Column By- Ashish Tiwari , Resident Editor

क्रॉस वोटिंग

छत्तीसगढ़ विधानसभा में राष्ट्रपति पद के लिए वोटिंग चल रही थी. पहला वोट डालकर जैसे ही पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर बाहर आए, सीना फुलाकर पूरे दम से कहा कि सौ फीसदी क्रॉस वोटिंग होगी. तब कांग्रेस खेमे ने दावा किया कि पार्टी के विधायक निष्ठा में बंधे हैं पर जब नतीजे आए, तब मालूम चला कि दो विधायकों ने अपनी निष्ठा की बलि दे दी. सवाल उठा कि कांग्रेस के ये ‘विभीषण’ कौन हैं, जिनका वोट विरोधी खेमे में जा मिला. मंत्री अमरजीत भगत ने इन दो विधायकों को लेकर यह तक कह दिया कि ”जिसने भी किया गलत किया. पार्टी संज्ञान भी लेगी और कार्रवाई भी करेगी”. राष्ट्रपति चुनाव में गोपनीय मतदान होता है. पार्टी का व्हिप जारी नहीं होता. मालूम कर पाना मुश्किल होता है कि क्रॉस वोटिंग किसने की. मगर इन सबके बीच एक शख्स ऐसे निकले, जिन्होंने खुद हल्ला मचा दिया. ये कांग्रेस के वरिष्ठ आदिवासी विधायक हैं और सरकार में मंत्री भी. वोट डालने के दौरान उन्होंने राष्ट्रपति पद की एनडीए उम्मीदवार रहीं द्रौपदी मुर्मू के पक्ष में वोट डाल दिया. अब वोट डालकर चले जाते तो किसे खबर मिलती, लेकिन खुद ही हल्ला मचाने लगे. मंत्री जी ने निर्वाचन अधिकारियों से दूसरा मतपत्र यह कहते हुए मांगा कि उन्होंने गलत वोटिंग कर दी है. अधिकारियों ने बताया कि अब कुछ नहीं हो सकता. मतपत्र गिनती से आते हैं. जो हो गया सो हो गया वाला हाल हो गया. कांग्रेस पार्टी ने सभी विधायकों को नसीहत दी थी कि उनका वोट विपक्ष के उम्मीदवार य़शवंत सिन्हा को ही जाना चाहिए. क्रॉस वोटिंग करने वाले मंत्री आदिवासी वर्ग से हैं. मुर्मू भी आदिवासी हैं, सो अब लोग सवाल उठा रहे हैं कि मंत्री का वोट महज गलती भर है या उन्होंने अंतरआत्मा की आवाज पर वोट किया है. वैसे क्रॉस वोटिंग करने वाले दूसरे शख्स के बारे में मालूम नहीं चल सका है. कयास लगाए जा रहे हैं कि ये आदिवासी वर्ग से नहीं हैं. 

कुत्ता बीमार

असम के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्वा सरमा ने एक दफे बयान दिया था कि जब वह असम के मुद्दों को लेकर राहुल गांधी से मिलने गए थे, तब राहुल का ध्यान कुत्ते को बिस्किट खिलाने पर था. सरमा इतने आहत हुए कि जिस दल को पानी पी-पी कर कोसते थे, बाद में वह उसका हिस्सा बन गए. पद और प्रतिष्ठा मिली. सरमा अब अपने उस पुराने दल को गरियाने में कोई कसर नहीं छोड़ते, जिसने उन्हें राजनीतिक पहचान दी. खैर, एक दफे फिर ‘कुत्ता’ चर्चा में है. सुनाई पड़ा है कि कुछ इसी तरह का अनुभव एक बड़े राज्य के नेता को हुआ. बताते हैं कि सूबे के बड़े नेता की दिल्ली के एक बड़े नेता से मुलाकात तय थी. राज्य के सियासी पहलुओं पर इत्मीनान से बातचीत होनी थी. शिकायतों की लंबी फेहरिस्त थी. मगर ऐन वक्त पर दिल्ली पहुंचे नेताजी को खबर करवाई गई कि मुलाकात नहीं हो पाएगी. वजह पूछने पर मालूम हुआ कि बड़े नेता का कुत्ता बीमार है. ईलाज के लिए ले जाया गया है. कुत्ता भी अपने भाग्य पर इठलाता होगा कि राज्य में सियासी उथल पुथल के बावजूद उसे ज्यादा महत्व मिल रहा है. बताते हैं कि नेताजी मन मसोसकर रह गए. 

