Column By- Ashish Tiwari, Resident Editor Contact no : 9425525128
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कट गई लाइन

पिछले दिनों सत्ता के केंद्र के एक बड़े नेता के बंगले की फोन लाइन डेड हो गई. फोन लाइन डेड हुई, तो इंटरनेट भी ठप्प पड़ गया. सुनते हैं कि एयरटेल कंपनी की लाइन थी. फोन लाइन कटने और इंटरनेट ठप्प पड़ने के बाद अफसरों ने कंपनी को फोन किया. कहा- ‘कनेक्शन दुरुस्त कर दो’. कंपनी ने कह दिया, ‘नहीं करेंगे’. पहले बिल का भुगतान कर दो. पूछ गया- बिल कितने का है? कंपनी ने बताया कि लाखों रुपयों का बकाया है. बकाया रकम सुन, सुनने वालों के हाथ-पैर ठंडे पड़ गए. पता चला कि तीन-चार साल से बिल का भुगतान नहीं हुआ है. पिछली सरकार बेसुध थी. होश हवाश था नहीं. ध्यान नहीं दिया. नई सरकार का ध्यान भी नहीं गया. या फिर मध्यमवर्गीय सोच अपनाई गई होगी कि जब तक लाइन कटने का नोटिस नहीं आ जाता. तब तक बिल का भुगतान नहीं करेंगे. इधर फोन लाइन दुरुस्त करने की अफसरों की हिदायत काम नहीं आई. कंपनी भुगतान पर अड़ी रही. कंपनी की ऐंठन देख कह दिया गया कि लाइन दुरुस्त करो, नहीं तो हम ‘जियो’ पर चले जाएंगे. तब भी कंपनी की ऐंठन बनी रही. बंगले में अब ‘जियो’ चल रहा है. ‘एयर-टेल’ ने अपना बोरिया बिस्तर समेट लिया है. अब नेताजी के बंगले का फोन बिल नहीं भरने पर कंपनी अगर ऐंठन दिखाने लगे, तो फिर बंगले का रौब किस काम का. कंपनी ने खामखा पंगा ले लिया. 

पॉवर सेंटर : सतर्क रहें !..प्रमोशन…ग्रहण…जांच…कमाल के सीएमएचओ!…कौन बनेगा मंत्री?…-आशीष तिवारी

इंस्पेक्टर 

खुद का पेट जब भरा हो, तब दूसरों की भूख का एहसास नहीं होता. प्रमोशन की बांट जोह रहे राज्य के पुलिस इंस्पेक्टरों को कुछ ऐसा ही लग रहा है. पुलिस महकमे के अफसरों को इंस्पेक्टरों की सुध रही नहीं, शायद इसलिए इंस्पेक्टरों का प्रमोशन बरसो से अटका पड़ा है. इंस्पेक्टरों का डीएसपी पद पर प्रमोशन होना है, लेकिन प्रस्ताव कहीं जाकर अटक गया है. पिछले हफ्ते ‘पावर सेंटर’ में राज्य पुलिस सेवा के अफसरों को आईपीएस अवार्ड दिए जाने में हो रही देरी का मामला उठा, तब राज्य के इंस्पेक्टरों ने अपनी पीड़ा बताई. पता चला कि 1998 और 1999 बैच का डीएसपी प्रमोशन अटका हुआ है, जबकि पड़ोसी राज्य मध्यप्रदेश ने अपने अफसरों को प्रमोशन दे दिया है. राज्य पुलिस सेवा के अफसरों का अपना एक संगठन है, जो आला अफसरों और नेताओं से समय-समय पर गुहार लगा आता है, पर इंस्पेक्टरों की बेचारगी ही है कि उनका अपना संगठन बनाना सर्विस रुल्स के अगेंस्ट है. खैर, पुलिस का मनोबल टूटना नहीं चाहिए. टूटा हुआ मनोबल लाॅ एंड आर्डर क्या ही मेंटेन करेगा. हाथ में लाठी तो होगी, मगर उसकी पकड़ ढीली होगी. सरकार को इस दिशा में सोचना चाहिए.

पॉवर सेंटर : रोमियो-जूलियट…कंगन…बंद कमरे की बात…पीएससी जांच !…नेटवर्क एरिया…-आशीष तिवारी

मुख्य सूचना आयुक्त!

