शब्बीर अहमद, भोपाल। जनजातीय गौरव दिवस पर प्रदेश में सिसायत तेज हो गई है। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने बीजेपी सरकारों को आदिवासी विरोधी बताया है और ट्वीट कर बीजेपी से 10 सवाल पूछे हैं। दिग्विजय ने कहा कि ‘2014 में मोदी सरकार ने आदिवासियों के लिए नई आर्थिक गतिविधियां शुरू करने की बात कही थी कि आदिवासी अपनी भूमि से जुदा नहीं होंगे मगर आदिवासी जमीन से बेदखल करने का मोदी सरकार काम कर रही है।

प्रश्न 1: 2014 के अपने घोषणापत्र में भाजपा ने कहा था कि वह आदिवासियों के लिए नई आर्थिक गतिविधियां शुरू करेगी। यह सुनिश्चित किया जाएगा कि आदिवासी अपनी भूमि से जुदा ना हो। मगर मोदी सरकार ने आदिवासियों को जमीन से बेदखल करने का काम किया। क्यों?

प्रश्न 2: वर्ष 2006 में यूपीए सरकार ने वन अधिकार क़ानून बनाया था। इस कानून के तहत 42 लाख आदिवासियों और वनवासियों ने वन भूमि पर अधिकार के लिए आवेदन किये थे।मगर इनमें से 19.34 लाख आवेदन खारिज कर दिए गए। सर्वोच्च न्यायालय में एनडीए सरकार आदिवासियों के पक्ष में खड़ी नहीं रही। क्यों?

प्रश्न 3: मप्र में वन भूमि का मालिकाना हक पाने के लिए सवा चार लाख आदिवासी परिवारों के दावों में से दो लाख दावे खारिज कर दिए। मध्य प्रदेश की तत्कालीन भाजपा सरकार ने ऐसा क्यों किया था?

प्रश्न 4: भाजपा ने 2014 के घोषणा पत्र में कहा था कि आदिवासियों के विकास और कल्याण में बढ़ोतरी की जाएगी। लेकिन हुआ क्या?
भाजपा सरकार ने 2014 की तुलना में 2018 में आदिवासी कल्याण के सामान्य व्यय को 52% तक कम कर दिया।आदिवासी बच्चों के लिए छात्रवृत्ति के बजट में कमी कर दी गई।क्यों?

प्रश्न 5: मप्र में सबसे ज्यादा 1.53 करोड़ आदिवासी निवास करते हैं और यहीं उनके साथ सबसे ज्यादा अपराध भी होते हैं।
वर्ष 2016 में देश में आदिवासियों के साथ अत्याचार के सबसे ज्यादा 1823 मामले मध्यप्रदेश में दर्ज हुए। इन अत्याचार के मामलों का अदालत में परीक्षण ही पूरा नहीं हुआ।क्यों?

प्रश्न 6: मप्र में आदिवासियों पर अत्याचार के 5844 मामले लंबित थे। इनमें से वर्ष 2016 में केवल 900 ही परीक्षण हुआ है जिनमें से 671 आरोपी कमजोर कार्रवाई के चलते छूट गए। आदिवासियों को न्याय देने में कमी क्यों थी?

प्रश्न 7: आदिवासी शासन व्यवस्था से जुड़े कानूनी मसलों, भूमि अधिग्रहण अधिनियम आदि को कमजोर किया गया। ग्रामसभा की शक्तियों को कम किया गया ताकि ग्रामसभा के दखल के बिना वन जमीन कारपोरेट को दी जा सके। आदिवासी अधिकारों को भाजपा सरकार ने क्यों क्षीण किया?

प्रश्न 8: भाजपा सरकार ने ट्राइबल सब-प्लान / ST Componant के साथ खिलवाड़ क्यों किया? जो पैसा आदिवासी समुदाय के विकास में लगना चाहिए था, उसे दूसरे कामों में, ख़ासतौर पर आदिवासी रहन सहन को ख़तरे में डालने वाले प्रोजेक्ट में क्यों निवेश कर दिया?

प्रश्न 9: क्या भूमि अधिग्रहण और MMRDA क़ानून में मोदी सरकार के संशोधन आदिवासी विरोधी नहीं है?
ये निजी कम्पनियों द्वारा आदिवासी भूमि के अधिग्रहण को बिना ग्राम सभा की स्वतंत्र और सूचित सहमति के सम्भव नहीं बनाते? क्या ये आदिवासियों को बिना मुआवज़े और पुनर्स्थापन, बेदख़ल नहीं करते?

प्रश्न 10: क्या वन अधिनियम में प्रस्तावित संशोधन वन अधिकारियों को आदिवासियों को गोली मारने के असीमित अधिकार नहीं देते?
क्या ये वन अधिकारियों को आदिवासियों से अधिकार वापस लेने और उन्हें ज़बरदस्ती स्थानांतरित करने का अधिकार नहीं देते है?
ऐसे डिक्टेटरशिप वाले संशोधन क्यों हैं?

तब से और आज तक कुछ आदिवासी समाज के कुछ और प्रकरण सामने आए हैं। उनका लेखा जोखा कल से शुरू किया है। Tribal Sub Plan की राशि जो कि आदिवासी यवाओं पर खर्च होना थी वह भाजपा रैली पर खर्च की जा रही है।
1- पन्ना के आदिवासियों की ज़मीन भाजपा नेताओं के क़ब्ज़े से कब वापस की जाएगी?