पर्स चोरी

एक वीआईपी जिले के पुलिस अधीक्षक की पत्नी का पर्स राजधानी में चोरी हो गया. वह मेकाहारा में डाॅक्टरी करती हैं. बताते हैं कि पर्स तो कीमती था ही, भीतर रखा सामान लाखों का था. दो-ढाई लाख की एक छोटी मशीन थी, 10-12 हजार रुपए थे. यह मामूली चोरी नहीं थी. जब चोरी हुई तब चोर को यकीनन यह मालूम नहीं रहा होगा कि जिसका पर्स चुरा रहा है, वह पुलिस अधीक्षक की पत्नी हैं. थोड़ा भी भान होता, तो ये हिमाकत ना करता. डायन भी चार घर छोड़कर चलती है. कहते हैं कि इस चोरी की जांच में तीन थाने के टीआई झोंक दिए गए, पर किसी तरह का क्लू नहीं मिला. मेकाहारा में रोजाना हजारों लोग आते-जाते हैं. ऊपर से कमबख्त सीसीटीवी भी खराब पड़ा हुआ है. ना जाने कितनी तरह की चोरियां हर रोज होती होंगी. पुलिस अधीक्षक की पत्नी का पर्स चोरी हुआ है, तो पुलिस ने मेकाहारा प्रबंधन को सीसीटीवी खराब होने पर फटकार लगाई है. चार-पांच दिन बीत गए हैं. पर्स नहीं मिला है, यह समझा जा सकता है कि इन दिनों पुलिस अधीक्षक साहब का क्या हाल होता होगा. 

एक किस्सा और…

अभी हाल फिलहाल की बात है. शहर के एक निजी होटल में सूत्रा नाम से एक लाइफस्टाइल एग्जिबिशन लगा था. साल में एक बार लगने वाले इस एग्जिबिशन का इंतजार लोग बेसब्री से करते हैं. उद्योग जगत से लेकर नौकरशाहों की पत्नियों के बीच यह एक्जिबिशन काफी लोकप्रिय रहा है. बहरहाल सुनने में आया कि शाॅपिंग की हाॅबी रखने वाली एक आईएएस की पत्नी भी इस एग्जिबिशन में पहुंची थी. उन्होंने जमकर शाॅपिंग की. पत्नी की शाॅपिंग की चर्चा विभाग में पहले भी उठती रही थी. चर्चा में पता चला कि कई-कई साड़ियां, चप्पले और पर्स की शाॅपिंग की गई. कहते हैं कि कुछेक लाख रुपए का बिल कटा. तब साहब की पोस्टिंग भी ठीक ठाक जगह थी, खुद की जेब ढीली करने की नौबत नहीं आई. बस अपने मातहत को एक फोन करना पड़ा. बिल की अदायगी हो गई. 

चिट्ठी आई, पैसा नहीं. 

