सोनाखान..

अब तक तो यही सुन रखा था कि कोयला हाथों में कालिख छोड़ जाता है, मगर अब यह चेहरे की चमक बढ़ा रहा है. सूर्य की रोशनी की तरह. कास्मेटिक कंपनियों को कोयले पर और ज्यादा रिसर्च करनी चाहिए. इसकी चमक देखिए कि प्रवर्तन निदेशालय भी खींचा चला आया. खैर कोयले की कहानी के अभी कई दिलचस्प मोड़ आते-जाते रहेंगे. इन सबके बीच प्रशासनिक महकमे में एक चर्चा छिड़ गई कि कोयले की अकूत संपदा वाले राज्य में जहां कॉर्पोरेट जमकर माइनिंग कर रहे हैं, वहीं सूबे के अधिकारी गोल्ड की माइनिंग में जुट गए हैं. तभी तो एक अधिकारी के घर पहुंची प्रवर्तन निदेशालय की टीम को चार किलो गोल्ड मिल गया. अधिकारी माइनिंग डिपार्टमेंट में थे. गोल्ड माइनिंग (खोदने) का हुनर वहीं सीखा होगा. वैसे कोयले की पहचान वाले इस राज्य में एक जगह सोनाखान भी है. सोनाखान की पहचान शहीद वीर नारायण सिंह से है, जिन्होंने जमींदारों का अनाज गोदाम इसलिए लूट लिया कि गरीबों का पेट भर सके. इधर राजधानी में भी एक सोनाखान (माइनिंग दफ्तर) है, जहां बैठने वाले कई चेहरे ऐसे हैं, जिनका पेट सोना खाकर भरता है. गरीब किलो में अनाज खरीदता हैं, यहां किलो में सोना लिया जा रहा है, वह भी खैरात में….

एक करोड़ रुपया कितने किलो का?

जब किलो की बात छिड़ी ही है, तो एक किस्से का जिक्र जरुरी है. सूबे के बड़े प्रशासनिक ओहदे पर बैठे कुछ अधिकारियों की बैठक में एक किस्सा छिड़ा कि एक करोड़ रुपए कितने किलो का होगा? अब मालूम नहीं कि इस किस्से के पीछे की कहानी क्या है. कहीं हिस्सेदारी किलो में तो नहीं ली जा रही. बहरहाल एक छोटा सा रिसर्च कहता है कि यदि दो हजार रुपए के एक करोड़ के नोट का वजन कराया जाए, तो एक नोट का वजन करीब 0.979 ग्राम होगा. दो हजार रुपए के एक करोड़ के नोट के लिए पांच हजार नोट चाहिए होंगे. प्रति नोट 0.979 ग्राम से पांच हजार नोटों का गुणा करने पर यह करीब 4.8 किलो होगा. यानी दो हजार रुपए के एक करोड़ रुपए के नोट का वजन 4.8 किलो आएगा.  अगर पांच सौ रुपए के नोट के एक करोड़ रुपए को किलो में आंका जाए, तो यह करीब 23 किलो का होगा. पांच सौ रुपए का एक नोट करीब 1.15 ग्राम होता है. एक करोड़ रुपए के लिए करीब 20 हजार नोटों की जरूरत होगी. 1.15 ग्राम प्रति नोट के अनुपात में यह करीब 23 किलो वजन के बराबर होगा. अब सौ रुपए के नोट में ऐसी डील तो होती नहीं, लेकिन फिर भी बताते चले कि सौ रुपए के कुल एक करोड़ के नोट का वजन करीब 44 किलो होगा. अधिकारियों के किस्से पर आए, तो क्या ये माना जाए कि पर्दे के पीछे होने वाले लेन-देन की डील अब किलो में हो रही है? ये किलो कोड वर्ड तो नहीं बन गया. 

