Column By- Ashish Tiwari , Resident Editor

बेईमानी के पैसे में ही है पौष्टिक तत्व
बेईमानी के पैसे में ही पौष्टिक तत्व बचा है. ये सज्जन संघर्ष के रास्ते जब राजनीति में आए थे. तब दुबले-पतले थे. विधायक बने, रुतबा बना, चंदा-घूस समेटने लगे, तब जाकर शरीर की चमक बढ़ी. वैसे भी रूलिंग पार्टी के विधायकों की चमक थोड़ी ज्यादा दिखाई पड़ती है. खैर, मुद्दे की बात यह है कि पिछले दिनों विधायक जी एक विभाग के मंत्री से लेकर आला नेताओं तक की दौड़ लगाते रहे. चाहते थे कि एक पद के लिए उनके खास आदमी की नियुक्ति कर दी जाए. मगर उस पद के लिए किसी के नाम पर सहमति बन गई थी. विधायक अपने आदमी को फिट करना चाहते थे, सो कह दिया कि फलाना आदमी बीजेपी से जुड़ा है. कांग्रेस सरकार में बीजेपी के आदमी की नियुक्ति पर सब ठिठक गए. बाद में मालूम पड़ा कि जिसका विरोध विधायक कर रहे थे, वह चुनाव में उनका ही एआरओ था. थोड़ी बात आगे बढ़ी, तो असल कहानी सामने आई. पता चला कि विधायक ने अपनी सेहत दुरुस्त करने के इरादे से आठ लाख रुपए ले रखे थे. ये आठ लाख रुपए उस ‘पद’ पर नियुक्ति कराने के एवज में लिए गए थे. दिलचस्प बात यह भी पता चली कि जिस शख्स ने आठ लाख रुपए विधायक को दिए थे, उसका ताल्लुक बीजेपी से निकल गया. फिलहाल मामला लटका हुआ है. इधर आठ लाख रुपए काजू-बादाम और ड्रिंक पर खर्च हो रहे हैं. नई-नई विधायकी है, इसलिए विधायक के लिए एक छोटी सी नसीहत. राजनीतिक ओहदा अहंकार भर देता है. अहंकार में आदमी फूल सकता है, फल नहीं सकता.

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हिसाब के पक्के ‘एसपी’
राज्य गठन के बाद से यह कहा जाता रहा है बस्तर में सरकारी योजनाएं चल तो रही है, लेकिन सिर्फ कागजों पर. साल दो साल पहले एक विभाग ने जंगल के भीतर 18 करोड़ रुपए खर्च कर नरवा बनाया था. कुछ लोगों ने भौतिक सत्यापन किया, तब मालूम पड़ा कि जमीन पर एक ढेला तक नहीं रखा गया था. ये कोई अनूठी बात तो थी नहीं. बस्तर दशकों से प्रशासनिक दंश का शिकार होता आया है. ये बात सच है कि बस्तर के अंदरुनी इलाकों में काम कर पाना मैदानी इलाकों की तरह आसान नहीं है. सड़क भी बनानी हो, तो सुरक्षा चाहिए होती है. सुरक्षा के लिए ठेकेदारों को बड़ी रकम खर्च करनी होती है. कई जिलों के एसपी इसकी आड़ में बड़ा खेल, खेल जाते हैं. हालिया दिनों में बस्तर के एक जिले से मैदानी इलाके में भेजे गए एसपी ने अपनी डायरी खोली होगी, तो उस पर पुराना बकाया लिखा नजर आया होगा, शायद तभी उन्होंने एक सड़क ठेकेदार को फोन मिलाकर कहा, पिछला बकाया भेज दो….अब ठेकेदार भी हैरान कि साहब हिसाब के इतने पक्के कैसे? ठेकेदार की परेशानी ये है कि नए वाले को खुश करते चलें या पुराने वाले की तिमारदारी में जुटे रहें.

