”आईएएस गिरी”
सूबे के एक आईएएस अफसर लाॅ की पढ़ाई कर रहे हैं. ज्ञान हासिल करने की कोई उम्र नहीं. इस बात की तारीफ की जानी चाहिए. मगर पिछले दिनों लाॅ की परीक्षा के दौरान जो रौब आईएएस अफसर ने जमाया, ये उनकी काबिलियत पर सवाल उठा रहा है. चर्चा है कि परीक्षा देने पहुंचे अफसर ने कॉलेज प्रशासन को अपनी आईएएस गिरी दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. फरमान जारी कर दिया कि वह बाकी परीक्षार्थियों के साथ नहीं बैठेंगे. उन्हें अलग से बिठाने की व्यवस्था की जाए. अफसर अपनी पूरी धमक दिखा रहे थे. अफसर के दबाव में नियम कानून को ताक पर रख कालेज प्रशासन ने अलग से बिठाए जाने की व्यवस्था कर दी, लेकिन हद तो तब हो गई जब आईएएस महोदय किताब खोलकर बैठ गए और उत्तर पुस्तिका भरने लगे. उन्होंने पहले ही यह चेतावनी दे दी थी कि उस कमरे में कोई भी दाखिल न हो. मगर ड्यूटी पर तैनात परीक्षा अधिकारी ने जब यह देखा, तब उन्होंने न केवल आपत्ति जताई बल्कि किताब भी छीन ली. आईएएस गुस्से से लाल हो उठे और देख लेने की धमकी देने लगे. परीक्षा अधिकारी ने भी उन्हें जमकर घुड़की दी और लौट गए. बहरहाल आईएएस अफसर के साथ परीक्षा दे रहे उनके युवा सहपाठी इस गुमान में थे कि वह एक आदर्श स्थापित कर रहे हैं. उम्र के इस पड़ाव में भी ज्ञान हासिल करने की उनकी जिजीविषा की चर्चा होने लगी थी, मगर तब यह कौन जानता था कि आईएएस की नियत चोरी का ज्ञान हासिल करने की थी. वैसे इस अफसर का एक परिचय ये भी है कि पिछले दिनों वह अपने दफ्तर में नशे में चूर होकर पहुंचे थे. अपने सहकर्मियों के साथ खूब गाली गलौज की थी.
‘एसपी की घुड़की’
रूलिंग पार्टी का छुटभैया नेता भी अपने इलाके में खुद को सीएम से कम नहीं समझता. फिर तो जिस नेता की हम बात कर रहे हैं, ये सज्जन कांग्रेस पार्टी के पूर्व जिलाध्यक्ष रह चुके हैं. पिछले दिनों एक वाक्या ऐसा घटा कि सड़क पर ही नेता और एस पी के बीच तू तू- मैं मैं जैसे हालात बन गए. एस पी ने जब कहा कि तुम्हारी नेतागिरी ”—-” दूंगा, तब नेता को अपनी जमीन याद आ गई. हुआ कुछ यूं कि नेता जी को अचानक समोसे की तलब लग गई. उन्होंने बीच सड़क पर ही गाड़ी खड़ी करवा दी और अपने ड्राइवर को समोसे लेने भेज दिया. समोसे की गर्माहट का अहसास बाद में होता, इधर सड़क पर माहौल गर्मा गया. ट्रैफिक ध्वस्त हो गया. लंबी भीड़ लग गई. ठीक इस वक्त एसपी जिम से लौट रहे थे. ट्रैफिक जाम को देखते हुए उन्होंने अपने ड्राइवर को इसकी वजह पता लगाने भेजा. मालूम चला कि नेताजी की गाड़ी बीच सड़क खड़ी है. हालांकि ड्राइवर ने नेताजी को यह बता दिया था कि पीछे एसपी की गाड़ी जाम में फंस गई है. अपनी गाड़ी जरा साइड कर लें. मगर थे तो रुलिंग पार्टी के नेता. गाड़ी टस से मस नहीं हुई. डंके की चोट पर कह पड़े कि उनकी गाड़ी दस मिनट बाद ही हटेगी. नतीजतन एसपी को खुद गाड़ी से उतरकर नेता जी के पास जाना पड़ा. एसपी ने नेता को जमकर घुड़की पिलाई. दो टूक कहा कि जनता के नेता बनते हो और जनता को ही बेहाल कर रखा है. एसपी जिम से लौट रहे थे, एनर्जी से भरपूर थे. खुद भी ट्रैफिक जाम का शिकार थे. नेता ने फौरन मिजाज भाप लिया और ड्राइवर के आने के पहले खुद ही ड्राइविंग सीट पर बैठ गाड़ी किनारे कर लिया.
