Column By- Ashish Tiwari , Resident Editor

‘स्वेच्छानुदान’

तभी से ये चर्चा खूब जोर शोर से उठती रही थी कि विभाग की जिम्मेदारी मिलने के बाद आखिर बढ़ते वजन की वजह क्या है? अब जाकर मालूम चला कि मंत्री जी के वजन की असल वजह उनका ‘स्वेच्छानुदान’ मद है. सुना है कि स्वेच्छानुदान मद से भी अपनी कमाई का अनूठा रास्ता उन्होंने ढूंढ लिया है. ऐसे लोगों को ढूंढ ढूंढकर लाया जा रहा है, जो स्वेच्छानुदान मद का चेक मिलने के पहले आधी रकम मंत्री को वापस लौटा दे. मसलन किसी को स्वेच्छानुदान मद से 40 हजार का चेक देना है, तो उनसे चेक देने के पहले ही 20 हजार रुपए मांगे जा रहे हैं. ये सब देखकर मंत्री बंगले के वे लोग हैरान हैं, जो यह मानते हैं कि स्वेच्छानुदान की राशि से जरूरतमंदों के साथ-साथ तन-मन से समर्पित कार्यकर्ताओं का भला हो जाए. बहरहाल सूबे की बड़ी आबादी के कल्याण का जिम्मा संभालते-संभालते मंत्री जी की खुद की चिंता भी ज़रूरी थी. ऐसा नहीं है कि लोगों के कल्याण में उनका हिस्सा तय नहीं था, लेकिन चाहत ज्यादा की थी. जब बतौर मंत्री जिम्मेदारी मिली थी, तब कई प्रयोग विभाग में किए. पहले जिला स्तर पर कई चीजों की खरीदी की जाती थी, इस व्यवस्था को बंद कर खरीदी की केंद्रीयकृत व्यवस्था बना दी. राज्य स्तर पर खरीदी शुरू हुई, तो उनके हिस्से ज्यादा कमीशन आया. सुना है कि बीते सालों में करीब 180 करोड़ रुपए की सामग्री की खरीदी केंद्रीयकृत व्यवस्था से की गई. इस पर 40 फीसदी तक कमीशन लिया गया. अब ऐसे में वजन ना बढ़े तो क्या बढ़े. इधर मंत्री के शुभचिंतक कहते हैं कि जब सब सुचारू ढंग से चल ही रहा था, तो स्वेच्छानुदान पर नजर डालना अच्छी बात नहीं है.
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हुनरमंद कलेक्टर
पनिशमेंट पोस्टिंग के नाम पर सरकारी महकमे में बस्तर को यूं ही बदनाम किया गया. जो गया चेहरे पर लालिमा लेकर लौटा. वहां की आबोहवा ही कुछ ऐसी रही है. पहले भी बस्तर के जिलों ने कई नौकरशाहों को देखा था, मगर इस दफे बस्तर के एक जिले में जो युवा तुर्क कलेक्टर पहुंचे हैं, यकीनन उनकी मिसालें दी जाती रहेंगी. तबादले के पहले एक प्राधिकरण में बतौर सीईओ तैनात थे, वहां सूखा था. अपने आपको जैसे-तैसे संभाल रखा था, नई जगह पहुंचे, तो चौतरफा हरियाली बिखरी नजर आई, खुद को ढील दे दी. संभाले ना संभले. 13 तारीख थी तबादले की और 18 होते-होते सब कुछ समझ आ गया. जिले में खनन का बड़ा कारोबार है, तो डीएमएफ का बड़ा बजट हाथ आया. कहां, कैसे और कितना खर्च करना है, इस पर एकाधिकार मिला. आने वाले दिन अच्छे कटेंगे, यह तो तय था, लेकिन ये साहब थोड़े ज्यादा हुनरमंद साबित हुए. नई-नई कलेक्टरी में सिस्टम को समझने में थोड़ा वक्त लगता है, पर इन्होंने आते ही मैराथन पारी शुरू कर दी. बताते हैं कि कलेक्टर साहब ने मालूम किया कि पिछले महीनों में डीएमएफ से कितनी राशि का चेक काटा गया. तहकीकात हुई तो बड़ी रकम की जानकारी मिली. फिर डीएमएफ के जिला प्रभारी को फरमान सुनाया गया कि पुराने चेक जिनका भुगतान नहीं हुआ है, उन्हें होल्ड किया जाए. इस बाबत बैंकों को चिट्ठी जारी की गई. पोस्टिंग के बाद फाइनेंसियल ट्रांजेक्शन के लिए नए कलेक्टरों के सिग्नेचर का सैंपल बैंकों में जाता है. यह बात समझ आती है, लेकिन इसके साथ-साथ ये आदेश जाना कि पिछले कलेक्टर के जारी किए गए चेकों को होल्ड किया जाए, ये समझ के परे है. अब इसे लेकर लोग तरह-तरह की बातें कर रहे हैं.
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हटेंगी आईएएस की पत्नियां !

