इधर या उधर
अब यह अफवाह कौन उड़ा रहा है कि सूबे के अफसर बीजेपी के आला नेताओं से मुलाकात कर रहे हैं. वह भी चोरी छिपे. सुनते है कि अपनी गर्दन बचाने के लिए बीजेपी नेताओं को साधने की यह तरकीब अफसरों को सूझी है. बीजेपी के आला नेताओं की बैठक में यह चर्चा तब फूट पड़ी, जब केंद्रीय एजेंसियों के छापे और अफसरों से चल रही पूछताछ को लेकर बातचीत हो रही थी. एक बड़े नेता ने यह कहते हुए माहौल जमाने की कोशिश की कि कई नौकरशाह सीधे दिल्ली के आला नेताओं से भेंट मुलाकात कर रहे हैं. एक नेता की माने तो कुछ अफसरों की मुलाकात बीजेपी प्रदेश प्रभारी ओम माथुर से हुई है. अब इस मुलाकात के पीछे का समीकरण तो मालूम नहीं, लेकिन कयास लगाए जा रहे हैं कि इन आला नेताओं के जरिए अपना भविष्य साधने की जद्दोजहद की जा रही है. माथुर जब सार्वजनिक बयानों में यह कहते सुने जाएं कि उनका कहा मोदी-शाह भी काट नहीं सकते, तब मझधार में फंसे अफसरों को ओम माथुर ही उम्मीद के रुप में नजर आते होंगे. बहरहाल सवाल यह उठ रहा है कि राज्य की ब्यूरोक्रेसी है किस तरफ….इधर या उधर?
किसके बूते सरकार?
राज्य की ब्यूरोक्रेसी इधर हो या उधर. सरकार को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता. पिछले चुनाव में ब्यूरोक्रेसी किस ओर थी, यह मौजूदा सरकार बखूबी समझती है. शायद इसलिए आत्मविश्वास बढ़ा है कि ब्यूरोक्रेसी के बगैर भी चुनाव जीता जा सकता है. 2018 चुनाव के बाद कई बीजेपी नेता यह कहते सुने गए कि चुनाव बीजेपी-कांग्रेस के बीच नहीं, बल्कि ब्यूरोक्रेट-कांग्रेस के बीच हुआ था. चुनाव में जितना जोर ब्यूरोक्रेट्स लगा रहे थे, उतना अगर बीजेपी नेता-कार्यकर्ताओं ने लगाया होता, तो कुछ सीटें और बढ़ सकती थी. खैर अफसर लाबी तक यह संदेश पहुंचा दिया गया है कि सरकार कलेक्टर-एसपी से नहीं बल्कि किसानों के बूते बनेगी.
ओबीसी वर्सेज ओबीसी
बीजेपी अब तक यह तय नहीं कर पाई है कि विधानसभा चुनाव में चेहरा कौन होगा? मुख्यमंत्री पद के लिए दांव ओबीसी पर खेला जाएगा या फिर आदिवासी पर. संगठन हर रोज नए समीकरणों पर काम कर रहा है. 29 सीटें आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित है. इस वर्ग से पार्टी के पास कई चेहरे हैं. बावजूद इसके राज्य में ओबीसी बड़ा प्रभावी वोटबैंक है. देश की सियासत भी ओबीसी पर जा टिकी है. सत्तारूढ़ दल कांग्रेस के मुख्यमंत्री भी ओबीसी वर्ग से हैं, सो बीजेपी के भीतर ओबीसी का पलड़ा भारी हो सकता है. पिछले दिनों बीजेपी के आला नेताओं की एक बैठक में एक प्रभारी ने मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित किए जाने का प्रस्ताव यह कहते हुए रखा कि इससे बीजेपी को फायदा होगा. विशेष वर्ग का वोट बैंक मोबलाइज होगा, तो पार्टी को चुनाव जितने में सहूलियत होगी. इधर मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवारी के लिए ओबीसी वर्ग की ओर पार्टी के बढ़ते झुकाव के बीच खबर यह भी आई है कि बीजेपी के ओबीसी नेताओं में एक अघोषित टकराव की स्थिति बन गई है. जाहिर है उम्मीदवारी घोषित किए जाने की परिस्थितियां बनी तो प्रदेश अध्यक्ष होने के नाते अरुण साव की पहली दावेदारी होगी, लेकिन अगली कतार में नेता प्रतिपक्ष की हैसियत से नारायण चंदेल भी होंगे. पूर्व मंत्री और पार्टी के तेजतर्रार नेता अजय चंद्राकर की स्वाभाविक दावेदारी होगी. चंद्राकर इकलौते नेता है, जिन्हें कर्नाटक चुनाव में बड़ी जिम्मेदारी मिली है. यह संकेत है कि आलाकमान की नजरों में अजय चंद्राकर खास ओहदा रखते हैं. इन तमाम हालातों के बीच बीजेपी के भीतर नया नेतृत्व खड़े करने की पुरजोर वकालत भी की जा रही है. ऐसे में ब्यूरोक्रेसी छोड़ नेता बने ओ पी चौधरी के नाम की चर्चा भी यदाकदा होती है. जाहिर है नया नेतृत्व ढूंढा जाएगा, तो चौधरी उम्मीदवारी की कतार में खड़े पहले व्यक्ति होंगे. पटेल अघरिया समाज से आते है. एक खास क्षेत्र में इस समाज का अच्छा खासा वोट बैक है, लेकिन पूरे प्रदेश की बात की जाए तो बीजेपी साहू या कुर्मी चेहरा ही आगे बढ़ाएगी. यह लगभग तय माना जा रहा है. इन तमाम तरह के समीकरणों के बीच महाराष्ट्र के राज्यपाल रमेश बैस की सक्रिय राजनीति में वापसी की खबरों से माहौल भी बनता रहता है.
