
Government’s Exclusive Monopoly
जिस जेम (GEM) पोर्टल की शुरुआत सरकारी खरीदी को ट्रांसपेरेंट बनाने के इरादे से की गई थी, सूबे की अफसरशाही ने उसका मतलब ही बदल दिया है. GEM का मतलब बदलकर Government’s Exclusive Monopoly कर दिया है. कम से कम इस विभाग में हुए टेंडर के ‘खेल’ को देखकर तो यही लगता है. विभाग ने खरीदी के लिए टेंडर जारी किया था. कुल 15 फर्मों ने टेंडर भरा था. मगर इनमें से 10 फर्म को टेक्निकल बीड में डिसक्वालिफाई कर दिया गया, जबकि इन फर्मों में कई अंतरराष्ट्रीय ब्रांड शामिल थे. चौंकाने वाली बात यह रही कि क्वालीफाई हुई पांच फर्म एक ही आपूर्तिकर्ता कंपनी के उत्पाद से संबंधित थी. इस उत्पाद का आइटम कोड भी एक जैसा था. मगर टेंडर जारी करने वालों ने अपनी आंखें मूंद ली थी. एक चौंकाने वाला पहलू और भी है. वित्तीय नियमों में विभाग के संचालक को 20 लाख रुपए तक की खरीदी का अधिकार है, मगर यहां करोड़ों रुपए की खरीदी कर ली गई और शासन से इसकी स्वीकृति तक नहीं ली गई. फिजिक्स (भौतिकी) पढ़ने वाले ओम का नियम (Ohm’s Law) बखूबी समझते होंगे. इसका वैज्ञानिक फार्मूला है, V = IR (वोल्टेज = करंट × रेजिस्टेंस). सरकारी टेंडर भी ओम के इस नियम पर ही चलते दिखते हैं. टेंडर का वोल्टेज (V), अफसरशाही के करंट (Influence) और टेंडर में डाले गए रेजिस्टेंस (अजीब शर्तों) से तय होता है. रेजिस्टेंस जितना ज़्यादा होगा, उतने ही कम लोग क्वालीफाई करेंगे और ये ‘कम लोग’ कौन होंगे? इसे चुनने का अधिकार एक्सक्लूसिवली टेंडर जारी करने वाले अफसर के हाथों होगा. सरकार सभी तरह की सरकारी खरीदी के लिए जेम पोर्टल पर जोर दे रही है. कम से कम इतनी ईमानदारी तो बरत ली जाए कि खरीदी सवालों के घेरे में खड़ी न हो !
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रेत में धंस गई साख
कुछ दिन पहले की ही बात है. राज्य के एक माननीय मंत्री जी को गहरी पीड़ा हुई. यह पीड़ा मामूली नहीं थी. यह वह पीड़ा थी, जो सत्ता में रहते हुए किसी अफसर को दिए गए आदेश का पालन न होने से उपजती है. आखिर वह मंत्री जी हैं. उनके इशारे भर से ही सरकारी नीतियां करवट बदल लेती हैं. फिर भला उनके आदेश की नाफरमानी की जुर्रत किसने और क्यों कर दी? दरअसल हुआ कुछ यूं कि मंत्री जी के एक परम प्रिय अनुयायी की ट्रक को अवैध रेत परिवहन करते पकड़ा गया. जाहिर है, रेत से भरा ट्रक भारी था, मगर उससे भारी उसकी पहुंच थी. फौरन मंत्री तक सूचना पहुंच गई. मंत्री जी हरकत में आ गए. उन्होंने कलेक्टर को फोन पर ही फरमान सुना दिया कि ट्रक तुरंत छोड़ दिया जाए. कलेक्टर ने मंत्री जी को कहा, ‘महोदय ऊपर से आदेश है. नियम के विरुद्ध कुछ नहीं होगा’. यह सुनते ही मंत्री जी तिलमिला गए. जब उन्हें सत्ता का रस ‘रेत’ में सूखता दिखाई दिया. तब वह बोले, ‘ट्रक छुड़ाने मैं खुद आ रहा हूं’. मंत्री जी कहीं वाकई न पहुंच जाए, यह सोचकर कलेक्टर दूसरे इलाके के दौरे पर निकल गए. मंत्री जी कलेक्टर के रूखे व्यवहार से सदमे में चले गए थे. उन्होंने तत्काल सरकार ए हुजूर के दरबार में शिकायत दर्ज की. तब उन्हें मालूम पड़ा कि यह पूरी कार्रवाई दरबार के आदेश के तामील में की गई है. मंत्री जी शांत हो गए. उधर जिले में लोग एक-दूसरे से चल रही बातचीत में चुटकी लेते हुए यह सुने गए है कि मंत्री जी की साख रेत में धंस गई है.
