मंत्रियों की निगरानी !
छत्तीसगढ़ी में कहावत है कि बढ़ई के खटिहा टुटहा के टुटहा. इसका मतलब है दिया तले अंधेरा. सरकार में काबिज कई मंत्रियों को लगा होगा कि सत्ता की मलाई उनके हिस्से आएगी. अब तक ना मलाई मिली ना खुरचन. मंत्री फिलहाल यह सोचकर काम चला रहे हैं कि कम से कम दो जून की रोटी ही मिल जाए. मंत्री हैं, तो रुतबा है और रुतबा है, तो बाकी चीजें अपने आप आ ही जाएंगी. मगर हालात पहले जैसे नहीं रहेंगे. मंत्रियों का कामकाज कड़ी चौकसी में है. निगरानी सीधे दिल्ली की है. मंत्रियों से कौन मिल रहा है? किस उद्देश्य से मिल रहा है? चेहरे कौन-कौन हैं? इन तमाम मुद्दों पर रिपोर्ट सीधे दिल्ली भेजे जाने की चर्चा है. खबर तो यह भी है कि एक एजेंसी को इसका जिम्मा सौंपा गया है. बहरहाल पिछले दिनों की बात है. एक मंत्री के ठिकाने पर पिछली सरकार में मौज काटने वाले ठेकेदार और सप्लायर गुलदस्ते के साथ पहुंच गए. जाहिर है, गुलदस्ते का हर फूल पूरी एक बगिया सजाने के ख्यालों से भरा रहा होगा. निगरानी चौकस थी ही, बात दिल्ली तक पहुंच गई और दिल्ली से राज्य संगठन तक. फिर क्या था? मंत्री तक संदेश पहुंचा दिया गया. दो टूक कह दिया गया कि पिछली सरकार के जाने का जरिया कुछ यूं ही बना था. अब मंत्री ने बंद कमरे की चर्चा ही बंद कर दी है.
घुड़की
लोकसभा चुनाव की तैयारी को लेकर पिछले दिनों बीजेपी की एक बड़ी बैठक हुई. यह बैठक पार्टी दफ्तर से बाहर एक भवन में हुई. फर्श पर कालीन. बैठने के लिए आरामदायक कुर्सियां, पीने के लिए मिनरल वाॅटर और खाने के लिए दर्जनों वैराइटी, जो एक बड़े कैटरर्स को हायर कर तैयार कराई गई थी. यह सब तामझाम देख संगठन के एक बड़े नेता की भौह तन गई. जब बीजेपी संगठन के नेताओं की भौह तनती है, तो माजरा सब समझ जाते हैं. कुछ समझ गए, कुछ को समझा दिया गया. नेताओं को वहीं घुड़की मिल गई. कह दिया गया कि अब फाइव स्टार कल्चर बंद कर जमीन पर आ जाए. महंगे कैटरिंग की जगह सामान्य घर जैसे खाने की व्यवस्था बैठकों में की जाए. आरामदायक कुर्सी की बजाए प्लास्टिक की सामान्य कुर्सियां रखी जाए. ना कालीन और ना ही सजावट का कोई सामान रखा जाए. पानी भी वहीं, जो एक आम कार्यकर्ता पीता हो. यह सब सुन सारे नेता हक्के-बक्के रह गए. वैसे सरकार के कुछ मंत्री हैं, जिनके इरादे आसमानी और वह खुद जमीन पर हैं. शायद जानते होंगे कि जमीन छोड़ने का क्या मतलब हो सकता है. सो जमीन पर रह कर बड़े काम करने में जुट गए हैं.
