Column By- Ashish Tiwari, Resident Editor Contact no : 9425525128
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रोमियो-जूलियट: अपने इश्क को लेकर खामखां एक कलेक्टर साहब चर्चा में आ गए. इधर सूबे के कई ब्यूरोक्रेट प्रेम गीत लिखते और गाते रहे हैं. कई अब भी गा रहे हैं. कईयों के प्रेम गीत सदाबहार नगमों की तरह हैं. बरसो से उतनी ही संजीदगी से ये प्रेम गीत गाये जा रहे हैं, जितनी की पहली मर्तबा प्रेयसी की आंखों में उतर जाने के बाद गाये गए थे. प्रेम की गहराई इतनी ही होनी चाहिए. बस किस्सों की लहरों में ये तराने तैरने नहीं चाहिए. सरकार की नीतियों को गुथते-गुथते बरखुरदार अफसरों ने प्रेम माला भी खूब गूथी है. जब कलेक्टर का इश्क बाहर आया, तब इसके साथ ही ब्यूरोक्रेसी के कई रोमियो-जूलियट की कहानियां बाहर आ गई. किसी ने अपनी प्रेयसी को तोहफे में बंगला दे दिया, तो किसी ने प्रेयसी के बेटे का कारोबार जमा दिया. दुरस्त जिले में बैठा कोई कलेक्टर राजधानी में बैठी अपनी प्रेयसी के एक फोन पर 12 लाख रुपए भेज देता है, तो कोई कलेक्टर है, जो प्रेम माला फेरने मीलों का गुपचुप सफर कर लेता है. कोई ऐसा भी है, जो छोटे-मोटे टेंडर वेंडर के ऐवज में थोड़ा बहुत प्रेम मांग लिया करता है. प्रेम में डूबे व्यक्ति का खुद पर जोर नहीं होता. इन प्रेम संबंधों पर एक सीनियर आईएएस कहते हैं, ”यूपीएससी की तैयारी के दिनों में युवा दिल किताबों के प्रेम में डूबा होता है. इश्क लड़ाने के दिनों में किताबों में उलझा युवा दिल जिंदगी के किसी मोड़ पर प्रेम में ठहराव चाहता है. उसके दिल में इतना प्रेम भरा है कि वह हर जगह उड़ेल देना चाहता है. बस यही प्रेम वह इन दिनों उड़ेल रहा है”. सीनियर आईएएस ने अपने मातहत अफसरों को एक सीख इस शायरी के साथ दी है. वह फरमाते हैं.”अज़ीज़ इतना ही रक्खो कि जी संभल जाए, अब इस क़दर भी न चाहो कि दम निकल जाए”…

कंगन

राज्य प्रशासनिक सेवा के कुछ अफसरों के इश्क के अल्फाज रद्दी नहीं है, जिन्हें कबाड़ में फेंक दिया जाए. कई-कई खूबियों से सजे संवरे एक ऐसे ही अफसर हैं, जिन्होंने प्रेम रस का रसपान करने वाले अच्छे-अच्छे कलेक्टरों को पीछे छोड़ दिया है. अपनी एक पदस्थापना के दौरान इस अफसर ने नोटों की ”छपाई” सीख ली थी. खूब धन दौलत जुटाई. फार्म हाउस खरीदा. वह जहां रहे, अपने इश्क को अपने साथ रखा. एक पल के लिए भी उसे छोड़ना उन्हें गंवारा नहीं था. मोहब्बत इतनी थी कि अपने सरीखे अफसर बनाने उन्होंने उसे पीएससी की तैयारी करवाई. सरकारी नौकरी लग सके, यह सोचकर मोटी रकम खर्च करने की तैयारी कर ली कि अचानक पीएससी घोटाला फूटकर बाहर आ गया. बहरहाल, मालूम चला है कि हाल ही में इस अफसर ने राजधानी की एक बड़ी ज्वेलरी शाप से लाखों रुपए के कंगन खरीदे हैं. ये कंगन पत्नी के लिए होते तो कोई बात नहीं थी. अपनी मोहब्बत के लिए उन्होंने इसकी खरीदी की है. जब कंगन की खरीदी हुई, तब अफसर के एक पुराने कर्मचारी के मोबाइल पर मैसेज आया. तब वह चौंक उठा. इतना महंगा कंगन वह खरीद सके, इतनी उसकी हैसियत नहीं थी. मालूमात हासिल किया गया. उसे जानकारी मिली कि ज्वेलरी शाप में उसका मोबाइल नंबर दिया गया था. उसके नाम पर पहले भी ऐसी खरीदी की जाती रही थी.

