‘ढिंढोरा’
सरकार पर जनता का स्वास्थ्य दुरुस्त करने की जिम्मेदारी है. पिछली सरकार में सरकार का ‘स्वास्थ्य’ खराब करने का ठेका लेकर एक कंपनी ने घुसपैठ की और देखते ही देखते सैकड़ो करोड़ रुपए की सप्लाई कर दी. इस कंपनी के लिए तब सरकार ने नियम कायदे कानून सब रद्दी की टोकरी में डाल दिए गए थे. कहते हैं कि जितने की गैर जरूरी सप्लाई की गई, उतने में सरकार नया सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल बना सकती थी. सूबे की सरकार बदलते ही कंपनी के खैरख्वाह चल बसे. सैकड़ों करोड़ रुपए फंसता देख कंपनी ने अपना नया खैरख्वाह ढूंढना शुरू किया. जब नई-नई ताजपोशी हो तब उम्मीदों का सागर विशाल होता है. एक ‘खैरख्वाह’ गिरफ्त में आ ही गए. इस ‘खैरख्वाह’ की टीम कंपनी की खिदमत में बिछ गई. मालूम पड़ा है कि पिछले दिनों बकाये राशि का एक हिस्सा जारी हुआ है. करीब 30 करोड़ रुपए. चर्चा तरह-तरह की है. एक चर्चा यह भी है कि चुनाव बाद इस ‘खैरख्वाह’ पर संगठन की मेहरबानी हो सकती है. छिप छिपाकर करते तो शायद नजरअंदाज किया जा सकता था. अब पूरा शहर ढिंढोरा पीट रहा है.
‘सिपलसलार’
सरकार बदलते ही मंत्रियों के सिपहसलार बनने कईयों ने लाख जतन किए थे. मगर मुक्कदर जिसका बुलंद था, उन लोगों ने ही जगह बनाई. कुछ ऐसे भी रहे, जिनकी मौजूदगी मंत्रियों के आसपास देख कईयों के माथे पर बल पड़ गया. दरअसल मंत्रियों की आधी शक्ति उनके सिपहसलारों में होती है, कुछ सिपहसलार तो पूरी शक्ति लेकर चलते हैं. फाइलों में दस्तखत करना है या नहीं यह मंत्री नहीं सिपहसलार तय करते हैं. किससे मिलना है और किससे नहीं. यह सब काम अघोषित तौर पर सिपहसलार करते हैं. इधर-उधर की पैरवी लाकर जब सिपहसलारों की नियुक्ति की गई, तब सरकार बजट बनाने में मशरुफ हो गई थी. फिर चुनावी तैयारियां सिर पर थी. छोटी-मोटी शिकायते भी आई, तो सरकार के पास सुनवाई का वक्त नहीं था. अब चर्चा है कि मंत्रियों के सिपहसलारों की कुंडली तैयार की जा रही है. संगठन का एक विरोधी खेमा है, जिसने मंत्रियों के आसपास नियुक्ति पाए चेहरों की पूरी कुंडली तैयार की है. किसकी भूमिका पिछली सरकार में क्या थी? सत्ता का करीबी कौन था? किस कांग्रेसी का कौन रिश्तेदार है? कोयले की कालिख सने हाथों से कौन हाथ मिलाता था? शराब घोटाले की महक किसने ली? जैसी तमाम जानकारियां जुटाई जा चुकी है. जाहिर कुछ सिपलसलारों की उल्टी गिनती शुरू हो गई है. हाल के दिनों में ही संगठन के शीर्ष नेतृत्व के भेजे गए फरमान में यह कहा गया था कि मंत्रियों का सिपहसलार ढाई-ढाई साल में बदल दिया जाए. लगता है कुछ मामलों में ढाई साल का इंतजार भी नहीं करना होगा.
‘अहाता’
एक वक्त था, जब शराब दुकानों में अहाता का काम रुलिंग पार्टी अपने उन कार्यकर्ताओं को देती थी, जिन्हें उपकृत करना होता था. अब सिस्टम बदल गया है. सरकार रेवेन्यू बढ़ाने के तौर तरीकों पर काम कर रही है. राजधानी के एक अहाते की बोली 94 लाख रुपए की लगी. समझा जा सकता है कि इसके मायने क्या हो सकते हैं. बहरहाल नियम कहता है कि एक व्यक्ति को एक से ज्यादा अहाता नहीं दिया जा सकता. मगर नियम तोड़ लेने का हल ढूंढ लेने वाले महारथियों का कोई मुकाबला नहीं. एक ही ईमेल आईडी और मोबाइल नंबर का इस्तेमाल कर अलग-अलग नाम से अहाता हासिल कर लिया गया. इस मामले ने यह भी बता दिया कि जाति धर्म का मुद्दा महज सियासी दहलीज तक ही सीमित है. बात जब सरकारी तंत्र की होती है, तो यहां सब सेक्युलर बन जाते हैं. अहाता पाने वालों की सूची में आधा दर्जन से ज्यादा बार एक ही ईमेल आईडी और मोबाइल नंबर का इस्तेमाल करने वालों में हिन्दू भी हैं और गैर हिन्दू भी. जरा नाम ढूंढिए..दिलचस्प कहानी मिलेगी.