कौन बनेगा पीसीसीएफ?
संजय शुक्ला के रेरा चेयरमेन बनने के बाद नए पीसीसीएफ पर अब जल्द मुहर लग जाएगी. कोई बड़ा आश्चर्यजनक घटनाक्रम नहीं हुआ, तो श्रीनिवास राव का नाम लगभग तय है. मगर सीनियरिटी में राव के ऊपर सात अफसर है. अतुल शुक्ला और आशीष भट्ट का रिटायरमेंट करीब है. सरकार चंद महीनों के लिए पीसीसीएफ नहीं बनाएगी. उनके बाद सुधीर अग्रवाल, तपेश झा, संजय ओझा, अनिल राय और अनिल साहू का नंबर आता है. श्रीनिवास राव की ताजपोशी करने के लिए सरकार को इन सात अफसरों को ओवरलुक करना होगा. वाइल्ड लाइफ, लघु वनोपज संघ, वन विकास निगम जैसे कई ठिए हैं, जहां मुख्यालय के बाहर इन अफसरों की तैनाती की जा सकती है. चुनाव करीब है, जाहिर है सरकार की अपनी जरुरतें है. मैनेजमेंट स्कील देखकर सरकार चेहरा चुनेगी. श्रीनिवास राव बीजेपी सरकार में भी चहेते चेहरे थे. कांग्रेस में भी चहेते बने रहे. बाकी अफसरों में वह हुनर नहीं, जो राव रखते हैं. जहां-जहां पोस्टिंग रही, स्थानीय विधायक राव के मुरीद रहे. सबको साधने की कला के माहिर खिलाड़ी है राव. वैसे भी चुनाव में जंगल विभाग की अहमियत बाकी विभागों से थोड़ी ज्यादा होती है.
आरक्षण विधेयक पर बवाल
उधर झारखंड में राज्यपाल ने आरक्षण विधेयक लौटा दिया, बवाल इधर छत्तीसगढ़ में खूब कटा. मीडिया से बातचीत में संसदीय कार्यमंत्री रविंद्र चौबे और उद्योग मंत्री कवासी लखमा ने छत्तीसगढ़ के राजभवन में लंबित आरक्षण विधेयक लौटाए जाने से जुड़ा बयान देकर सनसनी फैला दी. मंत्रियों के इन बयानों से राजभवन भी सकते में आ गया. राजभवन ने सोचा जब बिल लौटाया ही नहीं, तो मंत्रियों का ऐसा बयान समझ के परे है. आनन-फानन में राजभवन ने मीडिया में आ रही खबरों का खंडन किया. मंत्रियों ने सारा दोष मीडिया पर यह कहते हुए मढ़ दिया कि ऐसी जानकारी मीडिया से मिली थी. मीडिया को सनसनी चाहिए थी. सवालों में मंत्री फंस गए. विधेयक लौटाने भर की खबर सुन राजभवन को खूब खरी खोटी सुना दी.
कलेक्टर-एसपी ट्रांसफर
सुनाई पड़ा है कि कलेक्टर-एसपी ट्रांसफर की प्रक्रिया में तेजी आई है. अब जल्द ही ट्रांसफर लिस्ट जारी कर दिया जाएगा. इस दफे करीब आधा दर्जन जिलों में बदलाव की बयान चल सकती है. बेमेतरा की घटना के बाद से यह चर्चा तेज हुई कि तबादले की जद में कलेक्टर-एसपी आ सकते है. सरकार प्रशासनिक कसावट लाने के लिहाज से सख्त कदम उठा सकती है. माना जा रहा है कि इस दफे जो तबादले होंगे, चुनाव तक कोई फेरबदल नहीं होगा.
- छतीसगढ़ की खबरें पढ़ने के लिए करें क्लिक
- मध्यप्रदेश की खबरें पढ़ने यहां क्लिक करें
- उत्तर प्रदेश की खबरें पढ़ने यहां क्लिक करें
- दिल्ली की खबरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
- पंजाब की खबरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
- लल्लूराम डॉट कॉम की खबरें English में पढ़ने यहां क्लिक करें
- खेल की खबरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
- मनोरंजन की खबरें पढ़ने के लिए करें क्लिक