Column By- Ashish Tiwari , Resident Editor

अऊ नई सहिबो…

नारों के बगैर चुनाव देखा है क्या? नारों ने अच्छी-अच्छी सरकार की चूलें हिला दी. तख्तापलट कर दिया. नेताओं को औंधे मुंह जमीन पर पटक दिया. पिछले चुनाव में ‘नरवा, गरवा, घुरवा, बारी, ऐला बचाना हे संगवारी’ नारे ने कांग्रेस का माहौल बना दिया था. इस दफे भाजपा के नारे की जमकर गूंज हुई. अऊ नई सहिबो, बदल के रहिबो…सुनते हैं कि हास्य कवि सुरेंद्र दुबे के बेटे आशुतोष दुबे इस नारे को इजाद करने वाले चेहरे थे. क्या मोदी और क्या शाह. शायद ही कोई नेता छूटा तो, जिसके भाषण में यह नारा ना लगाया हो. भाजपा को लगता है कि इस नारे ने ही लोगों के बीच माहौल बनाया है. बात इतनी ठीक थी, मगर ये नारा भाजपा के उन सीनियर विधायकों की गले की हड्डी बन गई, जो दशकों से चुनाव जीत रहे थे. डर के मारे ही सही नेताओं ने अपनी विधानसभा में बांटे गए प्रचार पर्चों से ही इस नारे को गायब करा दिया. अब प्रचार पर्चे में यह लिखा होता कि अऊ नई सहिबो, बदल के रहिबो…तो मैसेज निगेटिव ना चला जाता. सीनियर नेता सियासी रणनीतिकार रहे हैं. दिमाग लगाया. अपनी-अपनी विधानसभा में प्रचार के वक्त संभल-संभल कर इस नारे का जिक्र करते रहे. ये सोचकर कि उनकी विधानसभा में ही कहीं जनता इस नारे पर अमल ना कर ले. कहीं जनता उन्हें ये ना कह दे…अऊ नई सहिबो, बदल के रहिबो…

चुनावी गणित…

नतीजे 3 तारीख को आएंगे, लेकिन जब से दूसरे चरण का मतदान खत्म हुआ है. शायद ही ऐसा कोई दिन बीता हो, जब चुनावी गणित को हल करने में किसी की दिलचस्पी न हो. नेता हो, ब्यूरोक्रेट हो, पत्रकार हो या फिर बाजार हो. हर जगह चर्चा गर्म है. एक दिन की चर्चा कांग्रेस सरकार बनाकर खत्म होती है, तो दूसरे दिन एक नया फार्मूला चुनावी गणित के समीकरण पलट देता है. कांग्रेस की सरकार बनाने वाले भाजपा पर दांव लगा जाते हैं. तीसरे दिन फिर कांग्रेस में लौट आते हैं. ना जाने कितनों ने लाखों की शर्त लगा ली है. सबूत के लिए डायरी में अपने दावों को लिख गवाहों के दस्तखत लिए गए हैं. अपने दावों से कुछ पलटी बाज पलट ना जाए, इसलिए वीडियो रिकॉर्ड भी रखा गया है. ब्यूरोक्रेट्स के दावे बड़े दिलचस्प है. नतीजों को लेकर ब्यूरोक्रेट बंट गए हैं. एक बड़ा वर्ग है, जो चाहता है भाजपा की सरकार बने. इसलिए उनके चुनावी नतीजों का गणित ऐसा फार्मूला जोड़ता दिखता है, जिसके नतीजे भाजपा को जिताने वाले बनते दिखे. कुछ उत्साहित ब्यूरोक्रेट तो ऐसा फार्मूला लगाते दिखते हैं, जिसमें 60 सीटों के साथ भाजपा की सरकार बन जाएगी. उनके दावे पर एक टिप्पणी भी दर्ज हुई. कृषि देख चुके एक अफसर ने बोला, अब यह उन्हें कौन समझाए कि यह छत्तीसगढ़ है. ”यहां भाजपा अधिया लेकर खेती किसानी करती है. जमीन कांग्रेस की है. अधिया लेने से कोई जमीन का मालिकाना हक कैसे ले लेगा.” बहरहाल, चुनावी गणित हल कर रहे ब्यूरोक्रेट जो भाजपा की सरकार नहीं बना रहे, उनके फार्मूले से सूबे में 50 प्लस सीटों के साथ कांग्रेस रिपीट हो रही है. वैसे बता दें कि भाजपा- कांग्रेस को जिताने के इन अफसरों के दावों में उनकी wishful thinking ज्यादा दिखाई पड़ती है. कांग्रेस सरकार में जो अफसर हाशिये पर रहे, वह सरकार बदलने की स्थिति में अपना बेहतर प्लेसमेंट ढूंढ रहे हैं और कांग्रेस सरकार में ओहदा पाने वाले इस डर में दिखाई दे रहे हैं कि भाजपा आने पर कहीं उनके दुर्दिन शुरू ना हो जाए. इसलिए नतीजों की कल्पना ऐसी है, जो मन को सुकून दे सके. बाकी तो 3 तारीख करीब ही है…..

