरोध में है। लेकिन अब ऐसा नहीं लग रहा है। कांग्रेस पार्टी हमेशा से विरोध दर्ज कराते आई है। बांध की उंचाई को लेकर हमारी मांगे प्रदेश सरकार व केन्द्र सरकार के समक्ष कई बार रखी गई। वही उन्होने बताय कि इस बात को आदिवासी विश्व दिवस पर समाज के समक्ष रखा जाऐंगा। और कोंटा को डूबान से बचाने के लिए हर स्तर पर प्रयास किया जाऐंगा

सीपीआई नेता मनीष कुंजाम ने चर्चा करते हुए कहा कि अगर बांध बना तो कोंटा ब्लाक के साथ वहा की दोरला जनजाति, जल, जगंल व आदिवासी समुदाय को बहुत बड़ा नुकशान होगा। इस मामले को लेकर पहले राज्य सरकार ने याचिका दायर की थी। तब एक विश्वास था कि सरकार कुछ करेगी। लेकिन केन्द्र में भाजपा की सरकार बनने के बाद प्रदेश सरकार का रवैया बदला है। हो सकता है कि आने वाले दिनो में प्रदेश सरकार लगाई हुई याचिका वापस ले लेगी। लेकिन अब जिलेे के लोगो को एक साथ मिलकर यह लड़ाई लड़नी पडेगी। जरूरत पड़ी तो हर स्तर पर जाकर इस बांध का विरोध दर्ज कराया जाऐंगा।

ग्राउंड लेबल की जीटीएस बेंच मार्ग निकलवा रही सरकार 
पोलावरम बांध को लेकर प्रदेश सरकार शबरी के किनारे वाले इलाके का सर्वे करा रही है। कोंटा ब्लाक के आसपास करीब दस किमी. तक पहले वाटर लेबलिंग जीटीएस बेंच मार्ग फिक्स कर निकलवाई जा रही है। जो शबरी की उचाई एंव निर्माणधीन बांध की उंचाई के आधार पर निकाली जा रही है। उसके बाद पानी की मात्रा कहा कि उंचाई पर होगी ये बताया जा सकता है। यह सर्वे लगभग एक साल तक चलेगा। तीन माह तक पहला सर्वे चलेगा। उसके बाद आन्ध्र प्रदेश में निर्माणाधीन बांध के दायरे में आने वाले डूबान क्षेत्रो की सर्वेक्षण दल के साथ मिलकर रिर्पोट तैयार होगी। उसके बाद ही पता चल पाऐंगा कि जिले का कितना क्षेत्र डूबान में आ रहा है।

फैक्ट फाईल (एक रिर्पोट के मुताबिक)
– पोलावरम अन्तर्राज्यीय परियोजना के लिए समझौते पर दस्तखत 7 अगस्त 1978 को अविभाजित मध्यप्रदेश की जनता पार्टी की सरकार ने किया था। उस समय मुख्यमंत्री वीरेन्द्र कुमार सकलेचा थे। इसके बाद रिवाईज समझौता 2 अप्रैल 1980 को किया गया।
– पोलावरम बांध के लिए हुए अन्तर्राज्जीय समझौते में अविभाजित मध्यप्रदेश (अब छत्तीसगढ़) अविभाजित आन्ध्रप्रदेश (अब तेलगाना सीमांध्र) व ओडिशा राज्य शामिल है।
– परियोजना का उदेश्य सिंचाई, विद्युत उत्पादन, कृष्णा कछार में जल व्यपवर्तन है।
-परियोजना सुकमा जिले की सीमा के नजदीक तेलांगना में गोदावरी बैराज से 42 किमी. उपर गोदावरी नदी पर निर्माणाधीन है।
– बांध का सम्पूर्ण जलग्रहण क्षेत्र 306643 वर्ग किलोमीटर और लम्बाई 2160 मीटर पक्का बांध सहित होगा।
– एफआरएल 45.72 मीटर, कुल जलभराव 5511 मिलियन घन मीटर, डूबान क्षेत्र 63691 हेक्टेयर बांध से 297000 हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई होगी।
– बांध से 970 मेगावाट बिजली का उत्पादन होगा।
– छत्तीसगढ़ को 1.5 टीएमसी पानी मिलेगा पर बिजली में एक यूनिट की भी हिस्सेदारी नहीं मिलेगी।
– परियोजना की लागत 8 हजार करोड़ रूपए से अधिक हो चुकी है।
– डूबान में सुकमा जिले के कोंटा सहित 18 गांव और करीब आठ हजार हेक्टेयर भूमि के डूबान में जाने की आशंका है। नेशनल हाईवे 30 का करीब 13 किमी. हिस्सा डूबने का दावा किया जा रहा है।
– कोंटा तहसीलदार की रिर्पोट के अनुसार दोरला आदिवासी प्रभावित होंगे और इससे इनके विलुप्त होने का खतरा बढ़ जाऐंगा।