
DCP साहब ने जवानों को परिवार की सेवा में लगाया
राजधानी भोपाल में एक DCP ने अपनी बुजुर्ग मां की सेवा में थानों के जवान लगा दिए। जवान भर्ती तो जन-सेवा के लिए हुए थे। लेकिन बेचारे क्या करें, जनसेवा की जगह मानस सेवा करनी पड़ रही है, अब बेचारे जवान कर भी क्या सकते हैं चूंकि नौकरी तो दांतो के बीच जीभ जैसे DCP के अधीन है, चूंकि जिन-जिन थानों से जवान को ड्यूटी पर लगाया है वह सभी थाने DCP के जोन के हैं। DCP साहब को सरकार तनख्वाह, आलीशान बंगला, गाड़ी, डीजल, गनमैन, ड्राइवर, अर्दली देती है इन सबको जोड़ दिया जाए तो सरकार DCP पर 10 लाख खर्च कर रही है। उधर थानों में वैसे ही बल कम है, एक सिपाही की कम तो बेचारे दूसरे सिपाही को 4 से 8 घंटे एक्सट्रा ड्यूटी करनी पड़ रही, आपका मातृत्व प्रेम समझ आता है। मां जी की सेवा के लिए प्राइवेट नौकर हायर कर लीजिए या PHQ में DG साहब के यंहा अर्जी लगाकर अर्दली लगवा लीजिए, लेकिन इन जवानों पर रहम करना चाहिए।
IPS साहब की फ्री वाली कार
मध्य प्रदेश संभाग के आईपीएस की कार की चर्चा बन गई है। IPS को घरेलू कार्य के लिए कार चाहिए थी, बस फिर क्या था…IPS साहब ने SP को बोला एसपी ने सभी टीआइयों से चौथ-वसूली कर अपने मातहत को खुश कर IPS साहब को नई कार गिफ्ट कर दी। बताया ये भी जाता है कि एक टीआई ने पैसे देने से मना कर दिया तो उनको लूप लाइन में भेज दिया है। साहब ने अपने नेटवर्क को मजबूत करने के लिए अपने ऑफिस से टीआई रैंक के एक पुलिसकर्मी को थाना इंचार्ज भी बनवा दिया है। बताया जाता है कि अब इलाके में पूरी वसूली की जिम्मेदारी इन्हीं के कंधों पर है।
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PWD के दो अधिकारी हो गए फेल
गजब विभाग है PWD…गजब के इंजीनियर हैं यहां के अफसर..ऐसा इसलिए कह रहा हूं क्योंकि इनके शिक्षा का स्तर इतना और इतना गिरा हुआ है कि मानिए तीसरी कक्षा का छात्र…दरअसल, बीते दिनों एक मामला सामने आया। मंत्रालय में बैठने वाले विभाग के सर्वोच्च अधिकारी ने दो इंजीनियर को बुलाया। साहब को तो पहले से ही पता था कि दोनों अफसर मानो अंगूठा छाप इंजीनियर हैं। दोनों अफसरों को विभाग के सबसे बड़े साहब ने एक आदेश दिया। आदेश अंग्रेजी भाषा में लिखा हुआ था। साहब ने भी जानकारी होने के बाद भी अन्य के सामने आदेश पढ़ने का आदेश दिया। वह आदेश का मतलब तो दूर बल्कि आदेश पढ़ना भी दोनों अफसरों को नहीं आया। कारण वो इंग्लिश में लिखा हुआ था। साहब ने अपना माथा पकड़ लिया। बात आग की तरह चंद मिनटों में निर्माण भवन के हर एक कोने तक पहुंच गई। अब आप बताएं…ऐसे अफसरों को यदि करोड़ों के ब्रिज के निर्माण, डिजाइन का काम सौंपा जाएगा तो होगा ही नमूने का निर्माण…धन्य हैं। वैसे बात यह भी उठ रही है कि दोनों अधिकारियों की डिग्री की जांच भी होना चाहिए।
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डर के साए में अफसर ने मांगा ट्रांसफर
नगरीय प्रशासन विभाग के एक अधिकारी ज्यादा ही परेशान है। यह परेशानी प्रशासनिक कामकाज या राजनीतिक दबाव की नहीं है बल्कि भय की है। दरअसल, महोदय के चैंबर के बाहर तीन बार ऐसी सामग्री मिली कि साहब का दिमाग खिन्न हो गया। पहली काले कपड़े में कुछ सामान, एक बाद अजीब सी वस्तुएं तो तीसरी बार एक पुतला चेंबर में मिला। साहब को शक नहीं पूरा यकीन है कि उनके खिलाफ कोई जादू या टोटका कर रहा है। ऊपरी बढ़ाएं हैं, बीते दिनों उनकी गाड़ी का छोटा ही सही दो बार एक्सीडेंट भी हुआ तो अब अक्सर बीमार रहने लगे हैं। यह बात अन्य अधिकारियों को भी अंदर ही अंदर खाने लगी है कि आखिर कौन शुभचिंतक ऐसा कुछ कर रहा है, वैसे साहब ने घटना के बाद अब ट्रांसफर मांगा है।
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