‘कौन बनेगा मंत्री’
छत्तीसगढ़ की 11 सीटों पर चुनावी द्वंद खत्म करने के बाद साय सरकार के मंत्रियों की तैनाती ओडिशा और झारखंड में की गई है. मंत्री खूब पसीना बहा रहे हैं. उधर संगठन ने कुछ विधायकों की भी ड्यूटी लगाई है, जो मंत्रियों से ज्यादा पसीना बहाते दिखते हैं. संगठन हर दिन के काम का ब्यौरा ले रहा है. कहते हैं कि कुछ मंत्री इसलिए ज्यादा पसीना बहा रहे हैं, क्योंकि उन्हें कुर्सी छिन लिए जाने का डर है और कुछ विधायक इसलिए ज्यादा पसीना बहा रहे हैं कि बची हुई एक और खाली होने जा रही मंत्री कोटे की एक सीट में उनका नंबर लग जाए. आलाकमान सब्र का इम्तिहान ले रहा है. नेता इम्तिहान दे रहे हैं. चालू भाषा में इसे लाॅलीपाप दिखाना भी कहते हैं. खैर, संगठन सूत्र कहते हैं कि किसी मंत्री को नहीं हटाये जाने की स्थिति में भी साय सरकार में दो नए मंत्री बनाए जाएंगे. एक बची हुई सीट के लिए दुर्ग विधायक गजेंद्र यादव के नाम की चर्चा पहले से ही जोरों पर है. संघ की मजबूत लाबी इसके लिए काम कर रही है. जबकि चुनाव जीतने की स्थिति में खाली होने वाली बृजमोहन अग्रवाल की सीट के लिए दावेदारों की भारी भीड़ है. अग्रवाल की जगह अग्रवाल का नारा बुलंद करने वाला एक धड़ा है, जो यह मानकर चल रहा है कि अमर अग्रवाल एक चेहरा हो सकते हैं. एक मजबूत धड़ा है, जो राजेश मूणत के नाम की वकालत कर रहा है. वैसे तो साय सरकार का ओबीसी का कोटा पूरा हो चुका है लेकिन अजय चंद्राकर और धरमलाल कौशिक कतार में हैं. कुछ मंत्रियों को हटाए जाने की सूरत में यह मुमकिन भी हो सकता है. ऐसा हुआ तो लता उसेंडी भी मुख्य भूमिका में लाई जा सकती है. कयासों के दौर में एक कयास यह भी है सूबे की सियासत किस ओर करवट लेगी यह दिल्ली की मजबूती पर टिका होगा. दिल्ली कितना मजबूत है यह 4 जून को मालूम चल सकेगा.
‘रोशन’
रोशनी दिखाते दिखाते एक ‘रोशन’ फिलहाल बुझ गया. वरना चर्चा जोरों पर थी कि अंधेरे में इसकी रोशनी से गुलशन (बगीचा) सजाया जाएगा. पिछले दिनों ईडी ने कस्टम मिलिंग घोटाले के आरोपी रोशन चंद्राकर को गिरफ्त में ले लिया. रोशन चंद्राकर को कस्टम मिलिंग घोटाले का मास्टर माइंड भी कहा-सुना जाता है. कुछ फिक्रमंदों के इस फिक्र की खबर छनकर आई थी कि रोशन के तिलिस्म को कोई दूसरा भेद नहीं पाएगा. तरह-तरह की बातें हैं. बहरहाल जिगर मुरादाबादी ने यूं ही नहीं लिखा था-
कोई ये कह दे गुलशन गुलशन
लाख बलाएँ एक नशेमन
क़ातिल रहबर क़ातिल रहज़न
दिल सा दोस्त न दिल सा दुश्मन
फूल खिले हैं गुलशन गुलशन
लेकिन अपना अपना दामन
आज न जाने राज़ ये क्या है
हिज्र की रात और इतनी रौशन
बैठे हम हर बज़्म में लेकिन
झाड़ के उट्ठे अपना दामन