हुनरमंद अफसर
केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर दिल्ली गए सुबोध सिंह छत्तीसगढ़ लौट आए हैं. अब वह सीएम सचिवालय के कप्तान बन गए हैं. हुनरमंद अफसर हैं. नतीजे देने में माहिर हैं. उनका बल्ला 360 डिग्री घूमता है. टास्क कितना ही बड़ा क्यों न हो, उसे पूरा करने की काबिलियत सुबोध सिंह में है. क्रिकेट की भाषा में उन्हें महेंद्र सिंह धोनी कह सकते हैं. विकेट के पीछे रहकर मैदान के चारों ओर सटिक नजर रखने वाली खासियत उनमें कूट-कूट कर भरी हुई है और जब वह पिच पर आते हैं, तो धैर्य के साथ एक बड़ा स्कोर खड़ा करने का माद्दा उनमें होता है. सुबोध जब टीम रमन में थे, तब उन्होंने कई बड़े स्कोर खड़े किए थे. वह रेलवे प्रोजेक्ट पर काम कर रहे थे, रेलवे की गति तब तेज थी. टीम रमन जब पिच से लौटी, तब गति थम गई. गति बनी रहती, तो राज्य का एक बड़ा हिस्सा रेलवे कनेक्टिविटी से जुड़ चुका होता. खैर, अनुभवी हाथों में कप्तानी सौंपने से बेहतर नतीजे आने की संभावना कई गुना बढ़ जाती है. टीम साय अब पहले से ज्यादा मजबूत हो गई है. कहते हैं कि एक सुलझी हुई दृष्टि भविष्य की कई उलझनों से उबार लेती है. विष्णुदेव साय के इस फैसले का आंकलन ब्यूरोक्रेसी में कुछ इस तरह से ही किया जा रहा है.
पॉवर सेंटर- कट गई लाइन… इंस्पेक्टर… मुख्य सूचना आयुक्त!… जलवा… तस्वीर कैसी?…-आशीष तिवारी
फेरबदल
मंत्रालय में सचिव स्तर के अफसरों के विभाग में बड़े फेरबदल की चर्चा है. सुबोध सिंह की वापसी के साथ ही उन्हें सीएम सचिवालय में तैनाती दी गई है, मगर चर्चा है कि सरकार उनके पोर्टफोलियो में कुछ अहम विभाग भी रखेगी. केंद्रीय प्रतिनियुक्ति से लौटने के बाद से अमित कटारिया को अब तक पोस्टिंग नहीं मिली है. सरकार उन्हें भी अहम जवाबदारी देगी. इधर एक मंत्री हैं, जो अपने सचिव की सख्ती से परेशान हैं, वह चाहते हैं कि उनकी जगह किसी दूसरे सचिव को उनके विभाग का जिम्मा सौंप दिया जाए. मंत्री ने मुख्यमंत्री से भी सचिव बदलने की गुहार लगाई है. एक एसीएस हैं, जो एक विभाग से हटना चाहते हैं, मगर मंत्री उन्हें हर बार अपना वीटो लगाकर रोक लेते हैं. कुल मिलाकर कोई अफसर खुद से हटना चाहता है, तो कुछ अफसर हैं, जिन्हें मंत्री हटाना चाहते हैं. अब पूरा मामला मुख्यमंत्री के पाले में है.