‘पुलिस पर भरोसा’
पिछले दिनों राजधानी में चाकूबाजी की घटना में दो लोगों की मौत हो गई. हद तो तब हो गया, जब आरोपी को कोर्ट से जेल शिफ्ट किया जा रहा था. जेल परिसर में ही एक आरोपी के भाई को चाकू घोप दिया गया और वह भी पुलिस की नाक के नीचे. इस घटना ने सवाल उठाया कि क्या पुलिस के बूटों में अब वह खनक नहीं रही कि अपराधी खौफ के साएं में जिए? इस सवाल के अगले ही दिन पुलिस अपने पर आ गई. अलसुबह से लेकर दोपहर होते-होते शहर के सारे नामचीन अपराधी धर दबोचे गए. दिलीप मिश्रा, मुकेश बनिया, जमन ईरानी समेत डेढ़ सौ से ज्यादा अपराधी एक झटके में दबोच लिए गए. बाकायदा पुलिस ने अपराधियों का जुलूस भी निकाला. एडिशनल एसपी से लेकर सीएसपी, टीआई समेत राजधानी की पूरी पुलिस सड़क पर थी. अपराधी घेरे में थे. मालूम चला कि ऊपर के अधिकारियों की खुराक ही थी, जिससे पुलिस हरकत में आई. मगर सबसे बड़ा सवाल यह कि पुलिस ने जिन अपराधियों को दबोचा, उन अपराधियों के राजनीतिक आकाओं का क्या? खाकी वर्दी का खौफ अपराधियों में कब होगा. यकीनन तब नहीं जब गांजा की तस्करी करते पकड़े गए आरोपी को बचाने एक आला नेता थानेदार को फोन कर दे. यकीनन तब भी नहीं, जब सट्टा पट्टी चलाने वाले अपराधियों को संरक्षण उनके राजनीतिक आकाओं से मिले. यकीनन तब भी नहीं जब किसी को चाकू घोप देने वाले आरोपी के केस को कमजोर करने राजनीतिक दबाव बनाया जाए. यकीनन तब भी नहीं, जब अपने राजनीतिक रसूख को बढ़ाने अपराधियों को ही जिम्मेदारी सौंप दी जाए. क्या पुलिस नहीं जानती कि गांजा तस्करों का असल सरगना कौन है? क्या पुलिस नहीं जानती कि सट्टा पट्टी चलाने वाले किसके गुर्गे हैं? पुलिस सब जानती है. दुर्भाग्य है कि कुछ हैं, जो हिस्सेदार बन जाते हैं, कुछ हैं, जो रिस्क नहीं उठा पाते और कुछ हैं, जो अपने दायरे में अपनी ड्यूटी ईमानदारी से निभा पाते हैं. बहरहाल अपराधियों के ऐसे जुलूस निकलते रहें, तो पुलिस पर भरोसा कायम रहेगा.