बंद कमरे की बात

एक नेताजी अचानक से मंत्री बन गए, तो लगा कि मौसम अब बरसने वाला है. पैसों की खूब बारिश होगी. मगर मौसम ने करवट बदल ली. हल्की फुल्की बारिश से मंत्री जी का मन भला कहां मानने वाला था. अखबारों में कृत्रिम बारिश की खबर पढ़ रखी थी. कृत्रिम बारिश वैज्ञानिक तरीके से कराई जाती है. प्राकृतिक तौर तरीके जब काम नहीं आते, तबकी स्थिति के लिए वैज्ञानिकों ने यह नई खोज विकसित की थी. मंत्री जी को फार्मूला जम गया. मंत्री की टैरिटरी बहुत व्यापक है, सो दूसरों की टैरिटरी में भी अपना प्रभुत्व जमाने के लिए बैठक कार्यक्रम रख रहे हैं. पिछले दिनों एक संभाग के दौरे पर थे. योजनाओं के क्रियान्वयन की समीक्षा के बहाने अफसरों को इकट्ठा किया. बैठक खत्म हुई, तब वन टू वन चर्चा के लिए अड़ गए. एक बंद कमरे में एक-दो कलेक्टरों से अलग-अलग बात हुई. बंद कमरे की गुफ्तगू बाहर आ गई. पता चला कि मंत्री जी की नजर डिस्ट्रिक्ट मिनरल फंड (डीएमएफ) पर है. भीतर की चर्चा का लब्बोलुआब यह है कि मंत्री जी डीएमएफ के रास्ते अपने लिए कुछ संभावना तलाश रहे हैं. पिछली सरकार में हुए डीएमएफ घोटाले का हश्र कलेक्टरों ने देख रखा है. कई कलेक्टर डर से डीएमएफ छू नहीं रहे. वहां मंत्री जी की साहस भरी बातों ने कलेक्टरों को बैचेन कर दिया है.

पीएससी जांच !

पीएससी घोटाले में पीएससी के पूर्व चेयरमेन टामन सिंह सोनवानी और कथित तौर पर रिश्वत की रकम देकर बेटी-दामाद की नौकरी लगाने वाले एस के गोयल सलाखों के पीछे हैं. इधर सीबीआई दबे कदम घोटाले के दूसरे किरदारों की ओर बढ़ रही है. जल्द ही कई और सलाखों के उस पार जाते नजर आएंगे. इस बीच पीएससी उम्मीदवारों ने एक सवाल खड़ा किया है. पूर्ववर्ती सरकार में पीएससी की ली गई बाकी परीक्षाओं का क्या होगा? सहायक प्राध्यापक परीक्षा हो या फिर एसीएफ और रेंजर भर्ती की परीक्षा. सवालों की जद में ये परीक्षाएं भी हैं. इन परीक्षाओं में चयनित उम्मीदवारों की सूची झांक आइएगा तो मालूम चलेगा कि कई अफसरों और नेताओं के रिश्तेदारों के नाम गहरी काली स्याही में दर्ज है. एक परीक्षा तो ऐसी भी हुई, जिसमें पद निकले. हजारों उम्मीदवार परीक्षा में बैठे. मगर जिन्होंने मोटी रकम खर्च की, उन उम्मीदवारों को होटलों में ले जाकर पर्चा रटवाया गया. इंटरव्यू हुआ और उनका चयन कर लिया गया. मानो पीएससी, पीएससी न हुआ, उम्मीदवारों की आंखों में धूल झोंकने का उपक्रम बन गया. सरकार को चाहिए कि पूर्ववर्ती सरकार के दौर में पीएससी से ली गई सभी परीक्षाओं की जांच कर ली जाए. सीबीआई न सही, कम से कम ईओडब्ल्यू, एसीबी जैसी एजेंसी ही जांच कर ले, तो पीएससी की साख बची रह जाएगी.

नेटवर्क एरिया

सरकार बस्तर के सुदूर इलाकों में मोबाइल कनेक्टिविटी पर जोर दे रही हैं, मगर आलम देखिए कि महानदी भवन और इंद्रावती भवन के बीच ही अफसर हैलो-हैलो चिल्लाते मिल जाएंगे. मंत्रालय, महानदी भवन और एचओडी कार्यालय, इंद्रावती भवन के नाम से जाना जाता है. सरकार का सारा कामकाज इन्हीं दो भवनों से चलता है, मगर यही दो भवन बेहतर मोबाइल कनेक्टिविटी की बांट जोह रहे हैं. यहां आकर महसूस होगा कि शासन ‘नेटवर्क एरिया’ के बाहर है. मोबाइल के दौर में महानदी और इंद्रावती भवन में लैंडलाइन फोन के भरोसे टिके रहना सरकार की मजबूरी लगती है. कई अफसर कहते हैं कि कई बार यह महसूस होता है कि हम डेढ़ दशक पुरानी सरकारी सभ्यता में जी रहे हैं. आला अफसरों के एक फोन पर मोबाइल सेवा प्रदाता कंपनी नया रायपुर में नेटवर्क का जाल बिछा सकती है. मगर लगता है कि अफसर अपनी ताकत कम आंक रहे हैं. यह भी हो सकता है कि अफसरों को लगता होगा मोबाइल नेटवर्क ठीक ना होना अच्छा ही है. फिजूल के फोन कम से कम नहीं आते.