गले की हड्डी
एक अफसर की चुनावी फंडिग गले की हड्डी बन गई. बात सरगुजा संभाग की है. चुनाव चल रहा था. एक नई महिला उम्मीदवार का चुनाव प्रबंधन देख रहे पार्टी के जिलाध्यक्ष ने अफसर से चुनावी फंडिंग की डिमांड की. अफसर को शायद उम्मीद नहीं रही होगी कि नई उम्मीदवार का भाग्य उदय होने वाला है. अफसर ने चुनावी फंड का दाव दूसरी महिला उम्मीदवार पर लगाया जिसे लेकर चर्चा तेज थी कि सरकार बनने की स्थिति में वह सत्ता के केंद्र में आ सकती हैं. मगर दाव उल्टा पड़ा. अब अफसर के हालात उलट गए हैं. बात-बात में एक नेता ने यह किस्सा खोल दिया. बताया कि जिलाध्यक्ष उस अफसर का तबादला बस्तर के किसी सुदूर इलाके में करवाने पर अड़ गए हैं. मंत्री को अर्जी भेज दी है. इस बीच पर्दे के उस पार की हकीकत भी सामने आ गई. मालूम पड़ा कि तबादले से बचाने जिलाध्यक्ष ने अफसर से बड़ी रकम मांगी है. एक तरफ सरकार में शुचिता लाने संगठन ताकत झोंक रहा है, उधर नेता हैं कि बट्टा लगाने का मौका नहीं छोड़ रहे.
इंतजार
सूबे में भाजपा सरकार 3 दिसंबर को बनी. ठीक एक महीने बाद 3 जनवरी को आईएएस अफसरों का तबादला आदेश आया. आईपीएस बिरादरी उम्मीद कर रही थी कि आईएएस तबादले के साथ ही उनका नंबर भी आएगा. मगर आदेश ईद के चांद की तरह हो गया है. हर गुजरते दिन के साथ अफसरों की बैचेनी बढ़ रही है. आईपीएस अफसरों की हर ढलती शाम इस फिक्र से बीत रही है कि उनके हिस्से क्या आएगा? कहते हैं कि डीजीपी को लेकर पूरा मामला अटक गया है. डीजीपी बने रहेंगे या बदले जाएंगे. बदलने की स्थिति में कौन चेहरा होगा? इस कश्मकश में सरकार उलझी रही. मगर संकेत है कि 22 तारीख के बाद डीजीपी की स्थिति तय होगी और इसके बाद तबादला आदेश कभी भी जारी कर दिया जाएगा. पंद्रह से ज्यादा जिलों के एसपी बदल दिए जाएंगे. पुलिस मुख्यालय में भी बड़ा बदलाव किया जाएगा. अच्छी पोस्टिंग पाने के लिए अफसरों की लाॅबिंग चल रही है. एक-दूसरे के खिलाफ शिकायतों का पुलिंदा लेकर मंत्री से मिलने की तस्वीरें सार्वजनिक हो रही है.
कांग्रेस में खलबली
पिछले दिनों प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज के एक आदेश से कांग्रेस मीडिया विभाग में खलबली मच गई. विकास तिवारी को मुख्य प्रवक्ता बनाते हुए प्रदेश अध्यक्ष ने अपने साथ संलग्न करने का आदेश जारी किया. इस फैसले की जानकारी मीडिया विभाग को नहीं थी. बवाल मचना लाजमी था. चर्चा है कि मीडिया विभाग के प्रवक्ताओं ने प्रदेश अध्यक्ष से मिलकर इस फैसले पर कड़ी आपत्ति जताई. किस्म किस्म की दलीलें रखी गई. अध्यक्ष पर दबाव बढ़ा. नतीजतन मुख्य प्रवक्ता का आदेश वापस लेकर वरिष्ठ प्रवक्ता बनाने का नया आदेश जारी किया गया. इधर बलौदाबाजार सीट से चुनावी शिकस्त खाने वाले शैलेष नितिन त्रिवेदी को वाॅर रुम का चेयरमेन बनाया गया है. लोकसभा की रणनीति इस वाॅर रुम से बनेगी. कांग्रेस को शायद लगता है कि हारा हुआ आदमी खामियों को समझकर जीत का फार्मूला गढ़ सकता है. चर्चा है कि कांग्रेस संगठन में इस तरह के अभी कई चौंकाने वाले बदलाव देखने को मिलेंगे, जिसकी जानकारी कई बड़े नेताओं को भी नहीं है.
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