गिरगिट…

चुनावी नतीजों पर बात हो रही है, तो इस ओर भी नजर नुमाया किया जाना चाहिए. भाजपा के एक सांसद की अक्सर यह शिकायत रही है कि अफसर उनका फोन नहीं उठाते. भूले भटके उठा भी लिया, तो बताया गया काम हो जाए, इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती. फिर भी सांसद हैं, अफसरों को फोन लगाते रहे. दिमाग में यह ख्याल बना रहता कि काम लेकर उन तक पहुंचे व्यक्ति को कम से कम यह मालूम चल जाये कि उनका सांसद निकम्मा नहीं है, हालात ने ऐसा बना दिया है. खैर, अब सांसद जी की पूछपरख बढ़ गई है. और दिनों की तुलना में अफसर अब ज्यादा सम्मान देने लगे हैं. पहले बे मन से एकाध बार सर कहकर संबोधन मिलता था, अब सर..सर…ना जाने कितनी दफे सुनाई दे जाते हैं. और तो और फोन पर बताया गया काम भी हो जाता है. इस पर सांसद ने चुटकी लेते हुए कहा कि, अफसर मौसम वैज्ञानिक होते हैं. अनुमान लगाकर चलते हैं. सरकार बदलने का अनुमान लगाया होगा, इसलिए जो फोन तक नहीं उठाते थे, अब सर..सर..कहते घूम रहे हैं. सांसद कहते हैं कि ”गिरगिट भी इतनी तेजी से रंग नहीं बदलता होगी, जितनी तेजी से अफसर रंग बदल जाते हैं.” जाते-जाते सांसद यह भी कह गए. इस वक्त हमें ही नहीं मालूम सरकार बन रही है या नहीं? मगर जो हो रहा है यह देखकर अच्छा लगता है…

कौन बनेगा मुख्यमंत्री?

