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रूपलोभी (1)
शायद ही कोई होगा जो मंत्रीजी के दिल-फेंक मिजाज से वाकिफ ना होगा. रुपलोभी इस मंत्री के किस्सों की बगिया में अभी-अभी एक ताजा फूल खिला है, जिसकी खुशबू में मंत्रीजी ऐसे रम गए हैं, मानो किसी मोहपाश ने उन्हें जकड़ रखा हो. कहते हैं कि मंत्रीजी प्रेम में है. प्रेम में गोते लगाना अलग बात है. प्रेम में डूब जाना अलग. मंत्री जी को डूबने में गहरा आनंद आता है. उनकी प्रेम की गहराई को भला कोई दूसरा कैसे नाप सकता है. खैर, मंत्री हैं. मंत्रियों का अपना निजी जीवन कहां? इस निजी मसले को भी सार्वजनिक होना ही था. मातहतों को मंत्री की खुशी देखी नहीं जा रही थी, सो किस्सोगोई में जुट गए. ठहर-ठहर कर किस्से सुनाने लगे. एक सज्जन ने यह कहते हुए चाशनी बिखेरनी चाही कि किसी काम में मंत्री का दिल नहीं लग रहा. तपाक से दूसरे ने कहा कि दिल गिरवी है. वैसे तो गिरवी के ऐवज में उसकी कीमत जौहरी चुकाता है, मगर यहां जौहरी दोहरे फायदे में है. जौहरी के चेहरे की चमक से मंत्रीजी की आंखें चौंधिया सी गई हैं. जौहरी ने अपनी चमक के बूते मंत्रीजी के विभाग से कई करोड़ के ठेके ले रखे हैं. कई करोड़ के ठेके लेने बाकी है, लेकिन फाइल ने जब इठलाना शुरू किया, तब लचक आ गई. एक बोर्ड के चेयरमेन इस लचक की वजह बन गए. तपाक से कह दिया कि मरहम में एक पाई भी खर्च नहीं करूंगा. सुनते हैं कि चेयरमेन की तल्खी की वजह से मंत्री के साथ उनकी ठन गई है. बेचारी जौहरी बनी इस खेल की नायिका अब मंत्री को कोस रही है. मंत्री चेयरमेन को. रिश्तों में बहना जरूरी है, इधर ठेका नहीं मिलने से ठहराव के हालात बन गए हैं.
मोहपाश (2)
नई-नई सरकार बनी थी, तब एक मंत्री कुछ इस तरह ही मोहपाश में फंसते-फंसते बच गए थे. क्या सुबह-क्या रात. जब मौका मिलता पार्टी की एक महिला नेत्री उनके सामने आ जाती. कभी बंगले पर चहलकदमी करते दिखाई पड़ती, कभी दफ्तर में अपनी आमद देती. मंत्री भी भरपूर एंटरटेन करते. चाय-काफी-जूस की पेशकी में कोई कमी ना होती. लंबी-लंबी गप शप चलती. हंसी ठिठोली होती. मंत्री के एक अधीनस्थ ने महिला नेत्री के रुख को भांप लिया. एक रोज जब मौका मिला, धीरे से मंत्री से बोल उठे, ‘आपको थोड़ा संभलने की जरूरत है’. मंत्री ने दो टूक कहा- ‘मैं जानता हूं कि मुझे ट्रैप करने की कोशिश की जा रही है’. महिला थी, संदेह में आ गई या ले आई गई. मंत्रीजी समझ गए थे या समझा दिए गए थे. क्या मालूम?
फजीहत
वन विभाग बड़ा लाचार है. लगता नहीं यहां के अधिकारी विभाग की लाचारियत दूर करने का बीड़ा उठाएंगे. ना सिखेंगे-ना सिखाएंगे का मूलमंत्र गढ़ रखा है. अब इस मामले को देखिए. पड़ोसी राज्य मध्यप्रदेश के वन महकमे ने कान्हा में 27 से 29 अप्रैल तक इंटरनेशनल सेमिनार का आयोजन किया है. देश-दुनिया के तमाम वाइल्डलाइफ विशेषज्ञ इस सेमिनार में शिरकत करने पहुंच रहे हैं, लेकिन छत्तीसगढ़ के अफसरों की लापरवाही से राज्य का प्रतिनिधि इसमें मौजूद नहीं होगा. हुआ यूं कि मध्यप्रदेश ने 28 मार्च को पीसीसीएफ को चिट्ठी लिखकर सेमिनार में प्रतिनिधि भेजने का आग्रह किया था. चिट्ठी धूल खाती कहीं टेबल पर पड़ी रही. 21 अप्रैल को यानी सेमिनार के ठीक छह दिन पहले ख्याल आया कि नाम भेजे जाने हैं, सो आनन-फानन में तीन नाम तय हुए और चिट्ठी जारी की गई. एक चिट्ठी निकाली गई. जिन तीन अफसरों को सेमिनार में भेजा जाना था, उन्हें संबोधित कर चिट्ठी भेज दी गई और इस चिठ्ठी की एक कापी प्रतिलिपि के रुप में मध्यप्रदेश भेजी गई. मध्यप्रदेश वन विभाग के एक आला अफसरों का माथा ठन गया. सेमिनार में भेजने की सूचना भी भला प्रतिलिपि के रूप में कौन भेजता है? खूब फजीहत हुई विभाग की. इतना ही नहीं सभी राज्यों से आने वाले प्रतिनिधियों की सहूलियत और रजिस्ट्रेशन के लिए एक व्हाट्स एप ग्रुप बनाया गया था. सेमिनार का आयोजन कर रहे मध्यप्रदेश वन विभाग के चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन तक ने प्रक्रिया पूरी करते हुए अपना रजिस्ट्रेशन कराया, मगर छत्तीसगढ़ का वन विभाग को अपने पूरे रुआब में रहा. समय बीत जाने के बाद रजिस्ट्रेशन का ख्याल आया. तब ग्रुप में मौजूद मध्यप्रदेश के एक अफसर ने लिख दिया- Not possible to accommodate anymore. pls inform the concerned. सार्वजनिक बेइज्जती इसे ही कहते हैं.