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विवेचना
सूबे के पुलिस महकमे में यह पहली बार हुआ है कि ‘विवेचना’ अपराधियों की नहीं, बल्कि अपराध पर लगाम लगाने वाले पुलिसकर्मियों की हो रही है. पुलिस कर्मियों का आपराधिक ब्यौरा मांगा गया है. जिलों के कप्तान ब्यौरा तैयार कर रहे हैं. मालूम चला है कि अब तक करीब सौ पुलिस कर्मियों का अपराधिक ब्यौरा आला अफसरों तक पहुँच चुका है. आकलन है कि यह आंकड़ा पांच सौ तक जा सकता है. इन पुलिसकर्मियों के अपराध से आलिंगन करने के तौर तरीके अलग-अलग हैं. कुछ हैं, जो गांजे के तस्कर बन बैठे हैं, तो कुछ जुए-सट्टे के कारोबार की निगरानी कर हिस्सेदारी वसूल रहे हैं. कुछ पुलिसकर्मी भू-माफियाओं के अवैध कारोबार के राज़दार हैं. इन चंद वर्दी धारियों के नापाक इरादों की वजह से हर वर्दी संदेह में है. वर्दी अपराध से लिपट गई है, ऐसे में इससे न्याय की उम्मीद करना बेमानी है. अपराध केवल थाने के बाहर ही नहीं रह गया है, थाने के भीतर भी पनप रहा है. आला अफसर समझ रहे हैं कि यदि समय रहते हालात दुरुस्त नहीं किए गए, तो आने वाले दिनों में समाज अंदर से दरक जाएगा. कुछ चुनिंदा आला अफसर आज भी हैं, जो पूरी शिद्दत से यह मानते हैं कि पुलिस समाज की एक महत्वपूर्ण इकाई है, सो वह जुटे हैं, पुलिसिया वर्दी में अपराधी तत्व को ढूंढने….