कैम्पा के किस्से अनगिनत हैं. बस्तर के अंदरूनी इलाकों के जंगलों में बनाए गए नरवा प्रोजेक्ट का दौरा कर आएं, पता चल जाएगा कि विकास नरवा का हुआ या अधिकारियों का. वन विभाग में जो है, यही है. यही से सब सुपोषित होते हैं. पिछले साल की बात है कि बस्तर के बेहद ही अंदरूनी इलाकों से खबर आई थी कि नरवा बनाने के नाम पर करोड़ों रुपए का भुगतान कर दिया गया था. जमीन पर एक ढेले का भी काम ना था. खैर, विभाग में नरवा प्रोजेक्ट के तहत हुए कामों का भुगतान अभी महीनों से लंबित है. बताते हैं कि जुलाई के पहले हफ्ते में ठेकेदारों को भुगतान करने से जुड़ी एक चिट्ठी जारी की गई. डिविजनों में चिट्ठी पहुंच गई, पर पैसा नहीं पहुंचा. ठेकेदारों ने चिट्ठी के दम पर डीएफओ पर चढ़ाई करनी शुरू कर दी. बस्तर संभाग के एक जिले से खबर आई कि यहां एक डीएफओ अपने घर रात का खाना खा रहे थे कि अचानक एक ठेकेदार आ धमका. कहने लगा, साहब पैसे ट्रांसफर कर दीजिए. डीएफओ ने कहा अभी पैसा नहीं आया है. ठेकेदार ने चिट्ठी दिखा दी. डीएफओ ने समझाने की कोशिश की कि अभी सिर्फ चिट्ठी आई है, पैसा नहीं. बताते हैं कि ठेकेदारों की रोज-रोज की किचकिच से डीएफओ ने साहब को फोन मिलाया और कहा कि सिर्फ चिट्ठी आई है, पैसा नहीं. साहब ने आश्वासन दिया कि पैसा भी आ जाएगा. वह दिन है और आज का दिन डिविजनों में पैसा नहीं भेजा गया है. बस्तर के डीएफओ को लेकर सुना गया कि बस्तर छोड़ इन दिनों वह राजधानी में है और फोन भी बंद है. जानकार बताते हैं कि पूरा मामला कमीशन के खेल से जुड़ा है. पैसा तब जारी होगा जब कमीशन पहले पहुंचेगा. राज्य में हरियाली दिखे ना दिखे, वन महकमे के अधिकारियों को दिखती रहनी चाहिए. 

डीएमएफ का गणित

डीएमएफ के अपने नियम कायदे हैं. इसकी राशि का खर्च कायदों में ही रहकर किया जाना है. इधर राज्य में कायदों को किनारे लगा दिया गया है. डीएमएफ में खर्च की जा रही राशि की ठीक-ठीक जांच कर दी जाए, तो एक बड़ा घोटाला फूट पड़ेगा. कोरबा जिले में डीएमएफ में गड़बड़ी पर राजस्व मंत्री जयसिंह अग्रवाल और अकलतरा विधायक सौरभ सिंह के उठाए गए मामलों पर विधानसभा में दिए गए सरकार के हालिया जवाब में कहा गया है कि कलेक्टर से प्रतिवेदन मंगाया गया है. इस बीच एक रोचक मामला सामने आ गया. जांजगीर-चाम्पा में तबादला आदेश जारी होने के ठीक बाद कलेक्टर ने 30 करोड़ रुपए का काम ना केवल स्वीकृत किया, बल्कि दूसरे दिन ही भुगतान करा दिया  एक सप्लायर को तो सिंगल कोटेशन के आधार पर 8 करोड़ रुपए का भुगतान कर विभिन्न सामग्रियों की सप्लाई करवा दी गई. सप्लाई की गई सामग्री विकासखंडों के गोडाउन तक पहुंच गई. जिले में डीएमएफ के कई काम बगैर शासी समिति की अनुशंसा के ही कर दिए गए हैं. ब्याज की राशि को डीएमएफ की मूल राशि में समायोजित करने का नियम है, लेकिन ब्याज की अतिरिक्त राशि भी धड़ल्ले से खर्च कर दी गई. बताते हैं कि नए कलेक्टर जब जिले की कमान लेने पहुंचे, तो यह सब देखकर उनका सिर चकरा गया. कुछ स्वीकृतियों को उन्होंने निरस्त कर दिया. बहरहाल यहां सब कुछ,सबकी नजर में है, बावजूद इसके कार्रवाई सिफर है. डीएमएफ का गणित ही कुछ ऐसा है. हर जगह मौज है.