Column By- Ashish Tiwari, Resident Editor Contact no : 9425525128

72 करोड़ की गिनती 

शराब घोटाला मामले में पूर्व मंत्री कवासी लखमा की गिरफ्तारी हो गई. ईडी ने गिरफ्तार कर उन्हें कोर्ट में पेश किया और अब वह रिमांड पर हैं. कवासी दावा कर रहे हैं कि वे निरक्षर हैं. लोग सोच रहे हैं कि आखिर वह निरक्षरता कैसी होती है, जो 72 करोड़ रुपए की गिनती आसानी से समझ लेती है. कवासी गणित का शून्य भले ही न समझते हो, मगर अब लगता है कि 72 करोड़ में कितने शून्य रहे होंगे, इसकी गहरी समझ उन्हें रही होगी. शायद यह राजनीति की वह अनूठी शिक्षा है, जिसमें स्कूल-कॉलेज की डिग्री भले न हो, लेकिन घोटाले का पूरा सिलेबस याद रखा जाता है. खैर, इसमें कोई दो राय नहीं कि कवासी लखमा निरक्षर है. सिवाय अपने दस्तखत के कुछ लिख पढ़ नहीं सकते, लेकिन जिस तरह से शराब घोटाले में वह अभियुक्त बने हैं, उससे साफ है कि वह घोटाले के फार्मूलों को समझने के माहिर खिलाड़ी थे. कवासी पर लगे आरोपों पर फैसला कोर्ट देगी. मगर छत्तीसगढ़ में जब-जब घोटालों पर बात होगी, कवासी का नाम याद किया जाता रहेगा. आखिर उन्होंने एक ‘बेंचमार्क’ स्थापित किया है.

पॉवर सेंटर :  हाजिरी… नेटफ्लिक्स… ताला… एक्सीडेंट… लिटमस टेस्ट… लगे रहो मुन्नाभाई… – आशीष तिवारी

जांच की आंच

छत्तीसगढ़ में शराब घोटाले का मामला अब इतना गरम हो चुका है कि इसकी आंच पूर्व मुख्यमंत्री तक पहुंच गई है. यह मामला ऐसा है, जैसे शराब की भट्टी में भ्रष्टाचार के पकौड़े तले जा रहे हों, और अब सवाल यह है कि पकौड़े किसकी-किसकी थाली में रखे गए. ईडी फाइलों में इतनी गहराई से घुस रही है कि लगता है, जैसे इस घोटाले की ‘मधुशाला’ से हर ‘घूंट’ का हिसाब निकाल कर ही निकलेगी. मगर विपक्ष के नेता अब भी ‘हाई स्पिरिट’ में हैं. वह कह रहे है, ‘यह तो राजनीतिक बदले की साजिश है’. दरअसल शराब घोटाले का यह खेल कुछ ऐसा है कि इसमें हर किसी के हाथ कुछ न कुछ पकड़ा ही जाएगा. अब किसके हाथ क्या मिलता है. ईडी जाने, मगर ईडी की जांच पूर्ववर्ती सरकार के दिनों में ही इस मुकाम पर आती, तो शायद तब की विपक्ष के हिस्से एक नारा आ जाता. ”गली-गली में ठेका है, हर खाते में पैसा है”…बहरहाल राजनीति और शराब में कुछ खास फर्क नहीं है. दोनों में चढ़ने की गजब की क्षमता है. फर्क सिर्फ इतना है कि शराब का नशा जल्दी उतर जाता है और राजनीति में किए गए घोटाले का नशा देरी से उतरता है. नशा कैसा भी हो. एक वक्त के बाद उतरता जरूर है.  

पॉवर सेंटर : बादाम… झटका… ग्रहण… फेरबदल… असमंजस… – आशीष तिवारी 

जी का जंजाल

किस्मत का पहिया कितना घुमावदार होता है. एक वक्त था जब प्रशासनिक मुखिया के नाते पूरे सिस्टम को चलाया करते थे. फैसले सुनाया करते थे, मगर अब शराब घोटाले में आया उनका नाम ‘जी का जंजाल’ बन गया है. ईडी ने पूर्व मुख्य सचिव को शराब घोटाले का किंगपिंग बताया है. पूर्व मुख्य सचिव के सिर पर गिरफ्तारी की तलवार लटक रही है. तलवार लटकने की स्थिति शायद उनके लिए नई होगी, मगर ‘लटकाना’ शब्द से वह पूर्व परिचित होंगे. अपने सर्विस पीरियड में कईयों को उन्होंने भांति-भांति तरीके से लटकाया होगा. कहा जा रहा है कि घोटाले की स्क्रिप्ट पर्दे के पीछे रहकर उन्होंने ही लिखी थी. स्क्रिप्ट लिखी. घोटाला हुआ. कमीशनखोरी की रकम जुटाई गई. रकम के बढ़ते आंकड़ों से भ्रष्टाचार की मीनार खड़ी हुई. ईडी अब उस मीनार की एक-एक ईंट खोद रही है. हर ईंट का बहीखाता बन रहा है. ईडी ने अपनी चार्जशीट में यह बताया है कि जिस तरह से मकान बनाने के लिए इस्तेमाल होने वाली ईंटों में बाकायदा उसे बनाने वाली कंपनी का नाम उस पर खुदा मिलता है, ठीक वैसे ही भ्रष्टाचार की मीनार से निकल रही हर ईंट पर पूर्व मुख्य सचिव का नाम खुदा मिल रहा है. शायद इस आधार पर ही ईडी ने उन्हें ‘किंगपिंग’ की उपाधि से नवाजा है. शराब घोटाला करते वक्त सिंडिकेट को यह ध्यान रखना चाहिए था कि जब इस घोटाले का नशा उतरेगा तो ईडी नाम का हैंगओवर भारी पड़ सकता है. कुछ दिन पहले हुए एक एक्सीडेंट में पूर्व मुख्य सचिव गंभीर रूप से चोटिल हो गए थे. शरीर में छोटी-मोटी टूट-फूट हुई थी. सुनते हैं कि अब वह दुरुस्त हैं. उनकी खैरियत बनी रहे. ईडी की जांच अभी लंबी चल सकती है. 

