Column By- Ashish Tiwari, Resident Editor Contact no : 9425525128
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कितने एमओयू?

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव बैक टू बैक इन्वेस्टर मीट कर लाखों करोड़ रुपए का निवेश जुटा रहे हैं. मध्य प्रदेश सरकार ने कई बड़ी कंपनियों से एमओयू कर लिया. इधर छत्तीसगढ़ में एमओयू का जिक्र आते ही अफसरों की कानाफूसी शुरू हो जाती है. पूर्ववर्ती सरकार में एमओयू के नाम पर बड़ा खेल खेला गया. कागजों पर समझौता होता था. इस समझौते पत्र पर दस्तखत की स्याही बड़ी खर्चीली होती थी. दरअसल यहां एमओयू की मंडी सज गई थी. सिंगल विंडो सिस्टम बना था. जहां एक ही नियम था. जब तक चढ़ावा नहीं, तब तक एमओयू नहीं. चढ़ावे की रकम प्रोजेक्ट देखकर तय होती. एमओयू करने वाले निवेशकों का लालच अलग किस्म का था. उन्हें भारी भरकम सब्सिडी का लॉलीपॉप दिख रहा था. एमओयू के नाम पर चढ़ावे में मिली सैकड़ों करोड़ रुपए की रकम नेता-अफसर डकार जाते थे. एक वक्त के बाद हर सरकार गुजर जाती है. पूर्ववर्ती सरकार भी गुजर गई. सरकार के गुजरने के साथ ही एमओयू पर हुए दस्तखत की स्याही फीकी पड़ गई. स्याही का रंग कच्चा था. दस्तावेजों में चढ़ नहीं पाया. कितने एमओयू हुए? कितनी जन सुनवाई हुई? कितने का निवेश जमीन पर आया? कोई नहीं जानता. आसमानी सपना देखने वाले निवेशकों की जेब ढीली हो गई. भरोसा खर्च हो गया. अब भरोसे की बहाली का जिम्मा मौजूदा सरकार पर है. राज्य में सुशासन का रचनाकाल चल रहा है. नए तरीके से भरोसे की रचना की जानी चाहिए. नहीं तो, निवेशकों को ढूंढने लालटेन युग में जाना पड़ जाएगा. 

मुलाकात

हाल ही में छत्तीसगढ़ के एक बड़े नेता की देश के सबसे बड़े कारोबारी से मुलाकात हुई. यह मुलाकात कारोबारी के घर पर थी. जाहिर है, इस मुलाकात पर हुई चर्चा कारोबार से ताल्लुक रखती होगी. कारोबारी ने कुछ सालों में देश में खूब नाम और छत्तीसगढ़ से खूब पैसा कमाया है. दोनों की आपसी चर्चा पहली नहीं थी, मगर मुलाकात पहली थी. इस मुलाकात के मायने देर सबेर समझ आ ही जाएंगे. राजनीति का कारोबार से पुराना गठजोड़ रहा है. इस गठजोड़ के अपने-अपने मकसद होते हैं. इस मुलाकात के भी अपने मकसद होंगे. बहरहाल उधर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री अपने राज्य में निवेश के लिए खूब जतन कर रहे हैं. अब इतनी जतन के बाद एक-दो लाख करोड़ का निवेश आ भी जाए, तो छत्तीसगढ़ की तुलना में फीके ही रह जाएंगे ! कौन जानता है कि बंद कमरे में कारोबारी और नेता जी की मुलाकात एक बड़े निवेश की मंजूरी के साथ बाहर आ गई हो? 

चूक

सरकारी पोस्टिंग में आमतौर पर सीनियरिटी का ध्यान रखा जाता है, बावजूद इसके कई बार चूक हो ही जाती है. राज्य पुलिस सेवा के 2005 बैच के अफसरों को हाल ही में इंडीपेंडेंट पोस्टिंग दी गई. इस बैच के नीरज चंद्राकर को एनआईए की तर्ज पर बनाए गए एसआईए में बतौर एसपी नियुक्त किया गया, जबकि उनके सीनियर 2000 बैच के पंकज चंद्रा पहले से ही एसआईए में बतौर एडिशनल एसपी तैनात हैं. यानी एसआईए में सीनियर अपने जूनियर को रिपोर्ट करेगा. यह बात और है कि दोनों अफसर एक-दूसरे का लिहाज कर चल सकते हैं. मगर चूक तो चूक है. आला अफसरों की जानकारी में यह मामला पहुंच गया है. एसआईए के दोनों अफसर अब उम्मीद कर रहे होंगे कि इस चूक को जल्द दुरुस्त किया जा सके. 

भाई हमारा विधायक है !