पॉवर सेंटर : सतर्क रहें !..प्रमोशन…ग्रहण…जांच…कमाल के सीएमएचओ!…कौन बनेगा मंत्री?…-आशीष तिवारी
एक्सटेंशन
राज्य पुलिस की कमान संभाल रहे अशोक जुनेजा रिटायर होने का नाम नहीं ले रहे. एक दफे फिर उन्हें एक्सटेंशन देने की चर्चाएं तेज हो गई हैं, जबकि कुछ अरसा पहले ही राज्य सरकार ने नए डीजीपी का पैनल बनाकर यूपीएससी को भेज दिया था. इस पैनल में पवन देव, अरुण देव गौतम और हिमांशु गुप्ता के नाम थे. कोई कुछ खुलकर कह नहीं रहा है, लेकिन भीतर ही भीतर ये ‘एक्सटेंशन’ नाम की बला सबको चुभ जरूर रही है. बंद कमरे में चर्चा भी छिड़ जाती है कि क्या सरकार को कोई दूसरा काबिल अफसर नहीं दिखता है? एक ऐसी ही चर्चा में यह बात फूटकर बाहर आ गई कि अगर जुनेजा साहब को रखना ही है, तो के पी एस गिल की तरह सरकार उन्हें सुरक्षा सलाहकार बना कर रख लें. रमन सरकार के दिनों में नक्सलवाद के खात्मे के लिए सुपर काप कहे जाने वाले के पी एस गिल को सुरक्षा सलाहकार बनाकर लाया गया था. खैर, अशोक जुनेजा काबिल अफसर रहे हैं. पूरे करियर में उन्हें बेहतरीब पोस्टिंग मिलती रही है. सरकार किसी की भी रहे, वह उस सरकार के ‘भरोसेमंद’ बनते रहे हैं. किसी अफसर के साथ सरकार का ‘भरोसा’ बना रह जाना ही बड़ी बात है. वैसे एक्सटेंशन देने की फिलहाल चर्चा भर है. मिल जाए तो बड़ी बात नहीं, लेकिन जब तक एक्सटेंशन मिलने की खबर नहीं आ जाती, तब तक डीजीपी की रेस में शामिल चेहरों को रिलैक्स रहना चाहिए.
पॉवर सेंटर : रोमियो-जूलियट…कंगन…बंद कमरे की बात…पीएससी जांच !…नेटवर्क एरिया…-आशीष तिवारी
हिमाकत
दो डिप्टी रेंजरों की हिमाकत देखिए कि नेताजी के बंगले में सागौन पेड़ कटने की खबर सुनकर सीधे जांच-पड़ताल करने पहुंच गए. नेताजी ठहरे सत्ताधारी दल के विधायक और संगठन के बड़े नेता. डिप्टी रेंजरों ने कुछ तो लिहाज किया होता. कम से कम ऊपर बैठे अपने अफसरों से ही रायशुमारी कर ली होती. छप्पन इंच का सीना लेकर बंगले पर जा धमके. जब डिप्टी रेंजर नेताजी के बंगले पहुंचे, तब नेताजी विधानसभा में थे. सत्र चल रहा था. उन्हें बंगले में वन महकमे के अफसरों के आने की कोई पूर्व सूचना ना थी. जब नेताजी को इसकी खबर लगी, तो वह भड़क उठे. फोन पर ही आला अफसरों की जमकर खबर ली. इस घटना पर एक चौंकाने वाली बात भी सामने आई. दो डिप्टी रेंजरों में से एक डिप्टी रेंजर का भतीजा नेताजी का ‘पीए’ निकला. ‘पीए’ को भी खबर ना थी कि उसका चाचा क्या गुल खिलाने जा रहा है. बहरहाल, बाद में खबर आई कि बंगले में सागौन का कोई ‘पेड़’ नहीं काटा गया है.