पॉवर सेंटर : बादाम… झटका… ग्रहण… फेरबदल… असमंजस… – आशीष तिवारी 

सम्मानजनक बोझ

किरण देव मंत्री पद की दौड़ में थे, लेकिन उन्हें प्रदेश अध्यक्ष चुन लिया गया. ये कुछ वैसा ही है, जैसे कोई 100 मीटर की दौड़ जीतने के लिए दौड़े और फिनिश लाइन पर पहुंचने से पहले ही आयोजक कह दे, भाईसाहब अब आप रेफरी बन जाओ..रुलिंग पार्टी का अध्यक्ष पद एक ‘सम्मानजनक बोझ’ की तरह है. खासतौर पर तब जब  आप मंत्री पद की दहलीज छूते-छूते रह गए हो. मंत्री बनते तो एक रौब होता. सरकारी फाइलों पर दस्तखत करते, गाड़ियों का काफिला चलता. अफसर आगे-पीछे घूमते और इन शब्दों के इतर बस्तर का प्रतिनिधित्व सरकार में बढ़ जाता. एक समझदार चेहरा मंत्रिमंडल का हिस्सा होता. मगर अब वह उस बैठक का हिस्सा होंगे, जिसमें यह तय होगा कि ‘मंत्री’ किसे बनाना है. मंत्री पद की दौड़ में रहे किरण देव के समर्थक अब सोच रहे हैं कि कहीं यह पार्टी की अंदरुनी राजनीति का खेल तो नहीं? खैर, किरण देव जी को यह समझना होगा कि राजनीति में दौड़ने से ज्यादा जरूरी है कि सही दिशा में दौड़ना. चलिए अब सही दिशा ढूंढिए…

पॉवर सेंटर- कट गई लाइन… इंस्पेक्टर… मुख्य सूचना आयुक्त!… जलवा… तस्वीर कैसी?…-आशीष तिवारी

बहाली जल्द !

बलौदाबाजार हिंसा में कलेक्टर-एसपी कार्यालय फूंक दिया गया. देशभर में इस घटना की चर्चा हुई. सरकार ने कलेक्टर-एसएसपी को दोषी माना. निलंबित कर दिया. अब चर्चा है कि उन्हें बहाल किए जाने की फाइल चल रही है. सरकार ने इस घटना की विभागीय जांच कराई थी. जांच रिपोर्ट में कलेक्टर के खिलाफ तथ्य सामने आए थे. फिर भी बहाली का रास्ता तैयार किया जा रहा है. कहते हैं कि जांच प्रतिवेदन में यह कहा गया है कि दशहरा मैदान में धरना-प्रदर्शन की अनुमति नहीं देने की एसएसपी की सिफारिश के बावजूद अनुमति दी गई थी. धरना-प्रदर्शन कहीं और होता, तो शायद आगजनी की घटना न घटती. एक उन्मादी भीड़ ने करोड़ों रुपए की सरकारी संपत्ति को आग में न झोंका होता. जिले में लाॅ एंड आर्डर बनाए रखने की जिम्मेदारी कलेक्टर की होती है. मगर उन्मादी भीड़ देख कलेक्टर ही भाग बैठे. गाड़ियां टूटती रही, आग के गोले सरकारी दफ्तर में बरसते रहे और इसके बाद जिले के मुखिया की चूक की भरपाई सरकार के हिस्से आ गई. अब निलंबन के कुछ महीनों बाद उन्हें बहाली मिल रही है. सुनते हैं कि मानवीय पक्ष सरकार के सामने है. तत्कालीन कलेक्टर रिटायरमेंट की दहलीज पर हैं. निलंबन बना रहा, तो दिक्कत हो सकती है. एक अफसर ने इस मामले में टिप्पणी करते हुए कहा कि यही हाल रहा, तो मुमकिन है कि सरकारी दफ्तरों की दीवारों पर एक स्लोगन चस्पा दिखेगा, जिसमें लिखा होगा, ‘ आपकी गलती से आग लग गई हो, तब घबराएं नहीं, नौकरी बची रहेगी’. बहरहाल प्रशासनिक व्यवस्था ‘सबका साथ-सबका पुनर्वास’ की भावना पर ही चलती है. 