राज्यपाल को लेकर चर्चा
आरक्षण विधेयक पर राज्यपाल के अब तक दस्तखत नहीं किए जाने और तमाम तरह के सियासी बयानों के बीच अब ये अफवाह कौन फैला रहा है कि राज्यपाल की उल्टी गिनती शुरू हो गई है? एक वर्ग में चर्चा है कि राज्यपाल को बदलने की तैयारी चल रही है. हालांकि इसकी सच्चाई कितनी है, यह मालूम नहीं. चर्चा है कि आरक्षण विधेयक को लेकर बुलाए गए विशेष सत्र के पहले राज्यपाल के दिए गए उस बयान से बीजेपी के आला नेता नाखुश थे, जिसमें उन्होंने कहा था कि आरक्षण विधेयक पारित करने के चंद घंटों के भीतर वह दस्तखत कर देंगी. विशेष सत्र बीत गया, विधेयक पारित होकर राजभवन चला गया, मगर दस्तखत अब तक नहीं हो सका. कांग्रेस-बीजेपी इस मुद्दे को लेकर एक-दूसरे पर हमलावर है. चुनावी साल है. आरक्षण पर टकराव के इन हालातों के बीच जाहिर है बीजेपी अपना नफा-नुकसान का आंकलन कर रही है. मुमकिन है, राज्यपाल को बदलने की चर्चा इसी आंकलन की एक कड़ी हो सकती है. चर्चा में यह भी सुना गया है कि केंद्र संघ पृष्ठभूमि से कोई नया चेहरा ढूंढ रहा है. बहरहाल यह चर्चा बदलाव के साथ जाकर कहीं ठहरेगी या फिर महज चर्चा तक सीमित होकर रह जाएगी, आने वाला वक्त बता ही देगा.
IAS कॉन्क्लेव रद्द
फरवरी में प्रस्तावित आईएएस कॉन्क्लेव रद्द हो गया है. चुनावी साल के पहले एक दफे फिर से आईएएस जुटते. प्रशासनिक कामकाज को लेकर खुलकर बात होती, लाजमी है कि मनोरंजन भी होता. पिछली बार जब मेफेयर रिसार्ट में कॉन्क्लेव हुआ था, तब उसकी खूब चर्चा हुई थी. बताते हैं कि कई आईएएस इलेक्शन आब्जर्वर बनाए गए हैं. कॉन्क्लेव को लेकर एक्टिव रहने वाले कुछ आईएएस अपने बच्चों की परीक्षा को लेकर व्यस्त हैं. इसके साथ ही कई छोटे-मोटे कारण और भी हैं. कुल मिलाकर अब चुनाव के पहले मुमकिन नहीं कि कॉन्क्लेव हो जाए. हालांकि इन सबके बीच कॉन्क्लेव रद्द करने के पीछे एक बड़ी चर्चा और भी हैं, जिसका जिक्र करना ठीक नहीं…
शंकराचार्य की चुनौती
बागेश्वर धाम वाले पंडित धीरेंद्र शास्त्री का दिव्य दरबार सजा है. कहते हैं कि पंडित जी सिद्धस्त हैं. सामने कोई भी हो, उसका अगला-पिछला बताकर उसे नंगा कर देंगे का हुनर रखते हैं. दिव्य दरबार में पर्चा निकालकर एक झटके में समस्या का निवारण कर देते हैं. बड़ी से बड़ी बीमारी ठीक करने के भी दावे है. बुंदेलखंड में चार सौ करोड़ का अस्पताल बनवा रहे हैं. अस्पताल बनने से यकीनन बुंदेलखंड के लोगों के लिए एक बड़ी राहत की बात होगी. मगर सवाल यह है कि जब रोगियों को चमत्कृत ढंग से दुरुस्त करने का हुनर उनके पास पहले से ही है, तब फिर अस्पताल बनाने का फायदा क्या होगा? स्कूल बना देते. सड़कें दुरुस्त कर देते. दक्षिण भारत के सत्यसाईं बाबा की तरह कई सौ गांवों में पीने का साफ पानी पहुंचा देते. खैर, चमत्कार के उनके अपने दावों के बीच शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने अपने एक बयान में कहा है कि जोशीमठ में आए दरारों को अपने चमत्कारों से भर दें, तो वह खुद पंडित धीरेंद्र शास्त्री का स्वागत करेंगे. वैसे गुरू के लिए यह बड़ा मौका है. अपने आप को साबित करने का. चमत्कारों से जोशी मठ को बिखरने से बचाने के बाद मर्ज कीजिए पंडित धीरेंद्र शास्त्री का ओहदा कितना बढ़ जाएगा. देश-दुनिया में ख्याति मिलेगी सो अलग.