IAS-IPS को नोटिस

एक वक्त था, जब किसी उद्योगपति के ठिकानों पर आईटी की रेड डलती थी, तब उसका भौकाल बनता था. सोसाइटी में पूछपरख-इज्जत बढ़ जाती थी. अब आईएएस-आईपीएस के साथ ऐसा होता दिख रहा है. जब तक एक-दो रेड ना हो, सर्विस में रहने का कोई फायदा नहीं. खैर यहां रेड तो नहीं डल रहा,मगर सुनने में आया है कि राज्य के एक दर्जन से ज्यादा आईएएस-आईपीएस को आईटी ने नोटिस भेजा है. आईटी वालों ने अपनी कुछ क्वेरी की है. आल इंडिया सर्विसेज के अधिकारियों के लिए ऐसे नोटिस बेहद मामूली किस्म के होते हैं. ये लोग इसकी परवाह नहीं करते. वैसे गैर बीजेपी शासित राज्यों में जिस तरह से ईडी-आईटी जैसी एजेंसियों की एक्टिविटी तेज हुई है, तीन-पांच करने वाले अधिकारियों के लिए तो ये मुसीबत ही है. राज्य के आईएएस-आईपीएस-आईएफएस अफसरों ने कमाई के मामले में दूसरे राज्य के अधिकारियों को मात दे ही दी है. एक तरफ ये अधिकारी छत्तीसगढ़ को कोसते भी हैं, दूसरी तरफ जमकर दुहते भी है. फिलहाल सतर्क रहने की जरूरत है. 

नए किरदार में दिखेंगे ‘भूपेश कका’ !

चाचा चौधरी, साबू, फैंटम, नागराज…हममे से कईयों के बचपन के गहरे पक्के दोस्त. जरूर ये सभी फैंटेसी किरदार थे, मगर यारी इतनी थी कि घंटों बीत जाते थे. मालूम नहीं चलता था. कुछ ऐसा ही बचपन फिर लौटता दिख रहा है. खबर है कि इन्हीं किरदारों की तरह भूपेश कका के किरदार पर आधारित एक कॉमिक्स लाई जा रही है. एक बड़े प्रकाशन संस्थान ने इस पर काम शुरू किया है. सुनाई पड़ा है कि यह कॉमिक्स भूपेश कका की योजनाओं पर केंद्रित होगा. इसके जरिए एक नए तरीके से भूपेश कका लोगों के बीच पहुंचेंगे. अच्छी बात है. ऐसे प्रयोग होते रहने चाहिए. मगर पिछला अनुभव इसे लेकर थोड़ा ठीक नहीं है. बताते हैं कि पिछली सरकार में भी पूर्व मुख्यमंत्री पर केंद्रित ऐसी ही एक कॉमिक्स लाई गई थी. राजकमल प्रकाशन ने तब कॉमिक्स प्रकाशित की थी, कहां गई? किसे बटी? ये पता ही नहीं चलता. खैर तब और अब में बड़ा अंतर है. अबकी बार सरकार भी अलग है और सरकार में बैठे लोग भी. कका को नए किरदार के लिए बधाई. रंगीन पन्नों पर उकेरे गए किरदार के जरिए चाचा चौधरी की तरह ख्याति मिले. वैसे चाचा और काका का मतलब एक ही है. 

गुस्से में बदला जोश

पदों में बैठने के बाद नेता अक्सर भूल जाते हैंं कि पार्टी से कार्यकर्ता नहीं बनते, कार्यकर्ताओं से पार्टी बनती है. अब देखिए जिस जोरशोर से कांग्रेस संगठन के जिन नेताओं ने महंगाई के खिलाफ दिल्ली में होने वाली रैली के लिए ट्रेन भर-भरकर कार्यकर्ताओं को विदाई दी. नारे लगवाए. स्टेशन से बाहर आते ही उन नेताओं को कार्यकर्ताओं की सुध ना रही. शुक्रवार की शाम कार्यकर्ताओं से भरी स्पेशल ट्रेन को हरी झंडी दिखाकर रवाना किया गया था. नेताओं के उत्साह से कार्यकर्ताओं में भी जोश था, मगर जैसे-जैसे शाम ढली और अंधेरा छाने लगा, जोश गुस्से में बदलता चला गया. जोश की जगह भूख ने ले ली. बताते है कि स्पेशल ट्रेन में ना तो रात के खाने का इंतजाम था, ना ही पीने के लिए दो घुट पानी का. सुबह का नाश्ता तो भूल ही जाओ. कार्यकर्ताओं को खाना झांसी स्टेशन पर आने पर मिल सका. कुछ छोटे-मोटे नेता ट्रेन में सवार थे, जिन्होंने अपने लाए कार्यकर्ताओं के लिए खाने का ऑर्डर दे रखा था. मगर ज्यादातर ऐसे थे, जिनकी सुध किसी ने नहीं ली. बाकी नेता-मंत्री और इनके संतरी हवाई जहाज से दिल्ली पहुंच रहे हैं. बताइए कितनी नाइंसाफी है. कांग्रेस के एक सीनियर नेता ने इस मामले पर सिर्फ इतना कहा कि, कार्यकर्ताओं की नाराजगी बहुत भारी पड़ती है, अगर यह समझना है तो बीजेपी वाले बेहतर बता सकते हैं. 