नौकरशाह का बेटा बड़ा ठेकेदार
एक पूर्व नौकरशाह का बेटा बड़ा ठेकेदार बन गया है. पिता का रुतबा आज भी कायम है, सो बेटे की राह आसान हो गई. यह बात और है कि ठेकेदारी सीधी सपाट नहीं है. सामने चेहरा कोई और है. कहने को तो पूर्व नौकरशाह का ये बेटा एक बड़ी कंसल्टेंसी कंपनी की नुमाइंदगी करता है, लेकिन मूल काम ठेकेदारी ही है. अब तक करोड़ों के ठेके हासिल किए जा चुके हैं. दुर्ग-भिलाई से शुरू हुई ठेकेदारी रायपुर होते हुए बिलासपुर तक पहुंच गई है. स्मार्ट काम है, स्मार्ट तरीके से चल रहा है. कहा तो यह भी जाता है कि पूर्व नौकरशाह का यह बेटा अपने साथ अफसरों की पूरी टीम लेकर चलता है. जिस शहर में बड़े प्रोजेक्ट मिलते हैं, चहेते अफसर वहां पहुंचा दिए जाते हैं. कहने भर के लिए यह अफसर सिस्टम की खिदमतगारी करते हैं, असल नौकरी ठेकेदार की होती है. बताते हैं कि किसी टेंडर के निकलने पर उसे तब तक निरस्त किया जाता है, जब तक की एल वन इस ठेकेदार के नाम ना खुल जाए. अंधाधुंध कमाई चल रही है. सुनते हैं कि एक तालाब से गाद निकालने भर का ठेका नौ-दस करोड़ रुपए का लिया गया था. एक तालाब में पांच करोड़ रुपए का फव्वारा लगाया गया. यह बात और है कि फव्वारे ने लगने के चंद दिनों बाद ही दम तोड़ दिया. एक तालाब की बाउंड्री मोटे लोहे के एंगलों से बनाई गई थी, लेकिन कुछ तो ठेका लेना था, सो उसे हटाकर नई बाउंड्री बनाने का ठेका हासिल कर लिया. शहर दर शहर चौक-चौराहों और गार्डनों के रिनोवेशन के नाम पर करोड़ों रुपए के प्रोजेक्ट हासिल किए जा रहे हैं.

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मुरझाए फूलों से ‘विनोद’ जी का सम्मान
किसी एक ‘शब्द’ की व्याख्या कैसी की जाएगी? ‘शब्द’ तब तक शून्य है, जब तक किसी से जोड़ा ना जाए और जब बात विनोद कुमार शुक्ल जैसी शख्सियतों को शब्दों में पिरोने की हो, तब उन पर कहे जाने वाला हर एक ‘शब्द’ अपनी शून्यता के परे, अपने होने का गौरव हासिल कर पाएगा. यकीनन ‘शब्दों’ को इससे कमतर कुछ भी नहीं चाहिए. वैसे भी हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में विनोद कुमार शुक्ल को लेकर यह कहा जाता है कि, ‘हिन्दी कथा साहित्य का कोई भी मूल्यांकन उन्हें हिसाब में लिए बिना विकलांग तथा अविश्वसनीय रहेगा’. हाल ही में विनोद जी को अंतरराष्ट्रीय साहित्य में उनके योगदान के लिए साल 2023 का प्रतिष्ठित पेन/नाबोकोव सम्मान से सम्मानित किया गया. उन्हें बधाई देने का सिलसिला चल पड़ा. इस बीच ही उन्हें बधाई देने राज्य सरकार के एक सलाहकार पहुंचे. विनोद जी की साहित्यिक उपलब्धियों की लंबी फेहरिस्त होने के बावजूद उस सलाहकार ने यह कहते हुए बधाई दी कि, ‘आप हम ब्राम्हणों के कुल गौरव हैं’. वहां सुनने वाला हर कोई हक्का-बक्का रह गया. विनोद जी सुन नहीं सके. उन्होंने वहां बैठे लोगों से पूछा, क्या कहा? साथ बैठे लोगों ने सलाहकार के कहे गए शब्दों को टाल दिया. सलाहकार ने कहा कि वह राज्य शासन की तरफ से आए हैं. कमरे में बैठे लोगों ने सलाहकार के लाए गए बुके को देखा, जिसके फूल मुरझाए हुए थे. मुरझाए फूलों वाला यह बुके भी उधार का लग रहा था. बुके में लगे मुरझाए फूल भी ठिठक से गए होंगे, जब उसे विनोद जी को दिया गया होगा. खैर, यूपी से आने वाले इस सलाहकार ने यकीनन विनोद जी को पढ़ा नहीं होगा. पढ़ा होता, तो उनके सम्मान में सुशोभित और अलंकृत किए शब्दों को यूं ना पिरोते. बताते चले कि, उनसे पहले मुख्यमंत्री के एक सलाहकार मिलने पहुंचे थे. तब उन्होंने जमीन पर बैठकर चर्चा की थी. शायद वह विनोद कुमार शुक्ल के कद से वाकिफ थे. पुरानी रचनाओं और कविताओं पर बातचीत घंटों चलती रही. मगर ब्राम्हण कुल गौरव वाले सलाहकार थोड़े ‘फिल्मी’ निकले.