नतीजे आए नहीं, लेकिन तमाम तरह की चर्चाओं में एक बड़ी चर्चा मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर खूब हो रही है. कांग्रेस सरकार आई तो कौन मुख्यमंत्री होगा? और अगर भाजपा की सरकार बनी तो कौन होगा? पहले बात कांग्रेस की. सियासत को समझने वाले यह मानते हैं कि सूबे में कांग्रेस के रिपीट होने की स्थिति में भूपेश बघेल ही मुख्यमंत्री होंगे. कांग्रेस के भीतर तमाम तरह के अंतर्द्वंद के बावजूद यह पूरा चुनाव भूपेश बघेल की लीडरशिप में ही लड़ा गया. भाजपा में जहां मोदी-शाह मैदान में थे, वहां कांग्रेस का सबसे बड़ा चेहरा दिल्ली के नेता नहीं, भूपेश ही थे. भाजपा के सभी स्टार प्रचारकों की कुल चुनावी सभाओं के मुकाबले अकेले भूपेश बघेल की सभाएं हुईं. जाहिर है जीत मिली, तो सेहरा भी उनके सिर बंधेगा, जब तक की कोई आपात स्थिति ना आए, किसी तरह के बदलाव की कोई गुंजाइश नहीं. इधर भाजपा में मुख्यमंत्री पद के दावेदारों की बड़ी लिस्ट बन गई है. सरकार बनने की स्थिति और संभावित जीत मिलने की स्थिति में सबसे बड़ा चेहरा स्वाभाविक रूप से डॉक्टर रमन सिंह का होगा. तीन बार के मुख्यमंत्री रहे डॉक्टर रमन सिंह चुनाव करीब आते-आते बड़ी भूमिका में आ गए. टिकट पर उनकी खूब चली. प्रचार में भी डिमांड रही. दिल्ली हाईकमान में उनकी पकड़ दूसरों के मुकाबले कहीं ज्यादा है. प्रदेश अध्यक्ष रहते अरुण साव की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है. माना जाता है कि राज्य का चुनाव संगठन प्रदेश अध्यक्ष की अगुवाई में लड़ा जाता है. जोगी सरकार में रमन प्रदेश अध्यक्ष ही थे, जीत मिली, तो संगठन ने सूबे की सियासत का सबसे बड़ा चेहरा बना दिया था. जाहिर है साव एक बड़े दावेदार होंगे. अरुण साव ओबीसी समाज से आते हैं और देश में चल रही ओबीसी सेंट्रिक पॉलिटिक्स का फार्मूला चला तो साव रेस में आगे आ सकते हैं. तीसरे नंबर की रेस के लिए दो चेहरे हैं. रामविचार नेताम और विष्णुदेव साय. आदिवासी एक्सप्रेस चली, तो ये दो बड़े चेहरे मैदान में दावा ठोंक सकते हैं. इस लिस्ट में एक और मजबूत नाम है. ओ पी चौधरी का. रायगढ़ के रोड शो में अमित शाह ने कह दिया है कि ओ पी को जीता कर विधायक बनाओ, मैं बड़ा आदमी बनाऊंगा. पर्दे के पीछे रहकर ओ पी चौधरी ने इस चुनाव में कई बड़े काम भी किए हैं. दिल्ली हाईकमान से नजदीकी बढ़ी है. वैसे चर्चाओं में रेणुका सिंह, केदार कश्यप के नाम भी यदा कदा सुने जाते रहे हैं. चर्चाओं का पूरा दारोमदार इन नेताओं की जीत सुनिश्चित करेगी. जीत मिली, तो अंतिम नाम चुने जाने तक ये नाम मुख्यमंत्री के दावेदार के रूप में लिए ही जा सकते हैं.

संकट में पीसीसीएफ?

सीनियरिटी को दरकिनार कर हेड ऑफ फारेस्ट बनाए गए 1990 बैच के आईएफएस श्रीनिवास राव के मामले में कैट में सुनवाई होनी है. सीनियरिटी में आगे सुधीर अग्रवाल की याचिका पर कैट ने राज्य शासन के साथ-साथ राव को नोटिस जारी किया था. कहा जा रहा है कि इस मामले में कैट में जल्द सुनवाई होगी. सुधीर अग्रवाल ने राव को हेड आफ फारेस्ट बनाए जाने के शासन के फैसले को चुनौती दी थी. नियम कानून खंगालने के बाद राज्य शासन ने नियुक्ति को सही ठहराया था. तब अग्रवाल ने कैट का रुख किया. कैट में याचिका लगाने वालों में सिर्फ सुधीर अग्रवाल ही नहीं थे, बताते हैं कि श्रीनिवास राव को अपेक्स पे स्केल 17 देने से नाराज अनिल राय, अनिल साहू और संजय ओझा ने भी इस मामले को कैट में चुनौती दी है. अब इतने आईएफएस अफसर एक साथ चुनौती देते खड़े नजर आए, तो फैसला समझा जा सकता है. अरण्य भवन में अब यह सवाल गूंज रहा है कि कहीं पीसीसीएफ संकट में तो नहीं आ गए?