बंगला
भिलाई की आबोहवा का दोष है या कुछ और. अफसर-नेताओं के बीच बीएसपी के बंगले का मोह खत्म होने का नाम नहीं ले रहा. जिसकी पोस्टिंग एक दफे भिलाई में हो गई, मानो उम्र भर के लिए बंगला मिल गया. कुछ तो बात होगी बीएसपी के इन बंगलों में, वरना नजरें यूं ना ठहरती. फिलहाल नगरीय प्रशासन मंत्री शिव डहरिया बंगले को लेकर खूब चर्चा में है. भिलाई के 32 बंगला एरिया में उनका एक बड़ा बंगला तैयार हो गया है. बंगले के ठीक बाजू नगरीय निकाय मद से एक बड़ा गार्डन बनवाया जा रहा है. अब ऐसा तो है नहीं आज मंत्री है, तो बंगला है, नहीं रहेंगे तो छिन जाएगा. आज तक भला किसी अफसर-नेता का छिना गया है क्या? डहरिया के ठीक बाजू में पूर्व मंत्री रमशीला साहू का बंगला है. वह किसी पद पर भी नहीं. लेकिन यहां बंगला पाने की यह कोई अर्हता भी नहीं. मिलने भर की देरी है. सीट बदल-बदल कर चुनाव लड़ने वाले डहरिया ने भिलाई में आखिर बंगला क्यों लिया? यह सोच-सोच कर कई लोग अपना खून जला रहे हैं. वैसे डोंगरगढ़ विधायक भुनेश्वर बघेल ने भी बीएसपी का बंगला लिया है. स्थानीय विधायक देंवेंद्र यादव की बात छोड़ दीजिए. सुनते हैं कि उनके हिस्से एक नहीं कई बंगले हैं.
सुपोषिक कौन : बच्चे या अफसर?
बच्चों का पोषण तो दूर सूबे के शिक्षा विभाग के अफसरों को यकीनन अपने पोषण की चिंता हुई होगी. फिर मुख्यमंत्री का निर्देश भले ही कूड़े में क्यों ना चला जाए. प्रधानमंत्री पोषण शक्ति निर्माण योजना के लिए स्कूली बच्चों को सोया चिक्की वितरित किए जाने की केंद्रीय योजना थी. राज्य में सोया होता नहीं, लिहाजा मुख्यमंत्री ने एक नहीं बल्कि दो बार केंद्र को चिट्ठी लिखकर मिलेट मील दिए जाने का अनुरोध किया. केंद्र ने अनुमति दे दी. फंड मार्च में आया और 30 अप्रैल तक अधिकारियों ने खरीदी का आदेश जारी कर दिया. मिलेट मील की सप्लाई को लेकर सरकार का स्पष्ट निर्देश था कि वन समितियों से सामग्री लेकर स्व सहायता समूह से मील तैयार कराई जाए. मगर धुरंधर अधिकारियों ने कलेक्टरों के मार्फत आदेश निकलवा कर सी मार्ट से खरीदी कर दी. वह भी तब जब स्कूलों में बच्चे नहीं आते. इस मामले की शिकायत पीएमओ तक भेजी गई. आनन-फानन में खरीदी का आदेश रद्द किया गया. 12 जिलों के अफसर नोटिस की जद में आए. अब देखते हैं कार्रवाई कितनों पर होती है?
IPS की बारी
आईएएस अफसरों के तबादले के बाद अब बहुप्रतिक्षित आईपीएस सूची की बारी है. इस दफे आईपीएस की जंबो लिस्ट आएगी. कई जिलों के एसपी इधर से उधर होंगे. रेंज स्तर पर भी फेरबदल के संकेत है. सुंदरराज पी को बस्तर संभालते लंबा अरसा बीत चुका है, जाहिर है बदलाव की जद में वह आ सकते हैं. संकेत हैं कि एक-दो रेंज के आईजी भी बदले जाएंगे. रायपुर, बलौदाबाजार, बेमेतरा, मुंगेली, कांकेर समेत कई जिलों के एसपी बदले जा सकते हैं. चुनाव करीब है, लिहाजा नई लिस्ट में उसका असर दिखेगा. ऐसे अफसर मैदानी तैनाती पाएंगे, जो मौजूदा सरकार के लिए मुफीद साबित हो. मई के पहले सप्ताह कलेक्टर-एसपी कांफ्रेंस होना है. अब सवाल यह है कि लिस्ट पहले आएगी या बाद में?