छत्तीसगढ़ सूचना आयोग में दो पद खाली हैं. एक- ‘मुख्य सूचना आयुक्त’ और दूसरा- ‘राज्य सूचना आयुक्त’. हाल ही में शासन ने इन पदों पर होने वाली नियुक्ति के लिए विज्ञापन जारी किया है. कई रिटायर्ड ब्यूरोक्रेट, वकीलों और पत्रकारों में इस पद पर बैठने की होड़ लग गई. कई हैं, जो पिछले दरवाजे से समर्थन जुटाने में जुटे हैं. इस बीच प्रशासनिक गलियारों से खबर आई है कि अमिताभ जैन मुख्य सूचना आयुक्त की दौड़ में सबसे आगे हैं. मुख्य सचिव का ओहदा संभाल रहे अमिताभ जैन जून 2025 में रिटायर होंगे. चर्चा है कि मुख्य सूचना आयुक्त बनाए जाने की स्थिति में वह वीआरएस ले सकते हैं. सूत्रों की माने तो अमिताभ जैन ने मुख्य सूचना आयुक्त के पद के लिए अपना आवेदन भेज दिया है. जाहिर है, इस निर्णय में सरकार की मंजूरी रही होगी. 

पॉवर सेंटर : इश्क…जूता…पीएससी…एनजीओ…डीजीपी की दौड़…स्ट्राइक रेट… रायपुर दक्षिण कौन जीता?- आशीष तिवारी

जलवा

प्रमोटी आईपीएस अफसरों का जलवा बढ़ गया है. रमन सरकार के दिनों में लाॅ एंड आर्डर के एक्सपर्ट रहे राज्य पुलिस सेवा के कई सीनियर अफसर प्रमोटी आईपीएस हो गए हैं. राजनीतिक रुप से महत्वपूर्ण जिला हो या फिर संवेदनशील जिला. सरकार प्रमोटी आईपीएस पर भरोसा करती दिख रही है. सीएम सुरक्षा देख रहे लाल उम्मेद सिंह को राजधानी की कप्तानी देकर सरकार ने अपनी मंशा साफ कर दी है. इससे पहले बलौदाबाजार हिंसा के बाद विजय अग्रवाल को अंबिकापुर से बुलाकर वहां भेज दिया गया था. इसी तरह लोहारीडीह की घटना के बाद गृह मंत्री विजय शर्मा ने अपने गृह जिले में राजेश अग्रवाल की तैनाती कराई थी, मगर किन्हीं कारणों से उनकी विदाई हो गई. तब धर्मेंद्र छवई को कवर्धा भेज दिया गया. सूबे में भाजपा सरकार बनने के ठीक बाद मुख्यमंत्री ने अपने गृह जिले की पुलिस कप्तानी शशिमोहन सिंह को सौंपी थी. वहीं बिलासपुर में यह जिम्मा रजनीश सिंह के कंधों पर डाला गया था. डायरेक्ट आईपीएस अफसरों में कोई खोट नहीं. मगर पिछली सरकार में कई खटराल भी दिख गए हैं. लगता है पिछली सरकार की तरह लाॅ एंड आर्डर पर मौजूदा सरकार अपनी भद्द नहीं पिटवाना चाहती.  

पॉवर सेंटर: मुहर.. फटकार.. रसीद.. एनकाउंटर.. शेक.. ब्राह्मण किसके.. – आशीष तिवारी

तस्वीर कैसी?

जी पी सिंह लौट आए हैं. बेअदबी से विदाई हुई थी. अब स्वागत में ढोल बज रहे हैं. एयरपोर्ट से लेकर बंगले तक. राज्य की पुलिस बिरादरी में जी पी सिंह ‘थे’ हो चुके थे. अब बतौर आईपीएस जी पी सिंह एक बार फिर ‘हैं’ हो गए हैं. पिछली सरकार में उन्हें अनिवार्य सेवानिवृत्ति दे दी गई थी. लंबी लड़ाई के बाद जीत का सेहरा बांध कर जी पी सिंह ने वापसी की है. कहते हैं कि सूबे में जब भाजपा की सरकार बनी थी, तब से ही जी पी सिंह की वापसी की तैयारियां तेज हो गई थी. तीन ‘प्रयास’ एक साथ चल रहे थे. एक राजनीतिक, दूसरा सरकारी और तीसरा कानूनी. कैट की हरी झंडी लेकर जी पी सिंह ने पहले हाईकोर्ट और बाद में सुप्रीम कोर्ट की बाधा दौड़ जीती. जी पी सिंह 1994 बैच के आईपीएस अफसर हैं. राज्य में 1994 बैच डीजी प्रमोट हो चुका है. डीजी प्रमोट होने से फिलहाल जी पी सिंह पीछे रह गए, मगर यह जरूर है कि सरकार उनके प्रमोशन का रास्ता ढूंढ रही होगी. बहरहाल जी पी सिंह की वापसी के साथ-साथ एक सवाल भी लौट आया है कि पहले से ही झंझावातों में उलझी आईपीएस बिरादरी की नई तस्वीर अब कैसे उकेरी जाएगी?

पॉवर सेंटर : ई-ऑफिस…सिरदर्द…वाट एन आईडिया…दुर्भाग्य-सौभाग्य…चुनावी ड्यूटी…- आशीष तिवारी