कांग्रेस सरकार में एक विधायक के भाई की हेकड़ी की चर्चा खूब थी. हाउसिंग बोर्ड में रहते हुए भाई ने एक-दो प्रमोशन दिला दिया था. प्रमोशन का तमगा लगा, तो सीना चौड़ा हो गया. कुछ सीनियर बराबरी पर आ गए, जो बराबरी पर थे, जूनियर हो गए. मानो कुर्सी रुआब लेकर आ गया. रुआब ने रुल करना सीखा दिया. फर्जी कंपनियों के नाम पर बिल क्लेम कर पैसों का पहाड़ खड़ा कर लिया. शिकायतें खूब आई. मगर भाई हमारा विधायक है! कहने वाले अफसर का भला कौन क्या ही कर लेता. और तब तो बिल्कुल भी नहीं, जब भाई सत्ताधीश का करीबी रहा हो. फिलहाल विधायक भाई जेल-जेल खेल रहा है और विधायक भाई का नौकरीशुदा भाई अपने दुर्दिन को कोस रहा है. इधर विभाग ने उसकी पूरी कुंडली निकाल रखी है. सरकार को बस ग्रह नक्षत्र बिठाने हैं. बड़े अफसरों के दरवाजों पर जा जाकर चप्पले घिस रहा एक भाई अब कहने से बच रहा है कि,”भाई हमारा विधायक है” ! 

जांच की आंच !

सीजीएमएससी घोटाले की जांच ईओडब्ल्यू-एसीबी से कराने की तैयारी के बीच उन अफसरों के बीच खुसर-फुसर शुरू हो गई है, जो यहां तैनात रह चुके हैं. कोई अपनी सफाई में कितना ही कुछ क्यों न कह ले. जांच शुरू हुई, तो उसकी आंच उन तक जरूर पहुंचेगी. सरकार में घपले घोटाले होना आम बात है, लेकिन यहां किसी ने अपनी आंख में मिर्च तो नहीं डाल रखी है कि घपले की बुनियाद पर खड़ी मीनार ही न देख सके. जांच शुरू होगी तो मालूम चलेगा कि किस अफसर की भूमिका कितनी छोटी थी, मोटी थी, चोड़ी थी या बड़ी थी. भूमिका का अलग-अलग माप होगा. अलग-अलग पैमाना होगा. गरीब मरीजों की दवा से मल्टीविटामिन चुराकर किन-किन अफसरों से अपना चेहरा चमकाया. यह सब मालूम चल सकेगा. पिछले दिनों की बात है. पावर सेंटर के इस कालम में जब इस जांच का जिक्र किया गया, तब एक अफसर ने उस पर टिप्पणी करते हुए एक संदेश लिख भेजा, ”बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जाएगी, लोग बे वजह उदासी का सबब पूछेंगे. ये भी पूछेंगे कि तुम इतनी परेशां क्यूं हो, जगमगाते हुए लम्हों से गुरेजां क्यूं हो. उंगलिया उठेंगी सूखे हुए बालों की तरफ, इक नजर देखेंगे गुजरे हुए सालों की तरफ…”

दक्षिण का तिलिस्म

रायपुर दक्षिण सीट से भाजपा के उम्मीदवार सुनील सोनी हैं. मगर चुनाव लड़ते बृजमोहन अग्रवाल दिख रहे हैं. जाहिर हैं, इस चुनाव से बृजमोहन की साख जुड़ गई है. साख पर सवाल न उठ जाए, इसलिए चुनाव जीताना जरूरी है. सो पूरे दमखम से लगे हैं मैदान में. उप चुनाव में रुलिंग पार्टी का एक एज तो होता ही है, बावजूद इसके भाजपा की तैयारी देखिए. अपने धाकड़ नेताओं को छोटे-छोटे मंडल की बागडोर सौंप रखी है. चुनावी रणनीतियां बनाने में माहिर नेता झोंक दिए गए हैं. कांग्रेस के नेता आकाश शर्मा कहीं से कमतर नहीं कहे जा रहे, मगर रायपुर की सियासत में सुनील सोनी के मुकाबले कम अनुभवी हैं. आकाश यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष है. राज्य से एक-दो हजार कार्यकर्ताओं ने रायपुर में डेरा डाल दिया, तो कड़ी टक्कर दे सकते हैं. सियासी दांवपेच के माहिर पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के शागिर्द और यूपी के प्रभारी सचिव राजेश तिवारी के दामाद हैं. सो चुनावी रणनीति बनाने और उसके क्रियान्वयन में भूल चूक हो जाए, इसकी उम्मीद नहीं है. राजनीति की पूरी बिसात चेहरा दर चेहरा कहीं प्लस तो कहीं माइनस के फार्मूले पर बिछाई जाती है. रायपुर दक्षिण सीट पर हो रहे उप चुनाव की बिसात बिछ रही है.