ईडी छापा 

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने काफी पहले ये आशंका जता दी थी सेंट्रल एजेंसी छत्तीसगढ़ आएगी. इस आरोप के साथ कि केंद्र इन एजेंसियों के बहाने राज्य सरकार को अस्थिर करने की कोशिश कर रहा है. अब देखिए ईडी आ गई. बताते हैं कि ईडी का मकसद कुछ और था, लेकिन पूरा नहीं हो सका. तीन ही घेरे में आ पाए. ना भी आते, यदि अनुभवी लोगों से सलाह मशविरा किया होता. जब पूरे शहर में ढिंढोरा पीटा गया हो कि ईडी आ रही है तो कौन आईएएस भला घर पर भर-भर कर नोट रखता होगा? अगली बार किसी परीक्षा में इसे लेकर किसी तरह का सवाल पूछा गया, तो जवाब मिलेगा-समीर विश्नोई. खैर सौ टके की एक बात, जो मुख्यमंत्री ने उठाई थी. ये सवाल क्यों नहीं पूछा जाना चाहिए कि ईडी की नजर गैर बीजेपी शासित राज्यों पर क्यों जा टिकी है. बीजेपी शासित राज्यों में क्या भ्रष्टाचार नहीं हो रहा? विपक्षी दलों को खत्म करने क्या संवैधानिक संस्थाओं का इस्तेमाल करना जायज है? ईडी का काम ही है छापा मारना. अच्छे से मारे छापा और भ्रष्टाचारियों को चुन-चुन कर निपटाए, लेकिन सूची में कुछेक भाजपाईयों का नाम भी तो जोड़ लें. एकतरफा कार्रवाई पर सवाल तो उठेंगे ही. 

तबादला 

सरकार की नई तबादला नीति की मियाद 30 सितंबर को खत्म हो गई. जब नीति जारी की गई थी, तब इस बात का जिक्र भी किया गया था कि तबादले के विरुद्ध 15 दिनों के भीतर राज्य स्तरीय कमेटी के समक्ष आवेदन प्रस्तुत कर दिया जाए. यानी नियमत: 15 सितंबर तक ही ऐसे आवेदन स्वीकार किए जा सकते हैं. अब देखिए कि 30 सितंबर की अवधि खत्म होने के पंद्रह दिनों बाद भी बैक डेट पर धड़ाधड़ तबादला आदेश जारी हो रहा है. अब लोग हैरान हैं कि पंद्रह दिनों की मियाद जब खत्म हो गई तो ऐसे में आवेदन किस तारीख को आधार मानकर किया जाए. नियम प्रक्रियाओं में कई लोग उलझ कर इधर उधर भटक रहे हैं. 

मुख्यमंत्री का दावेदार कौन?

जैसे-जैसे चुनाव करीब आ रहा है, बीजेपी सक्रिय होती दिखाई पड़ रही है. अब बीजेपी के भीतर कयासबाजी का दौर चल रहा है कि यदि सरकार बनी, तो मुख्यमंत्री का दावेदार कौन होगा? ठीक इस कयासबाजी के बीच राजभवन से एक तस्वीर आई. यह तस्वीर उस वक्त की है, जब आरक्षण के मामले पर राज्यपाल को ज्ञापन देने बीजेपी पैदल मार्च कर पहुंची थी. ज्ञापन देते हुए प्रदेश अध्यक्ष अरुण साव, नेता प्रतिपक्ष नारायण चंदेल, पूर्व राज्यसभा सांसद रामविचार नेता और पूर्व मंत्री केदार कश्यप दिखाई पड़ रहे हैं. इस तस्वीर को लेकर एक अनुभवी बीजेपी नेता ने टिप्पणी करते हुए कहा कि यह तस्वीर दरअसल बीजेपी में संभावित बदलाव की तस्वीर है. नेताजी की इस टिप्पणी को यदि संभावित मुख्यमंत्री के दावेदार वाली कयासबाजी से जोड़कर देखा जाए, तो क्या यह माना जा सकता है कि सरकार बनने की स्थिति में मुख्यमंत्री का चेहरा इन्हीं नेताओं में से कोई एक होगा?