‘पाॅवर सेंटर’ के पिछले काॅलम में इस बात का खुलासा किया गया था कि भूपेश सरकार की महत्वाकांक्षी परियोजना में तीन आईएएस अधिकारी ने अपनी पत्नियों की नियुक्ति करा दी. सुनने में आया है कि सरकार को इस बात की जानकारी तक नहीं थी, जैसे ही यह बात मुख्यमंत्री तक पहुंची, उन्होंने गहरी नाराजगी जाहिर की. पिछली सरकार में दर्जनों पदों पर तब के प्रभावी अधिकारियों ने अपनी पत्नियों की नियुक्ति करवा दी थी. तब विपक्ष ने इस मसले को जोर शोर से उठाया था. इस सरकार में पहले जैसे आरोप लगे इससे बचने के लिए सख्त निर्देश दिए गए हैं. मुख्यमंत्री की इस नाराजगी पर अमल कब तक होगा, मालूम नहीं. बहरहाल इधर आम आदमी पार्टी ने भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिखकर पूरे मामले की जांच की मांग की है. चिट्ठी पीएमओ पहुंचा दिया गया है.
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मसला हाई प्रोफाइल था….
रायपुर डेवलपमेंट अथॉरिटी जब से बना तब से लेकर आज तक ऐसा फैसला नहीं लिया गया. संचालक मंडल की पिछली बैठक में निजी जमीन और आरडीए की जमीन की आपस में अदला-बदली किए जाने के प्रस्ताव पर मुहर लगाई गई. बताते हैं कि संचालक मंडल की बैठक में जब यह प्रस्ताव लाया गया, तब कई सदस्यों ने इस पर मुखरता से विरोध दर्ज कराया. बैठक में मौजूद अधिकारी भी ऐसे फैसले लिए जाने के समर्थन में दिखे हो, ऐसा नजर नहीं आया, लेकिन इस बीच अध्यक्ष की एक टिप्पणी के बाद सबने चुप्पी साध ली और प्रस्ताव पर मुहर लगा दिया. मसला थोड़ा हाईप्रोफाइल था. सो दबी जुबां से सबने प्रस्ताव पर हामी भर दी और निजी जमीन की आरडीए की जमीन से अदला-बदली का रास्ता बन गया.
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IFS अधिकारियों का दर्द

2017 और 2018 बैच के चार IFS अधिकारियों ने अपने हक की आवाज बुलंद की है. आमतौर पर ऐसा होता नहीं, लेकिन दूसरा कोई चारा था भी नहीं. ‘पाॅवर सेंटर’ के पिछले काॅलम में हमने यह बताया था कि राज्य के तीन बड़े डिवीजन और एक टाइगर रिजर्व में कैडर पोस्ट पर नाॅन कैडर की नियुक्ति का मामला गरमा गया है. अब IFS अधिकारियों ने हेड आफ फारेस्ट और IFS एसोसिएशन को चिट्ठी लिखकर यथास्थिति से अवगत कराया है. चिट्ठी में यह पीड़ा भी जाहिर की गई है कि पड़ोसी राज्यों में उनके साथ ट्रेनिंग लेने वाले अधिकारी कैडर पोस्ट पर काम कर रहे हैं, लेकिन यहां उनका हक छीनकर नान कैडर को जिम्मा सौंप दिया गया है. यह मामला जिस तेजी से तूल पकड़ता दिख रहा है, मुमकिन है कि सरकार के स्तर पर जल्द कोई बड़ा फैसला ले लिया जाए.
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पीएम अवार्ड 

ब्यूरोक्रेसी का इसे सबसे प्रेस्टीजियस अवॉर्ड माना जाता है. डीओपीटी ने साल 2021 के लिए छह कैटेगरी में अवार्ड के लिए आवेदन बुलाए हैं. जन भागीदारी, पोषण अभियान, खेलो इंडिया, एक जिला, एक उत्पाद जैसी विभिन्न कैटेगरी में किए गए बेस्ट प्रैक्टिस करने वाले कलेक्टरों की प्रविष्टियां भेजी जाएगी. 1 अप्रैल 2019 से 31 दिसंबर 2021 तक के कामों पर केंद्र विचार करेगी. छत्तीसगढ़ में कई आईएएस अधिकारी हैं, जिन्हें पीएम अवार्ड मिल चुका है.