गांजा-गांजा
कुछ हैं, जो गांजा फूंककर नशे में हैं. कुछ हैं, जो गांजे की तस्करी कर मदमस्त हैं. कुछ वक्त पहले ही छत्तीसगढ़ पुलिस के कुछ आरक्षक गांजे की तस्करी में धर लिए गए. पहले तस्करी कराने के ऐवज में मोटी रकम वसूलते थे. बाद में खुद तस्कर बन बैठे थे. अब खबर आई है कि एक पूर्व विधायक के बेटे की गाड़ी से तीस लाख रुपए का गांजा मिला है. अपुष्ट खबरें हैं, लेकिन चर्चा है कि गाड़ी में पूर्व विधायक का दामाद था, जो बाद में फरार हो गया. पूर्व विधायक खुद पुलिस में थे. उनकी बेटी डीएसपी है. पुलिस कह रही है कि गाड़ी ड्राइवर चला रहा था. वह फरार हो गया. छत्तीसगढ़ गांजा तस्करी का कारिडोर है. ओडिशा से छत्तीसगढ़ के रास्ते देश-दुनिया तक गांजे की बड़ी खेप जाती रही है. गांजे की तस्करी में खूब पैसा है. कुछ वक्त पहले की ही बात है. राजधानी का एक गांजा तस्कर थाने में तैनात पुलिस अफसरों को पालता था. जब गिरफ्तारी का खतरा मंडराता. अपने दो-चार लड़कों को जेल भेज देता. जेल के भीतर खातीरदारी की व्यवस्था थी ही. सब कुछ राजनीतिक संरक्षण में चल रहा था. सरकार को मालूम था, संरक्षण कौन दे रहा है? मगर तस्करी पर रोक लगाने की कोशिश एक ठूठ को पानी देने जैसी ही थी. नशे के इस कारोबार पर साय सरकार को अब सख्ती बरतनी चाहिए. नशा पीढ़ियों को बर्बाद करता है. सरकार की जिम्मेदारी पीढ़ियों को बर्बाद करने की नहीं, तराशने की होती है.
पॉवर सेंटर: मुहर.. फटकार.. रसीद.. एनकाउंटर.. शेक.. ब्राह्मण किसके.. – आशीष तिवारी
नहले पर दहला
सदन की तस्वीर बदली हुई है. विपक्ष के विधायक क्या ही सरकार के मंत्रियों की घेराबंदी करेंगे? जब सत्तापक्ष में अजय चंद्राकर, धरमलाल कौशिक, राजेश मूणत सरीखे नेता मौजूद हैं. सरकार के मंत्रियों के लिए विपक्ष के विधायकों से ज़्यादा सत्तापक्ष के विधायक बड़ी मुसीबत खड़ी कर रहे हैं. ये विधायक अनुभवी भी हैं और तेजतर्रार भी. नियम कायदों की समझ है सो अलग. रह-रह कर अपनी ही सरकार के मंत्रियों को पानी पिला रहे हैं. शुरू-शुरू में सरकार बनने पर मंत्री बनने से चूक चुके नेता जब नए-नए मंत्री बने अपने साथियों को घेरते थे तब नए मंत्री भी अपने सीनियरों का सम्मान कर जाते थे. अब बतौर मंत्री अनुभव की उम्र एक साल की हो चुकी है. सो सदन में नहले पर दहला चल रहा है. यह सब देख आसंदी पर बैठे अध्यक्ष महोदय भी खूब चुटकी ले रहे हैं. विपक्ष यह सोचकर हतप्रभ है कि सदन में हमारी भूमिका क्या है?
पॉवर सेंटर : ई-ऑफिस…सिरदर्द…वाट एन आईडिया…दुर्भाग्य-सौभाग्य…चुनावी ड्यूटी…- आशीष तिवारी
तीन मंत्री!
सूबे में अब मुख्यमंत्री को मिलाकर 13 नहीं बल्कि 14 मंत्री हो सकते हैं ! संकेत तो कुछ ऐसे ही हैं कि हरियाणा फ़ॉर्मूला छत्तीसगढ़ में भी लागू हो सकता है. पिछले दिनों भाजपा संगठन के एक बड़े नेता ने इसकी पुष्टि करते हुए कहा है कि जब हरियाणा में यह फार्मूला चल सकता है तब यहाँ क्यों नहीं? साय कैबिनेट में इस वक्त दो मंत्रियों के पद रिक्त हैं. हरियाणा फार्मूला लागू होने पर इसकी संख्या तीन हो जाएगी. कैबिनेट विस्तार की सरगर्मियां बढ़ गई हैं. चर्चा ऐसी भी है कि दो मंत्री बनाकर एक पद लॉलीपॉप बनाकर छोड़ दिया जाएगा.