पॉवर सेंटर : सतर्क रहें !..प्रमोशन…ग्रहण…जांच…कमाल के सीएमएचओ!…कौन बनेगा मंत्री?…-आशीष तिवारी

राष्ट्रीय महोत्सव

पूर्व मंत्री और सांसद बृजमोहन अग्रवाल सूबे की राजनीति के महाबली हैं. सियासी दांव-पेंच के माहिर खिलाड़ी हैं. उनके छोटे बेटे की शादी का समारोह एक पारिवारिक उत्सव से ज्यादा ‘राष्ट्रीय महोत्सव’ बन गया है. सुनते हैं कि करीब 75 हजार कार्ड बांटे गए हैं. एक कार्ड के पीछे दो का औसत भी मान लिया जाए तो करीब डेढ़ लाख मेहमान शादी समारोह का हिस्सा बनेंगे. यही कोई राजनीतिक आयोजन होता, तो इतनी भीड़ जुटाना उस आयोजन की सफलता मानी जाती, यहां बृजमोहन अग्रवाल अपने घर की शादी में अपने बूते इतनी भीड़ जुटाने जा रहे हैं. शादी के इतर इसे एक किस्म का राजनीतिक महाकुंभ कहा जा सकता है, जिसमें जुटने वाली लाखों की भीड़ में अगर कहीं कोई गुम हो जाए, तो माइक पर कुछ इस तरह का अनाउंसमेंट सुनने को मिल सकता है. ”फलाने की बीवी मंच के नजदीक आइसक्रीम खाती खड़ी है, पति जहां कहीं भी हो आकर ले जाएं. फलाने का बच्चा शुगर कैंडी खाते फलानी जगह पर है. मां-बाप आकर ले जाएं”. लोग इस पर चुटकी लेने लगे हैं कि हो सकता है इतनी भीड़ में कहीं किसी की गुमशुदगी के मामले दर्ज न हो जाए. बहरहाल बृजमोहन अब सांसद हैं, इस लिहाज से उन्होंने देश के सभी सांसदों को व्यक्तिगत रूप से निमंत्रण दिया है. करीब सौ सांसदों के आने की सूचना है. आधा दर्जन केंद्रीय मंत्री, दो-तीन राज्यों के मुख्यमंत्री, कई पूर्व केंद्रीय मंत्री, भाजपा संगठन के आला नेता सरीखे कई महत्वपूर्ण हस्तियां शादी समारोह का हिस्सा बनती दिखेंगी. कहा जा रहा है कि शहर के अधिकांश होटल बुक हैं. ट्रेवल्स एजेंसियों के पास गाड़ियों की कमी हो गई है. इतने मेहमानों की मेहमान नवाजी के लिए महीने भर से तैयारी चल रही है. शायद शादी के भोजन के मैन्यू में कश्मीर से कन्याकुमारी तक के डिशेज रखे जा सकते हैं, ताकि हर मेहमान को लगे कि उनकी संस्कृति का ध्यान रखा गया है. हर व्यंजन में राजनीति का स्वाद भी खूब होगा. सांसद बनने के बाद बृजमोहन अग्रवाल ने अपने घर की शादी में पूरे देश को मेहमान बना लिया है. 

पॉवर सेंटर : रोमियो-जूलियट…कंगन…बंद कमरे की बात…पीएससी जांच !…नेटवर्क एरिया…-आशीष तिवारी

लांग डिस्टेंस इश्क

इश्क पर किसी का जोर नहीं चलता. फासले भी आड़े नहीं आती. एक ऐसी ही ‘लांग डिस्टेंस इश्क’ की महक से एक आईएफएस और एक एडिशनल एसपी की जिंदगी इन दिनों गुलजार है. इश्क है, तो कुदरती तौर पर तकलीफें भी है. दोनों के बीच की दूरी मामूली नहीं है. यह वह दूरी है, जो सरकारी फाइलों की तरह खींची चली जाती है. मिलना किसी ऑफिशियल विजिट जैसा हो जाता है. इश्क की जो आग आईएफएस के घनघोर जंगल से सुलग कर एडिशनल एसपी के बैरक तक पहुंची हो, उसे बनाए रखना आसान नहीं है. कभी-कभी सरकारी वाहन का डीजल खर्च करना पड़ जाता है. आईएफएस का दिल तो हरियाली जैसा है, विभाग के कुछ लोग इसे सरकारी पौधारोपण समझकर मजाक उड़ाने लगे हैं. एडिशनल एसपी के बूटों की खनक पायल की तरह है, जो रह रहकर प्रेम संगीत की तरह बज उठती है. एक इश्क पसंद तबका है, जो इस विमर्श में डूबा है कि इश्क की यह फाइल अप्रूव्ड होगी या किसी विवादित सरकारी टेंडर की तरह रद्द हो जाएगी.