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देवी-देवता
सरकार कुछ आईएएस अफसरों को देवी-देवता मानकर चलती है. सरकार मानती है कि उनके पास देवी-देवताओं की तरह कई-कई हाथ हैं. एक हाथ से एक विभाग की जिम्मेदारी, दूसरे हाथ से दूसरे विभाग की जिम्मेदारी, तीसरे हाथ से तीसरे विभाग की जिम्मेदारी और चौथे हाथ से चौथे विभाग की जिम्मेदारी संभालने में वह कौशल संपन्न हैं. सिर्फ हाथों से काम चल जाता तो बात कुछ और थी. जितने हाथ उतनी ही मुंडियां भी चाहिए. सोचने के लिए मुंडियों का होना जरूरी है. जरा सोचिए अगर
एक साथ कई-कई जिम्मेदारियां संभाल रहे या रहीं आईएएस अफसरों की कई मुंडियों और हाथों वाली तस्वीर कैनवास पर उकेरी जाएगी, तो यह तस्वीर दिखने में कैसी होगी? जरा सोचिए कि देवी-देवता सरीखे प्रतिभा के धनी आईएएस दिन-रात के 24 घंटे का बंटवारा कैसे करते होंगे? घर-परिवार, काम, दोस्त, खाना-पीना सब कुछ इन 24 घंटों में कैसे तय होता होगा? इस किस्म के कौशल संपन्न हर आईएएस पर आईआईएम जैसी संस्थाओं को शोधपत्र तैयार करना चाहिए. आईएएस बिरादरी में कुछ-कुछ चेहरे ऐसे हैं भी, जिनकी क़ाबिलियत पर संदेह करना ज्यादती होगी, बावजूद इसके कुछ विभाग ऐसे हैं, जहां एक वक्त पर आईएएस अफसर के एक ही दायित्व पर होने की दरकार है, मगर अफसर के हिस्से उस विभाग से जुड़े तीन-तीन अहम दायित्व हैं. सूबे की प्रशासनिक बिरादरी में अमृत खलको नाम के एक आईएएस थे. पूर्ववर्ती सरकार में श्रम विभाग की उनकी पोस्टिंग को कोई भला कैसे भूल सकता है? खलको श्रम विभाग के सेक्रेटरी तो थे ही, कमिश्नर और डायरेक्टर का चार्ज भी उनके हिस्से था. उन पर आरोप लगा कि उन्होंने ईएसआई की 45 करोड़ रुपए की दवा खरीदी का प्रस्ताव डायरेक्टर की हैसियत से बनाया, कमिश्नर की हैसियत से उसे सेक्रेटरी को भेजा और सेक्रेटरी की हैसियत से ख़ुद ही मंजूरी दे दी. प्रस्ताव का न तो परीक्षण हुआ और न ही किसी तरह की पूछताछ की गई, क्योंकि प्रस्ताव बनाने से लेकर मंजूरी तक एक ही आईएएस के हस्ताक्षर थे. यह बात और है कि मामला तूल पकड़ते देख सरकार ने उस पर रोक लगा दी थी. सरकार कुछ सोचकर फैसले लेती होगी. ज़ाहिर है इन फैसलों के पीछे भी किसी तरह की मंशा होगी. मगर जरूरी है कि एक आईएएस को देवी-देवता सरीखे स्थापित करने की मान्य होती परंपरा पर स्थायी रोक लगाई जाए. सूबे में अफसरों की कमी तो है नहीं.
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बिजनेस मॉडल
रूलिंग पार्टी के एक विधायक को एक पूर्व मंत्री ने नसीहत देते हुए कहा कि जमीन पर लौट आओ, नहीं तो चुनाव जीतना मुश्किल हो जाएगा. जनता की नज़र से कुछ छिपा नहीं है. सबको सब पता है. विधायक थोड़े प्रैक्टिकल निकले. उन्होंने पूर्व मंत्री को अपना पूरा बिजनेस माडल समझा दिया. विधायक ने कहा कि शुरू में जब नया-नया आया था, तब चवन्नी-अठन्नी से शुरुआत की थी, लेकिन अब पूरा सिस्टम सेट है. हर महीने पांच करोड़ रुपए इकट्ठा करने का टारगेट है. चुनाव में तीन साल बाकी हैं. आराम से दो-ढाई सौ करोड़ रुपए बन जाएंगे. किस्मत ने साथ दिया, तो टिकट मिल जाएगी और न भी मिली तो कोई बात नहीं. जिंदगी जीने के लिए दो-ढाई सौ करोड़ रुपए पर्याप्त हैं. नेतागिरी तो आगे भी चलती रहेगी. पूर्व मंत्री ने यह सब सुनकर अपना माथा पीट लिया और अपना दौर याद करने लग गए, जब आला नेताओं के आगे नवोदित विधायक अपनी छवि की दुहाई देते नहीं थकते थे. राजनीति का यह नया दौर है, जहां सब कुछ खुलकर किया जा रहा है. रोकने-टोकने वाला कोई नहीं. खुली छुट है.