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‘भरोसे का सम्मेलन’
‘भराेसे का सम्मेलन’ करवाकर मुंगेली कलेक्टर राहुल देव ने अपना नंबर बढ़ा लिया है. यही मुंगेली है, जहां 18 दिसंबर को गुरु घासीदास जयंती के कार्यक्रम में आरक्षण मामले को लेकर मुख्यमंत्री की मौजूदगी में नारे लगे थे. हालांकि तब मुख्यमंत्री ने नारा लगाने वाली भीड़ से मंच से ही बात कर नाराजगी दूर करने की कोशिश की थी. बहरहाल कहते हैं कि ‘भरोसे का सम्मेलन’ आयोजित करने के पहले जब कलेक्टरों से पूछा गया था, तब मुंगेली कलेक्टर ने खुद से आगे बढ़कर यह कार्यक्रम अपने जिले में कराए जाने की जिम्मेदारी ली थी. कार्यक्रम राजनीतिक लिहाज से भी अहम था क्योंकि इसके मंच से बेरोजगारी भत्ता पोर्टल और सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षण के लिए बनाए गए एप्लीकेशन की लांचिंग की जानी थी. पिछले कार्यक्रम में हुई किरकिरी को धोना भी था. ओखली में सिर रखने की हिम्मत करना भी बड़ी बात है. कार्यक्रम ठीक ठाक हो गया. राहुल देव ने मौके पर चौका मार दिया.

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तबादला
विधानसभा सत्र खत्म हो गया है. अब तबादला आदेश जारी होने का वक्त है. बड़े पैमाने पर एसपी इधर से उधर किए जा सकते हैं. रायपुर एसएसपी प्रशांत अग्रवाल को लेकर चर्चा है कि इस दफे की लिस्ट में उनका नंबर आ सकता है. बलौदाबाजार जिला संभाल रहे दीपक झा और दुर्ग एसपी अभिषेक पल्लव में से किसी एक को रायपुर लाया जा सकता है. चर्चा है कि इस बार एसपी तबादले की सूची में एक दर्जन से ज्यादा जिलों में बदलाव मुमकिन है. सूची पर काम चल रहा है. सब कुछ ठीक ठाक रहा, तो अप्रैल के पहले सप्ताह तक आदेश जारी कर दिया जाएगा. जनवरी में जिन आईपीएस अधिकारियों को डीआईजी प्रमोट किया गया है, उन्हें भी नई पोस्टिंग दी जानी है. इनमें से कुछ अधिकारी, जो फील्ड पर तैनात हैं, उन्हें मुख्यालय लाया जा सकता है.