निहारिका बारिक की बढ़ी छुट्टी

राज्य शासन ने आईएएस निहारिका बारिक की छुट्टी बढ़ाए जाने वाले आवेदन पर मुहर लगा दी है. बारिक बीते एक साल से चाइल्ड केयर लीव पर चल रही हैं. बीते 31 अगस्त को उनकी छुट्टियां खत्म हो गई थी. इससे पहले ही उन्होंने अगले एक साल के लिए छुट्टी बढ़ाए जाने का आवेदन राज्य शासन को दिया था. निहारिका बारिक के पति जयदीप आईपीएस हैं और इन दिनों जर्मनी में पोस्टेड हैं. निहारिका भी परिवार के साथ जर्मनी में रहीं. बारिक फिलहाल रायपुर आई हुई हैं, मगर जल्द ही लौट जाएंगी. 

ग्रह शांति कराएं मंत्री

कोरबा में जो भी कलेक्टर रहा, जयसिंह अग्रवाल से पटरी बैठी नहीं. सरकार बनने के पहले से लेकर अब तक कई कलेक्टर आए और गए. जयसिंह विधायक से मंत्री बन गए, मगर ढाक के तीन पात वाली कहावत चरितार्थ होती दिखी. पिछली सरकार में कलेक्टर रहे पी दयानंद से तो जुबानी दो-दो हाथ वाली स्थिति बन गई थी, अब वैसा ही हाल रानू साहू के साथ हो चला है. उनका तबादला हुए महीने बीत गए, मगर मंत्री जयसिंह की दिल की बैचेनी खत्म होने का नाम नहीं ले रही. शनिवार को एक प्रेस कांफ्रेंस में जयसिंह एक बार फिर फट पड़े. दो टूक कह दिया-अधिकारियों ने बेमतलब के काम कराकर अपनी जेबें भरी हैं. अगर जांच हो जाए, तो करोड़ों की गड़बड़ी सामने आ जाए. अब ब्यूरोक्रेसी में लोग मंत्री की नाराजगी पर चुटकी लेने लगे हैं. एक ने यहां तक कह दिया कि उन्हें ग्रह शांति का पाठ कराना चाहिए. कहीं तो कृपया अटकी होगी. एक ने कहा, सरकार कांग्रेस की, विधायक कांग्रेस के और तो और मंत्री कांग्रेस सरकार के, फिर भी मंत्री पर कलेक्टर भारी….

बीजेपी के होंगे धर्मजीत-प्रमोद !

पहले कहा जाता था कि सियासत कब किस करवट लें, कोई नहीं जानता. मगर अब ये कहावत बदल गई है, सियासत घूम फिरके बीजेपी की ओर करवट लेती दिख रही है. गाहे बगाहे ये चर्चा जरुर होती रही है कि जेसीसी विधायक धर्मजीत सिंह और प्रमोद शर्मा बीजेपी का दामन थाम सकते हैं, मगर अब दिखाई पड़ रही तस्वीर कहती है कि चर्चा जमीनी रूप ले रही है. पिछले दिनों धर्मजीत और प्रमोद दोनों ही मोदी@20 किताब पर रखी गई परिचर्चा में ना केवल शामिल हुए, बल्कि उनकी खूब आवभगत भी हुई. परिचर्चा के मुख्य वक्ता अमित शाह थे. विधानसभा में भी धर्मजीत बीजेपी के सुर में सुर लिए नजर आते हैं. अनुभवी विधायक है. सदन में अपनी वाकपटुता और मुखरता के लिए पहचाने जाते हैं. बहरहाल, बीजेपी के साथ उनकी गलबहियां के बीच बड़ा सवाल यह कि क्या बीजेपी उन्हें टिकट देगी? वैसे चर्चा है कि इस दफे धर्मजीत लोरमी छोड़कर पंडरिया से चुनाव लड़ सकते हैं.